Interview: इलेक्ट्रिक वाहन पर क्यों है सरकार का जोर और पेट्रोल-डीजल वाली गाड़ियां कब तक हो जाएंगी अप्रचलित? जनरल वी.के. सिंह ने कही ये बात
By शरद गुप्ता | Published: June 8, 2022 11:43 AM2022-06-08T11:43:53+5:302022-06-08T11:47:09+5:30
लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता को दिए इंटरव्यू में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह ने देश में राजमार्ग निर्माण सहित इलेक्ट्रिक वाहनों के भविष्य और कई मुद्दों पर बात की।
जनरल वी.के. सिंह देश के ऐसे पहले सेवानिवृत्त सेना प्रमुख हैं जिन्होंने राजनीति में प्रवेश किया है. उन्होंने अपने पहले लोकसभा चुनाव में भी भारी अंतर से जीत दर्ज की थी. अपने दूसरे कार्यकाल के सांसद और केंद्रीय सड़क परिवहन एवं नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह ने लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता से परिवहन क्षेत्र से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर बात की. प्रस्तुत हैं मुख्य अंश...
- क्या आपका सैन्य प्रशिक्षण शासन में आपकी मदद कर रहा है?
मिलिट्री आपको अनुशासन और कार्य निष्पादन सिखाती है. हालांकि सशस्त्र बल और राजनीति दोनों एक दूसरे से पूरी तरह अलग हैं, लेकिन डिलीवरी दोनों में एक सामान्य कारक है. सरकार में हमें हर तरह के लोगों से निपटना होता है- नौकरशाहों और निर्वाचित प्रतिनिधियों से लेकर आम आदमी तक, इसलिए इसमें आप सेना के तरह के अनुशासन की उम्मीद नहीं कर सकते. लेकिन हां, मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से सरकार में अनुशासन और कार्य निष्पादन दोनों में काफी सुधार हुआ है.
- आपके मंत्रालय द्वारा प्रतिदिन वर्तमान सड़क निर्माण दर क्या है?
यह लगभग 32 किलोमीटर प्रतिदिन है और हमारा लक्ष्य वर्ष के अंत तक इसे 40 किलोमीटर प्रतिदिन तक ले जाने का है. कल्पना कीजिए कि यूपीए शासन के दौरान, हम प्रतिदिन केवल 2 किलोमीटर सड़क का निर्माण कर रहे थे.
- क्या इतनी तेज गति से सड़क निर्माण के लिए पर्याप्त धन है?
यह कोई मुद्दा नहीं है. सरकार पहले ही हमारे मंत्रालय का बजट बढ़ाकर 1.90 लाख करोड़ कर चुकी है. इसके अलावा, हम विभिन्न मॉडलों बीओटी, बीओडी, राजमार्ग के लिए वार्षिक बजट के माध्यम से अपनी सड़कों का निर्माण कर रहे हैं. अब हमने विदेशी निवेशकों से पैसा हासिल करने के बजाय आम भारतीयों से सड़क बनाने के लिए 7 प्रतिशत के सुनिश्चित रिटर्न के माध्यम से पैसा जुटाने का फैसला किया है. बैंक का ब्याज 5-6 फीसदी तक गिर गया है. हमारा प्रस्ताव निश्चित रूप से बहुत सारे निवेश को आकर्षित करेगा. हम सिर्फ सेबी की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं.
- उच्च टोल दरें एक मुद्दा हैं. इलेक्ट्रिक वाहन की लागत जबकि एक रुपए प्रति किलोमीटर से भी कम आती है, टोल दर दो रुपए तक है?
निर्माण की लागत के हिसाब से टोल दरें तय की जाती हैं. राजमार्ग न केवल यात्रा को सुगम बनाते हैं बल्कि सस्ता भी बनाते हैं. दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे में एक कार को सिर्फ 12 घंटे और एक ट्रक को 22 घंटे का समय लगेगा. वर्तमान में एक ट्रक को 48 घंटे और एक कार को 28 घंटे इस यात्रा को पूरा करने में लगते हैं. जाहिर है, ईंधन की लागत में भी बचत होगी.
