प्रफुल्ल कुमार महंत इंटरव्यू: बांग्लादेशियों की बाढ़ को असम कतई नहीं स्वीकारेगा, जान की बाजी लगाकर करेंगे CAA का विरोध
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 23, 2019 07:47 AM2019-12-23T07:47:58+5:302019-12-23T07:47:58+5:30
नागरिकता कानून के सवाल पर प्रफुल्ल कुमार महंत ने असम की भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया है.
मेघना ढोके
असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने लोकमत के साथ बातचीत में कहा कि बांग्लादेशियों की बाढ़ को असम कतई नहीं स्वीकारेगा. उन्होंन कहा, देश हमारी समस्या को समझ ही नहीं पाया. देशभर में मीडिया नागरिकता कानून को हिंदू-मुस्लिम का रंग देने में जुटी है. लेकिन असम और पूर्वोत्तर के लिए तो सीमापार से आने वाली लोगों की बाढ़ अस्तित्व का प्रश्न है. अगर समस्या इतना गंभीर रुप ले चुकी हो तो हम भी केंद्र का विरोध 'करो या मरो' की भावना से ही करेंगे.
उल्लेखनीय है कि 1980 के दशक में असम के युवाओं ने दूसरे राज्यों से आने वाली लोगों की बाढ़ का विरोध किया था. महंत, पांच साल से अधिक चले उस आंदोलन के तत्कालीन युवा नेता थे. असम समझौता उस आंदोलन का ही परिणाम था. उसके बाद ही महंत का दल असम गण परिषद कुछ वक्त सत्ता में भी रहा. एक वक्त ऐसा था जब उन्हें असम के मसीहा की संज्ञा दी जाती थी. मगर फिर भाजपा के साथ जाकर उन्होंने असम की जनता की उम्मीदों को आघात पहुंचाया. इसके लिए उन्हें सार्वजनिक तौर पर आलोचना का भी सामना करना पड़ता है. अब नागरिकता कानून के सवाल पर उन्होंने असम की भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया है.
उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश:
प्रश्न. पहले 'कैब' और अब 'का' (सीएए) यह हकीकत अब सच हो गई है, उस पर आपके दल की क्या भू्मिका है?
उत्तर: विरोध. संपूर्ण विरोध. अंतिम सांस तक विरोध ही हमारी भूमिका है. अगर असम के लोगों के अस्तित्व पर ही हमला हो रहा हो, हम अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक होने वाले हों तो फिर ऐसे जीने का क्या मतलब? यही हमारे सामने आज सबसे बड़ा सवाल है. असम को 'बंगाल' बनाकर हम पर बंगालियों की बाढ़ लादने वाला घातक कानून है यह.
प्रश्न: एक तरफ पूरे देश में एनआरसी करेंगे की घोषणा और दूसरी तरफ असम एनआरसी, अब उस एनआरसी का क्या होगा?
उत्तर: यही तो दुर्भाग्य है. असम के लोगों ने बिना किसी बाधा के एनआरसी प्रक्रिया को पूरा किया और अब एक और कानून लाकर केंद्र सरकार उसको ही खारिज करना चाहती है. बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू बंगालियों को असम पर लादकर असम को 'बंगाली बहुल' बनाने का यह दांव है. हमारी भाषा, हमारी संस्कृति, रोजगार और हमारे अस्तित्व पर ही यह सीधा हमला है. एनआरसी नाम का जो मजाक हुआ वह मन में खटास पैदा कर देने वाला है.
प्रश्न: अब आगे क्या?
उत्तर: भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. अगर मोदी सरकार इसी मूल बात को बदलने जा रही है तो हम असम और पूर्वोत्तर के भारतीय उसका जान की बाजी लगाकर विरोध करेंगे. हमें किसी भी धर्म के 'विदेशी' लोग नहीं चाहिए. हमने कई बार लोगों की ऐसी बाढ़ को झेला है और पछताए भी हैं. इसके बाद असम सहित पूर्वोत्तर भारत में जो कुछ भी असंतोष उमड़ेगा और उसके जो कुछ भी परिणाम होंगे उसके लिए केवल केंद्र सरकार जिम्मेदार होगी. किसी को भी असम के लोगों की सहनशक्ति की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए.