महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन का प्रथम दीक्षांत समारोह सम्पन्न
By बृजेश परमार | Published: December 3, 2019 03:03 AM2019-12-03T03:03:31+5:302019-12-03T03:03:31+5:30
प्रथम दीक्षान्त समारोह में सारस्वत अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए संस्कृत विद्वान प्रो.उमा वैद्य ने कहा कि महर्षि पाणिनी विश्वविद्यालय संस्कृत भाषा का संरक्षण कर रहा है
महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन का प्रथम दीक्षांत समारोह सोमवार को उज्जैन में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मध्य प्रदेश के राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री लालजी टंडन ने कहा कि संस्कृत एवं भारतीय संस्कृति को समूचे विश्व में फैलाना है। भारत ने समूचे विश्व को शिक्षा दी है। विश्व के लोग यहां से पढ़ कर गए और सारे विश्व में ज्ञान के प्रकाश को फैलाया। भारत को पुनः जगतगुरु बनाने की आज आवश्यकता है।
राज्यपाल ने विद्याथियों से कहा कि उठो जागो औऱ लक्ष्य प्राप्त करो। आज हमने अपने ज्ञान के जिस भंडार को खो दिया है, उसे फिर पाना है। आप को उपाधि के साथ यह जिम्मेदारी दी गई है, जिसे आपको निभाना है। हमारे ज्ञान को सारे विश्व के सामने लाना है। भारत को फ़िर महान, फिर जगतगुरु बनाना है।
कार्यक्रम में राज्यपाल श्री लालजी टंडन द्वारा विद्यार्थियों को विभिन्न पीएचडी स्नातकोत्तर एवं स्नातक उपाधि प्राप्तकर्ता छात्रों, स्वर्ण पदक प्राप्तकर्ता छात्रों, रजत एवं कांस्य पदक प्राप्तकर्ता छात्रों को उपाधि एवं पदक प्रदान किये।उच्च शिक्षा मंत्री श्री जीतू पटवारी ने भी संबोधन दिया।
समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पंकज लक्ष्मण जानी, सारस्वत अतिथि श्रीमती उमा वैद्य, विश्वविघालय के संस्थापक कुलपति डॉ मोहन गुप्त, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बालकृष्ण शर्मा आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम में सभी का आह्वान करते हुए कहा गया "वदतु संस्कृतं, जयतु भारतं।"
-हम क्यों जगदगुरू थे, इसका चिन्तन होना चाहिये हमारी सम्पूर्ण संस्कृति संस्कृत में ही निहित है-राज्यपाल श्री टंडन ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा
राज्यपाल श्री लालजी टंडन ने दीक्षान्त समारोह में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति की जो उपलब्धियां हैं, उसका उद्भव संस्कृत भाषा से हुआ है। महर्षि पाणिनी पर हमें गर्व होना चाहिये। हम उस परम्परा के वारिस है, जिसने भारत को जगदगुरू बनाया है। संस्कृत को जीवित रखने के प्रयास होना चाहिये। हमारी सम्पूर्ण संस्कृति संस्कृत में ही है। हम क्यों जगदगुरू थे, इसका चिन्तन होना चाहिये। दुनिया यह जानती है कि भारत ने ही सबसे पहले शल्य चिकित्साशास्त्र दिया। यह निर्विवाद है कि आचार्य सुश्रुत ने सर्जरी में सबसे मुश्किल विद्या प्लास्टिक सर्जरी को जन्म दिया। हमारे पूर्वजों ने विश्व को शून्य एवं दशमलव का अविष्कार करके दिया। संस्कृत जितनी सिकुड़ती गई उतनी ही हमारी संस्कृति पीछे जाती रही है। संस्कृत और हिन्दी में परस्पर सामंजस्य होना चाहिये। जो संस्कृत में कहा जा रहा है, वह हिन्दी में अनुवादित होना चाहिये।
राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि उज्जैन के सान्दीपनि गुरू ने गुरूकुल शिक्षा पद्धति दुनिया को दी है। कृष्ण भगवान वेदान्त के ज्ञाता होने के बाद भी कृषि और गोपालन के ज्ञाता थे। हमारी शिक्षा पद्धति श्रुति व स्मृति से जुड़ी रही है, इसी कारण अनेक कालों में हमारे विचार नष्ट नहीं हो सके। संस्कृत भाषा पढ़ने का मतलब यह है कि हम अपनी धरोहर की रक्षा कर रहे हैं। नव-दीक्षित संस्कृत के विद्यार्थियों पर यह दायित्व है कि वे संस्कृत साहित्य की रक्षा करें और इसे आगे बढ़ायें।
-संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है -उच्च शिक्षा मंत्री पटवारी
पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षान्त समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए प्रदेश के उच्च शिक्षा, खेल एवं युवा कल्याण मंत्री जीतू पटवारी ने कहा कि हिन्दुस्तान की जितनी भी क्षेत्रीय भाषाएं हैं, सबका उद्गम संस्कृत से हुआ है। संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है। उन्होंने कहा कि उज्जैन के सान्दीपनि महर्षि के गुरूकुल में भगवान कृष्ण एवं सुदामा दोनों ने यहां शिक्षा प्राप्त की। पुराने गुरूकुलों की परम्परा में न कोई छोटा होता था न बड़ा। राजा और रंक एक साथ ज्ञान प्राप्त करते थे। समानता का यह सन्देश विश्वभर में भारत की धरती से फैला है। सारे विश्व को गीता का ज्ञान भी हम ही ने दिया है। महर्षि पाणिनी ने भाषा को व्याकरण दिया।
-पाणिनी विश्वविद्यालय संस्कृत भाषा का संरक्षण कर रहा है-प्रो.उमा वैद्य
प्रथम दीक्षान्त समारोह में सारस्वत अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए संस्कृत विद्वान प्रो.उमा वैद्य ने कहा कि महर्षि पाणिनी विश्वविद्यालय संस्कृत भाषा का संरक्षण कर रहा है, इस बात में कोई संशय नहीं है। उन्होंने कहा कि तैतिरीय उपनिषद शिक्षावल्ली में स्नातकों को उपदेश देते हुए लिखा है सत्य बोलना और धर्म का आचरण करना। यह भारतीय संस्कृति की दो आधारशिला है। विद्यार्थियों के लिये उपाधि ग्रहण जीवन का परिवर्तन बिन्दु है, क्योंकि वास्तव में यह ब्रह्मचर्याश्रम की परिसमाप्ति है। आगे जीवन में अनेक प्रकार के संघष आयेंगे। उसका सशक्त होकर समाधान ढूंढना पड़ेगा, इसलिये विद्यार्थियों को चाहिये कि वे परिवार, समाज और राष्ट्र के दायित्वों के निर्वहन करते हुए नीर-क्षीर विवेक द्वारा सत्यमार्ग का अनुसरण करें।
प्रथम दीक्षान्त समारोह के प्रारम्भ में राज्यपाल के कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने पर राष्ट्रगान की धुन बजाई गई। अतिथियों का शाल, श्रीफल से स्वागत किया। कुलाधिपति श्री लालजी टंडन ने महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलगान का विमोचन किया। इसके बाद छात्र-छात्राओं कुलगान का गायन किया । स्वागत भाषण देते हुए कुलपति पंकज एम.जानी ने बताया कि विश्वविद्यालय का प्रमुख लक्ष्य योग्य नागरिकों का निर्माण करना है। उन्होंने बताया कि सत्र 2017 से 434 विद्यार्थियों को उपाधि दी गई है।कार्यक्रम के अन्त में उप कुलपति डॉ.मदनमोहन उपाध्याय ने आभार व्यक्त किया।
भगवान महाकाल के दर्शन कर मन को मिली शान्ति –राज्यपाल
राज्यपाल ने भगवान महाकालेश्वर का पूजन-अर्चन किया
प्रदेश के राज्यपाल श्री लालजी टंडन ने सोमवार को अपने उज्जैन प्रवास के दौरान भगवान श्री महाकालेश्वर का दर्शन कर पूजन-अभिषेक किया। पूजन मंदिर के शासकीय पुजारी पं. घनश्याम शर्मा और पं. संजय पुजारी द्वारा संपन्न कराया गया। राज्यपाल के मंदिर आगमन पर श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक सुजान सिंह रावत द्वारा उन्हें पुष्प गुच्छ भेंट किया गया। इस दौरान श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष एवं कलेक्टर शशांक मिश्र, पुलिस अधीक्षक सचिन अतुलकर, एवं अन्य अधिकारी गण मौजूद थे।भगवान महाकाल के पूजन–अभिषेक के पश्चात राज्यपाल ने नंदीहॉल में महामृत्युंजय जाप किया। प्रशासक श्री रावत द्वारा राज्पाल को भगवान श्री महाकालेश्वर का प्रसाद भेंट किया । उन्होंने मीडिया से चर्चा के दौरान कहा कि, भगवान श्री महाकालेश्वर के दर्शन कर मन को शांति मिली है, राज्यपाल ने मंदिर की दर्शन व्यवस्था की प्रशांसा की और कहा कि, भगवान श्री महाकालेश्वर अंतर्यामी है। वे सभी की मनोकामना पूर्ण करेंगे।