- उपजाऊ भूमि पर बनने वाले ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेसवे का निर्माण क्यों करें?
देखिए, जब भी कहीं हाईवे का निर्माण होता है तो उसके आसपास की जमीन की दरें आसमान छूती हैं और बुनियादी ढांचे में सुधार होता है. जाहिर है इससे किसानों को भी फायदा होता है. हम किसानों को भूमि अधिग्रहण के लिए हर साल 50 से 60 हजार करोड़ रु. का भुगतान करते रहे हैं.
- क्या रेलवे या जलमार्ग को मजबूत करना सस्ता विकल्प नहीं होगा?
आप सही कह रहे हैं, सड़कों की तुलना में जलमार्ग बहुत सस्ते हैं. यदि सड़क मार्ग से किसी यात्रा की लागत आपको 10 रु. प्रति किलोमीटर आती है, तो रेल की 6 रु. और जलमार्ग की लागत सिर्फ 1 रु. प्रति किलोमीटर होगी. लेकिन आजादी के बाद हमने जलमार्गों को कभी गंभीरता से नहीं लिया. वर्तमान में 70 प्रतिशत माल और 90 प्रतिशत यात्री परिवहन सड़कों के माध्यम से होता है. हर कोई कार खरीद रहा है. हमें कई और बेहतर सड़कों की जरूरत है.
- राजमार्ग निर्माण की लागत में 4 करोड़ रु. से 100 करोड़ रु. प्रति किमी का अंतर क्यों है?
ऐसा नहीं है. लागत पुलों, फ्लाईओवरों, सुरंगों आदि जैसे कई कारकों पर निर्भर करती है. दो लेन की सड़क पर आम तौर पर 2 करोड़ रु. प्रति किमी की लागत आती है, लेकिन पुलों और भूमि अधिग्रहण की जरूरत वाली तीन लेन की सड़क की लागत प्रति किमी 15-16 करोड़ रु. तक जा सकती है.
- लेकिन दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे की लागत 100 रु. प्रति किलोमीटर है?
इसकी लागत बहुत अधिक है क्योंकि इसका एक हिस्सा 18-लेन की संरचना है, यह दुनिया की सबसे चौड़ी सड़क है जिसकी कीमत हमें 3000 करोड़ रु. पड़ रही है. इसमें कई पुल, फ्लाईओवर, एलिवेटेड सड़कें आदि हैं. शहरी और व्यावसायिक भूमि के एक हिस्से का अधिग्रहण आवश्यक था जिसका हमें बहुत मूल्य चुकाना पड़ा.
- क्या इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर सरकार का जोर उनकी उच्च लागत को देखते हुए समय से थोड़ा पहले नहीं है?
वे सस्ते होते जा रहे हैं. अगले दो साल में एक इलेक्ट्रिक कार की कीमत एक पेट्रोल कार जितनी होगी. दोपहिया या ऑटोरिक्शा के लिए भी यही सच है. हम भारत में ही 85 फीसदी लीथियम-आयन बैटरी बना रहे हैं. अब हम बैटरी ईंधन के रूप में सोडियम आयन, जिंक आयन और एल्युमीनियम आयन के साथ प्रयोग कर रहे हैं. हम ईवी की लागत के और भी कम होने की उम्मीद करते हैं.
- लेकिन क्या ईवी वाहनों की मांग बहुत ज्यादा नहीं है और निर्माण बहुत कम है?
हां, अभी मांग और आपूर्ति में काफी अंतर है. 3-4 महीने की वेटिंग लिस्ट है. लेकिन जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ेगा, प्रतीक्षा सूची समाप्त हो जाएगी.
- आपके अनुमान के अनुसार कब तक पेट्रोल और डीजल वाहन अप्रचलित हो जाएंगे?
मैं तारीख नहीं बता सकता लेकिन मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि यह देर-सबेर होने वाला है.