गोपालदास नीरज के पार्थिव शरीर पर परिजनों का विवाद खत्म, अलीगढ़ में आखिरी विदाई

By आदित्य द्विवेदी | Published: July 21, 2018 04:52 PM2018-07-21T16:52:10+5:302018-07-21T16:52:10+5:30

नई दिल्ली में गुरुवार रात 94 वर्षीय कवि की मृत्यु हो गई थी। उनके सरस्वतीनगर स्थित आवास में भी अंतिम प्रणाम करने वालों का तांता लगा रहा।

Gopaldas Neeraj cremation at Aligarh, Family resolved dispute over dead body | गोपालदास नीरज के पार्थिव शरीर पर परिजनों का विवाद खत्म, अलीगढ़ में आखिरी विदाई

गोपालदास नीरज के पार्थिव शरीर पर परिजनों का विवाद खत्म, अलीगढ़ में आखिरी विदाई

लखनऊ, 21 जुलाईः हिंदी साहित्य के महान कवि गोपालदास नीरज का अंतिम संस्कार आज शाम अलीगढ़ के शवदाह गृह में किया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने के निर्देश दिए हैं। उनके पार्थिव शरीर को लेकर परिजनों के बीच विवाद सुलझा लिया गया है। परिजनों का कहना है कि 93 वर्ष की अवस्था में उनका शरीर संक्रमित और जीर्ण हो चुका था इसलिए अंगदान के काम नहीं आएगा। इससे पहले शनिवार सुबह उनके शव को आगरा ले जाया गया। गोपालदास नीरज को अंतिम विदाई देने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहुंचे। नई दिल्ली में गुरुवार रात 93 वर्षीय कवि की मृत्यु हो गई थी। उनके सरस्वती नगर स्थित आवास में भी अंतिम प्रणाम करने वालों का तांता लगा रहा।

कारवां गुजर गया... दुनिया को अलविदा कह चले नीरज!

नीरज ने एक बार किसी साक्षात्कार में कहा था, ‘‘अगर दुनिया से रुखसती के वक्त आपके गीत और कविताएं लोगों की जबान और दिल में हों तो यही आपकी सबसे बड़ी पहचान होगी। इसकी ख्वाहिश हर फनकार को होती है।’’ उनकी बेहद लोकप्रिय रचनाओं में ‘‘कारवां गुजर गया ....’’ रही।

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से,
लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से, 
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे! 

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, 
पांव जब तलक उठें कि ज़िन्दगी फिसल गई।। 

नीरज ने कुछ समय के लिए मेरठ कॉलेज, मेरठ में हिंदी प्रवक्ता के पद पर भी काम किया। कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएं न लेने व रोमांस करने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिंदी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हुए। इस दौरान ही उन्होंने अलीगढ़ को अपना स्थायी ठिकाना बनाया। यहां मैरिस रोड जनकपुरी में आवास बनाकर रहने लगे।

कवि सम्मेलनों में बढ़ती नीरज की लोकप्रियता ने फिल्म जगत का ध्यान खींचा। उन्हें फिल्मी गीत लिखने के निमंत्रण मिले जिन्हें उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। फिल्मों में लिखे उनके गीत बेहद लोकप्रिय हुए। इनमें ‘‘देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा’’ शामिल है। 

इसके बाद उन्होंने बंबई को अपना ठिकाना बनाया और यहीं रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। उनके गीतों ने फिल्मों की कामयाबी में बड़ा योगदान दिया। कई फिल्मों में सफल गीत लिखने के बावजूद उनका जी बंबई से कुछ सालों में ही उचट गया। इसके बाद वे मायानगरी को अलविदा कह वापस अलीगढ़ आ गए। 

उनके पुत्र शशांक प्रभाकर ने बताया कि आगरा में प्रारंभिक उपचार के बाद उन्हें कल एम्स में भर्ती कराया गया था लेकिन डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका। उन्होंने बताया कि उनकी पार्थिव देह को पहले आगरा में लोगों के अंतिम दर्शनार्थ रखा जाएगा और उसके बाद अलीगढ़ ले जाया जाएगा जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

नीरज की जीवनयात्रा

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरवाली गांव में 4 जनवरी 1925 को जन्मे गोपाल दास नीरज को हिंदी के उन कवियों में शुमार किया जाता है जिन्होंने मंच पर कविता को नयी बुलंदियों तक पहुंचाया । वे पहले शख्स हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया। 1991 में पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार प्रदान किया गया। 1994 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने ‘यश भारती पुरस्कार’ प्रदान किया। गोपाल दास नीरज को विश्व उर्दू पुरस्कार से भी नवाजा गया था।

उनकी प्रमुख कृतियों में 'दर्द दिया है' (1956), 'आसावरी' (1963), 'मुक्तकी' (1958), 'कारवां गुजर गया' 1964, 'लिख-लिख भेजत पाती' (पत्र संकलन), पन्त-कला, काव्य और दर्शन (आलोचना) शामिल हैं। 

गोपाल दास नीरज के लिखे गीत बेहद लोकप्रिय रहे। हिन्दी फिल्मों में भी उनके गीतों ने खूब धूम मचायी। 1970 के दशक में लगातार तीन वर्षों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार प्रदान किया गया। उनके पुरस्कृत गीत हैं- काल का पहिया घूमे रे भइया! (वर्ष 1970, फिल्म चंदा और बिजली), बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (वर्ष 1971, फ़िल्म पहचान), ए भाई! ज़रा देख के चलो (वर्ष 1972, फिल्म मेरा नाम जोकर)।

PTI-Bhasha Inputs

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Web Title: Gopaldas Neeraj cremation at Aligarh, Family resolved dispute over dead body

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