भीमा कोरेगांव मामला: पांचों सामाजिक कार्यकर्ता 17 सितंबर तक रहेंगे नजरबंद, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई टली
By भारती द्विवेदी | Published: September 12, 2018 01:13 PM2018-09-12T13:13:30+5:302018-09-12T13:19:04+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर तक इन पांचों कार्यकर्ताओं को नजरबंद रखने का ही आदेश दिया है।
नई दिल्ली, 12 सितंबर:भीमा कोरेगांव मामला में गिरफ्तार हुए पांचों सामाजिक कार्यकर्ता कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस को फिलहाल राहत मिलते नहीं दिख रही है।
इन पांचों के हाउस अरेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करने वाला था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई 17 सितंबर तक टल गई है, जिसकी वजह से पांचों सामाजिक कार्यकर्ता 17 सितंबर तक नजरबंद ही रहेंगे। इससे पहले भी छह सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई थी। अगली तारीख 12 सितंबर यानी आज की दी गई थी।
Five accused activists to continue to be in house arrest till September 17, when the Supreme Court will hear the matter. #BhimaKoregaonCasepic.twitter.com/yI3F9ZuWss
— ANI (@ANI) September 12, 2018
बता दें कि 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने अलग-अलग जगहों से इन पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। 29 अगस्त को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इन कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक घरों में ही नजरबंद रखने का आदेश देते हुये महाराष्ट्र पुलिस को नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के जवाब में ही राज्य पुलिस ने बुधवार 5 सिंतबर को हलफनामा दाखिल किया था।
न्यायालय ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में इन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर तथा अन्य की यचिका पर 29 अगस्त को सुनवाई के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ''असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व'' है।
क्या था पूरा मामला
एक जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना के बीच पुणे के निकट भीमा नदी के किनारे कोरेगांव नामक गाँव में युद्ध हुआ था। एफएफ स्टॉन्टन के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को गंभीर नुकसान पहुँचाया। ब्रिटिश संसद में भी भीमा कोरेगांव युद्ध की प्रशंसा की गयी। ब्रिटिश मीडिया में भी इस युद्ध में अंग्रेज सेना की बहादुरी के कसीदे काढ़े गये। इस जीत की याद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोरेगांव में 65 फीट ऊंचा एक युद्ध स्मारक बनवाया जो आज भी यथावत है। भीमा कोरेगांव के इतिहास में बड़ा मोड़ तब आया जब बाबासाहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कोरेगांव युद्ध की 109वीं बरसी पर एक जनवरी 1927 को इस स्मारक का दौरा किया।
शिवराम कांबले के बुलावे पर ही बाबासाहब कोरेगांव पहुंचे थे। बाबासाहब ने भीमा कोरेगांव स्मारक को ब्राह्मण पेशवा के जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ महारों की जीत के प्रतीक के तौर पर इस युद्ध की बरसी मनाने की विधवित शुरुआत की। इस साल एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव की 200वीं बरसी पर आयोजित आयोजन का कई दक्षिणपंथी संगठनों ने विरोध किया था। विरोध करने वालों में अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा, हिन्दू अगाड़ी और राष्ट्रीय एकतमाता राष्ट्र अभियान ने शामिल थे। ये संगठन इस आयोजन को राष्ट्रविरोधी और जातिवादी बताते हैं।