निर्भीक, कल्पना से भरपूर, शब्दों का अभिनव प्रयोग ज्ञानपीठ विजेता नीलमणि फूकन की पहचान

By भाषा | Updated: December 10, 2021 12:58 IST2021-12-10T12:58:15+5:302021-12-10T12:58:15+5:30

Fearless, full of imagination, innovative use of words, recognition of Jnanpith winner Sapphire Phukan | निर्भीक, कल्पना से भरपूर, शब्दों का अभिनव प्रयोग ज्ञानपीठ विजेता नीलमणि फूकन की पहचान

निर्भीक, कल्पना से भरपूर, शब्दों का अभिनव प्रयोग ज्ञानपीठ विजेता नीलमणि फूकन की पहचान

(दुर्बा घोष)

गुवाहाटी, 10 दिसंबर निर्भीक, मुद्दों पर आधारित, कल्पना से भरपूर और शब्दों के अभिनव प्रयोग के साथ विनम्र व्यवहार ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता असमिया कवि नीलमणि फूकन की पहचान रही है, जिनकी लेखनी को समकालीन लेखकों से प्रशंसा मिली और जिसने युवा लेखकों एवं पाठकों को आकर्षित किया।

सामाजिक रूप से जागरुक कवि फूकन ने 1950 के दशक में लेखन शुरू किया और दशकों तक विचारों और शब्दों के साथ प्रयोग किया। वह दो साल पहले तक लिखते रहे, लेकिन अब अस्वस्थता ने उनकी कलम को और अधिक कविताएं रचने से रोक दिया है।

धुंधली होती यादों के बावजूद, जब इस सप्ताह की शुरुआत में उनकी पत्नी दुलुमणि फूकन ने उन्हें सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार जीतने की खबर दी, तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और 88 वर्षीय ‘पद्मश्री’ से सम्मानित कवि ने जवाब दिया, ‘‘भाल खोबोर, भाल खोबोर (यह एक अच्छी खबर है)।’’

उनकी पत्नी ने कहा कि परिवार खुश है, लेकिन इस बात का अफसोस भी है कि यह सम्मान ऐसे समय में मिला है, जब वह अस्वस्थता के कारण दिए गए सम्मान का आनंद लेने की स्थिति में नहीं है।

उनके बेटे अमिताभ फूकन ने कहा, हालांकि यह पुरस्कार युवा कवियों और लेखकों को प्रेरित और प्रोत्साहित करेगा, जो निश्चित रूप से असमिया साहित्य को समृद्ध करेंगे।

बीरेंद्रनाथ भट्टाचार्य और ममूनी (इंदिरा) रायसम गोस्वामी के बाद पूर्वोत्तर के राज्य से ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले वह तीसरे साहित्यकार हैं। असम साहित्य सभा के अध्यक्ष कुलधर सैकिया ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि फूकन की कृतियों ने असमिया कविता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है क्योंकि उनका लेखन लोगों के दिलों तक पहुंचता है।

सैकिया ने कहा, ‘‘विदेशी भाषा विशेष रूप से जापानी कविताओं के उनके अनुवाद ने पाठकों को स्थानीय भाषा में व्यक्त उनकी छवियों और भावनाओं से परिचित कराया।’’

सैकिया ने कहा कि असम साहित्य सभा पहले ही उन्हें ‘जातीय कवि’ और ‘साहित्याचार्य' की उपाधि से सम्मानित कर चुकी है और ‘‘हम यह सुनिश्चित करने के लिए निकट भविष्य में और कदम उठाएंगे कि उनके काम राज्य के भीतर और बाहर अधिक लोगों तक पहुंचे।’’

‘फुली ठोका सूर्यमुखी फुलोर फले’ (टू ए सनफ्लावर इन ब्लूम), ‘गोलापी जमूर लग्न’ (द रास्पबेरी मोमेंट), ‘कोबीता’ (कविताएं) और ‘नृत्यरता पृथ्वी’ (डांसिंग अर्थ) साहित्य अकादमी विजेता लेखक की कुछ प्रमुख कृतियों में से हैं, जो असमिया साहित्य के इतिहास में अंकित रहेंगी।

फूकन का जन्म और पालन-पोषण ऊपरी असम के शहर डेरगांव के सिलवन में हुआ था, जिसने उनकी काव्य संवेदनाओं पर अमिट छाप छोड़ी क्योंकि अपनी रचनाओं में वह अक्सर प्रकृति के बीच शरणागत होने की ख्वाहिश जता चुके हैं और जीवन और जीवन की जटिलताओं का गहराई से विश्लेषण करते समय इसे एक रूपक के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

असमिया साहित्यिक पत्रिका ‘सतसोरी’ की प्रसिद्ध लेखिका और संपादक अनुराधा सरमा पुजारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि नयी पीढ़ी के कवियों को फूकन की कविता से बहुत कुछ सीखना है, खासकर आधुनिक संदर्भ में पारंपरिक शब्दों का इस्तेमाल। उनकी कविता आधुनिक शैली में होती है, लेकिन उनकी भाषा और कल्पना पारंपरिक है। कई लोगों को उनकी कविताएं जटिल लग सकती हैं और कवि भ्रमित प्रतीत हो सकता है, लेकिन उन्होंने अपने भीतर गहराई से खोज की, आत्मनिरीक्षण किया और अंत में तीक्ष्ण, अंतर्दृष्टिपूर्ण और जादुई कविता का निर्माण किया।’’

उन्होंने कहा कि भारतीय शास्त्रीय संगीत, कला और प्रकृति का कवि पर गहरा प्रभाव है और उनकी ‘कविता तीनों के संयोजन को दर्शाती है।’ विशेष रूप से कला फूकन के दिल के बेहद करीब थी।

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Web Title: Fearless, full of imagination, innovative use of words, recognition of Jnanpith winner Sapphire Phukan

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