प्राथमिकी इनसाइक्लोपीडिया नहीं है, जो हर तथ्य एवं ब्योरे का खुलासा कर दे : उच्चतम न्यायालय
By भाषा | Updated: April 13, 2021 22:21 IST2021-04-13T22:21:52+5:302021-04-13T22:21:52+5:30

प्राथमिकी इनसाइक्लोपीडिया नहीं है, जो हर तथ्य एवं ब्योरे का खुलासा कर दे : उच्चतम न्यायालय
नयी दिल्ली, 13 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि प्राथमिकी कोई ‘‘इनसाइक्लोपीडिया’’ नहीं होती है, जो किसी अपराध के बारे में सभी तथ्यों एवं ब्योरे का खुलासा कर दे और जब पुलिस की जांच चल रही हो तो अदालतों को आरोपों के गुण-दोष में नहीं पड़ना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि पुलिस को जांच पूरी करने की अनुमति दी जानी चाहिए और उच्च न्यायालयों को समझना चाहिए कि न्याय के आपराधिक प्रशासन में त्वरित जांच की जरूरत होती है और शुरुआती चरण में उन्हें आपराधिक कार्यवाही में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि उसने उच्च न्यायालयों द्वारा पारित कई आदेशों को देखा है, जिसमें जांच के दौरान या आरोप पत्र दायर किए जाने तक आरोपी को गिरफ्तार नहीं करने के निर्देश दिए गए हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘ प्राथमिकी कोई इनसाइक्लोपीडिया नहीं होती जो अपराध से जुड़े सभी तथ्यों एवं ब्योरे का खुलासा कर देगी। इसलिए पुलिस की जांच जब चल रही हो तो अदालतों को प्राथमिकी के आरोपों के गुण-दोष पर नहीं जाना चाहिए। पुलिस को जांच पूरी करने की अनुमति होनी चाहिए।’’ पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी थे।
पीठ ने 64 पन्ने के अपने फैसले में कहा, ‘‘अस्पष्ट तथ्यों के आधार पर यह कहना कि शिकायत/प्राथमिकी जांच करने योग्य नहीं है या यह कानून की प्रक्रिया का दुरूपयोग है, असमय निष्कर्ष पर पहुंचने की तरह है।’’
शीर्ष अदालत ने पिछले वर्ष सितंबर के बंबई उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया जिसने 2019 में ठगी, धोखाधड़ी एवं अन्य आरोपों में दर्ज प्राथमिकी के आरोपी के खिलाफ ‘‘कड़े कदम नहीं उठाने’’ के निर्देश दिए थे।
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