किसान प्रतिनिधियों ने सरकार के समिति गठित करने के प्रस्ताव को ठुकराया, बातचीत बेनतीजा रही

By भाषा | Published: December 1, 2020 11:57 PM2020-12-01T23:57:02+5:302020-12-01T23:57:02+5:30

Farmer representatives turned down the government's proposal to set up a committee, negotiations were inconclusive | किसान प्रतिनिधियों ने सरकार के समिति गठित करने के प्रस्ताव को ठुकराया, बातचीत बेनतीजा रही

किसान प्रतिनिधियों ने सरकार के समिति गठित करने के प्रस्ताव को ठुकराया, बातचीत बेनतीजा रही

नयी दिल्ली, एक दिसंबर नये कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे 35 किसान संगठनों की चिंताओं पर गौर करने के लिए एक समिति गठित करने के सरकार के प्रस्ताव को किसान प्रतिनिधियों ने ठुकरा दिया। सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों के साथ मंगलवार को हुई लंबी बैठक बेनतीजा रही।

इस बीच पिछले छह दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हजारों प्रदर्शनकारियों के पक्ष में और वर्गों से समर्थन जुटने लगे।

वार्ता में भाग लेने वाले किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि विज्ञान भवन में हुई लंबी बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई। सरकार ने बृहस्पतिवार यानी तीन दिसंबर को अगले दौर की वार्ता के लिए किसान प्रतिनिधियों को बुलाया है।

सरकारी अधिकारियों ने कहा कि वार्ता का दौर जारी रहेगा और अगली बैठक बृहस्पतिवार को निर्धारित की गई है। अधिकारियों ने हालांकि, कहा कि बाद में शाम को कृषि मंत्रालय में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक का एक और दौर चला।

बीकेयू नेता नरेश टिकैत ने भी कहा कि किसानों का एक और प्रतिनिधिमंडल शाम सात बजे सरकार से मिल रहा है।

उन्होंने कहा कि हाल में लागू किये गये कृषि कानूनों के अलावा अन्य मुद्दों पर भी विचार विमर्श किये जाने की संभावना है। उन्होंने बताया कि वार्ता के अहम बिन्दुओं में किसानों के लिए बिजली शुल्क का मुद्दा होगा।

बैठक के लिए जाते समय दिल्ली-गाजियाबाद की सीमा पर टिकैत ने संवाददाताओं से कहा कि इस बैठक में हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के प्रतिनिधियों के भी हिस्सा लेने की उम्मीद है।

विज्ञान भवन में किसान संगठन के प्रतिनिधियों के साथ पहली बैठक के समाप्त होते ही यह बैठक शुरु हुई। लगभग दो घंटे चली बैठक में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की एकमत राय थी कि तीनों नये कृषि कानूनों को निरस्त किया जाना चाहिये। किसानों के प्रतिनिधियों ने इन कानूनों को कृषक समुदाय के हितों के खिलाफ करार दिया।

प्रदर्शनकारी किसानों की आशंका है कि केन्द्र सरकार के कृषि संबंधी कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था समाप्त हो जायेगी और किसानों को बड़े औद्योगिक घरानों की दया पर छोड़ दिया जायेगा।

सरकार लगातार कह रही है कि नए कानून किसानों को बेहतर अवसर प्रदान करेंगे और इनसे कृषि में नई तकनीकों की शुरूआत होगी।

किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ यहां विज्ञान भवन में बैठक के लिए, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ रेलवे और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश (जो पंजाब के एक सांसद भी हैं) उपस्थित थे।

बैठक के बाद भारत किसान यूनियन (एकता उग्राहन) के अध्यक्ष, जोगिन्दर सिंह उग्राहन ने कहा कि वार्ता बेनतीजा रही और सरकार ने तीन दिसंबर को अगली बैठक बुलाई है।

उधर, तोमर ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हमने विस्तृत चर्चा की। हम दोबारा तीन दिसंबर को मिलेंगे। हमने उन्हें एक छोटी समिति बनाने का सुझाव दिया, लेकिन उन्होंने कहा कि वे सभी बैठक में मौजूद रहेंगे। इसलिए, हम इस पर सहमत हुए।’’

यह पूछे जाने पर कि सरकार भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रमुख राकेश टिकैत के साथ अलग से चर्चा क्यों कर रही है, मंत्री ने कहा, ‘‘वे हमारे पास आए हैं, इसलिए हम उनके साथ भी चर्चा कर रहे हैं। हम सभी किसानों के साथ चर्चा करने के लिए तैयार हैं।’’

यह पूछे जाने पर कि गतिरोध कब समाप्त होगा, उन्होंने कहा, ‘‘वक्त ही बता सकता है।’’

प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने पर जोर दिये जाने के बारे में तोमर ने कहा, ‘‘हमने उन्हें कानूनों में विशिष्ट पहलुओं को उभारकर सामने लाने को कहा है और हम उस विचार विमर्श करने और उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए तैयार हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर उन्हें कानून के किसी विशेष हिस्से पर आपत्ति है तो वे सामने रखें, हम उसपर गौर करेंगे।’’

भारत किसान यूनियन (एकता उग्राहन) के सदस्य रूपसिंह सनहा ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘किसान संगठनों ने नए कृषि कानूनों से संबंधित मुद्दों पर विचार करने के लिए पांच सदस्यीय समिति बनाने के सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।’’

यह संगठन, नये कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों के सबसे बड़े दलों में से है।

हालांकि, सरकारी पक्ष का ठोस रुख यह है कि किसानों के मुद्दों पर गौर करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनायी जानी चाहिये और उनकी किसान संगठनों से अपेक्षा है कि वे इस प्रस्ताव पर विचार करें।

सूत्रों ने कहा कि मंत्रियों का विचार था कि इतने बड़े समूहों के साथ बातचीत करते हुए किसी निर्णय पर पहुंचना मुश्किल है और इसलिए उन्होंने एक छोटे समूह के साथ बैठक का सुझाव दिया। हालांकि, किसान नेताओं का मानना है कि वह सामूहिक तौर पर ही मुलाकात करेंगे। यूनियन नेताओं ने कहा कि उन्हें आशंका है कि सरकार उनकी एकता और उनके विरोध प्रदर्शन को तोड़ने की कोशिश कर सकती है।

बीकेयू (दाकौंडा) बठिंडा के जिला अध्यक्ष बलदेव सिंह ने कहा, "सरकार ने हमें बेहतर चर्चा के लिए एक छोटी समिति बनाने के लिए 5-7 सदस्यों के नाम देने के लिए कहा, लेकिन हमने इसे अस्वीकार कर दिया। हमने कहा कि हम सभी उपस्थित रहेंगे।"

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘सरकार एक छोटे समूह के लिए जोर दे रही है क्योंकि वे हमें विभाजित करना चाहते हैं। हम सरकार की चालों से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ हैं।"

सभा स्थल के आसपास भारी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी।

बैठक से कुछ घंटे पहले, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, अमित शाह, तोमर और गोयल, भाजपा प्रमुख जे पी नड्डा के साथ, केंद्र के नए कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन पर विस्तारपूर्वक विचार विमर्श हुआ।

पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा दिल्ली की सिंघू और टिकरी सीमाओं पर शांतिपूर्ण धरना जारी रहा। सोमवार को उत्तर प्रदेश से लगती गाजीपुर सीमा पर भी प्रदर्शनकारी किसानों का हुजूम जुटा।

स्थिति को भांपते हुये विपक्षी दलों ने भी सरकार पर अपना दबाव बढ़ा दिया और केंद्र सरकार से किसानों की ‘‘लोकतांत्रिक लड़ाई का सम्मान’’ करते हुये नये कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की है।’’

इससे पूर्व 13 नवंबर को हुई एक बैठक गतिरोध तोड़ने में विफल रही थी और अगली बैठक मूल रूप से तीन दिसंबर के लिए निर्धारित की गई, लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के बढ़ते विरोध प्रदर्शन के चलते यह बैठक तय समय से पहले ही करनी पड़ी।

इस बीच दलित नेता और भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद किसानों के आंदोलन के समथन में दिल्ली-गाजीपुर बार्डर पर पहुंच गये। चंडीगढ़ में पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार प्राप्त कर्ता करतार सिंह ने कहा कि वे दिल्ली जाने के रास्ते में किसानों पर बल प्रयोग को लेकर पुरस्कार वापस कर देंगे। उधर, संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ महीनों तक चले आंदोलन की चेहरा रहीं और शाहीन बाग दादी नाम से चर्चित बिल्की दादी को पुलिस ने सिंघू बार्डर नहीं जाने दिया।

योगगुरू रामदेव ने कहा कि केंद्र को कानूनों को लाने से पहले व्यापक चर्चा करनी चाहिए थी लेकिन उनका यह भी कहना था कि प्रधानमंत्री की मंशा पर सवाल खड़ा करने का कोई कारण नहीं है।

इस बीच दिल्ली की सीमाओं पर मंगलवार को पुलिस बल की भारी तैनाती रही और कंक्रीट के बैरियर लगाये गये, वहां कई स्तरीय बैरीकेड लगाये गये हैं। गुड़गांव और झज्जर बहादुरगढ़ बार्डर भी एहतियात के तौर पर बंद कर दिये गये हैं।

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