गरीबी पर लिखी किताब, हर किसी ने माना लोहा, पति-पत्नी को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 14, 2019 06:15 PM2019-10-14T18:15:16+5:302019-10-14T18:15:16+5:30

नोबेल समिति ने सोमवार को एक बयान जारी कर तीनों को वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने के शोध कार्यों के लिये 2019 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की। बनर्जी और उनकी फ्रांसीसी-अमेरिकी पत्नी डुफ्लो प्रतिष्ठित मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में काम करते हैं। जबकि क्रेमर हार्वर्ड विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

Everyone wrote a book on poverty, Nobel prize for economics to husband and wife | गरीबी पर लिखी किताब, हर किसी ने माना लोहा, पति-पत्नी को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार

विकास अर्थशास्त्र वर्तमान में शोध का एक प्रमुख क्षेत्र है।

Highlightsइस वर्ष के पुरस्कार विजेताओं का शोध वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता को बेहतर बनाता है। मात्र दो दशक में उनके नये प्रयोगधर्मी दृष्टिकोण ने विकास अर्थशास्त्र को पूरी तरह बदल दिया है।

भारतीय-अमेरिकी अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो और अमेरिका के अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर को सोमवार को संयुक्त रूप से 2019 के लिये अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार विजेता घोषित किया गया है।

नोबेल समिति ने सोमवार को एक बयान जारी कर तीनों को वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने के शोध कार्यों के लिये 2019 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की। बनर्जी और उनकी फ्रांसीसी-अमेरिकी पत्नी डुफ्लो प्रतिष्ठित मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में काम करते हैं। जबकि क्रेमर हार्वर्ड विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

डुफ्लो अर्थशास्त्र का नोबल पाने वाली दूसरी महिला हैं। वहीं वह यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की अर्थशास्त्री भी है। नोबेल पुरस्कार के तहत 90 लाख क्रोनर (स्वीडन की मुद्रा) यानी 9,18,000 डॉलर का नकद पुरस्कार, एक स्वर्ण पदक और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। इस राशि को विजेताओं के बीच बराबर बांट दिया जाता है।

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंस के बयान के मुताबिक, ‘‘इस वर्ष के पुरस्कार विजेताओं का शोध वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता को बेहतर बनाता है। मात्र दो दशक में उनके नये प्रयोगधर्मी दृष्टिकोण ने विकास अर्थशास्त्र को पूरी तरह बदल दिया है। विकास अर्थशास्त्र वर्तमान में शोध का एक प्रमुख क्षेत्र है।’’

उनके स्कूलों में उपचारात्मक शिक्षण के प्रभावी कार्यक्रमों से 50 लाख से अधिक भारतीय बच्चे लाभांवित हुए हैं। यह उनके विभिन्न अध्ययनों में से एक का प्रत्यक्ष प्रमाण है। दूसरा उदाहरण निवारक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भारी सब्सिडी दिए जाने का है जिसे कई देशों में लागू किया गया है।

बयान में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने के लिए सर्वश्रेष्ठ तरीकों को लेकर भरोसेमंद जवाब हासिल करने के लिए इन्होंने एक नए दृष्टिकोण को पेश किया है। उनके शोध परिणामों और उसके आधार पर शोध करने वाले शोधार्थियों के शोधों ने गरीबी से लड़ने की हमारी योग्यताओं को उल्लेखनीय तौर पर बेहतर बनाया है। पुरस्कार मिलने की घोषणा के तुरंत बाद एक संवाददाता सम्मेलन में डुफ्लो ने कहा, ‘‘ यह (पुरस्कार मिलना) दिखाता है कि एक महिला के लिए सफल होना और उस सफलता के लिए पहचान मिलना संभव है। मैं उम्मीद करती हूं कि इससे कई लोगों, अन्य महिलाओं को उनका काम जारी रखने की प्रेरणा मिलेगी। यह पुरुषों को भी महिलाओं को उनके हक का सम्मान देने के लिए प्रेरित करेगा।’’

नोबेल पुरस्कार की स्थापना 1895 में महान विज्ञानी अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में की गयी थी। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंस रसायन, भौतिकी, चिकित्सा, साहित्य और शांति जैसे पांच विषयों के लिए यह पुरस्कार प्रदान करती है। बाद में 1968 में स्वीडन के केंद्रीय बैंक स्वेरिग्स रिक्सबैंक ने अर्थशास्त्र विज्ञान में नोबल स्मृति पुरस्कार की स्थापना की जिसे अब अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार के तौर पर जाना जाता है।

बनर्जी, 58 वर्ष, ने भारत में कलकत्ता विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की। इसके बाद 1988 में उन्होंने हावर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। एमआईटी की वेबसाइट के अनुसार वर्तमान में वह मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के फोर्ड फाउंडेशन अंतरराष्ट्रीय प्रोफेसर हैं। बनर्जी ने वर्ष 2003 में डुफ्लो और सेंडिल मुल्लाइनाथन के साथ मिलकर अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब (जे-पाल) की स्थापना की।

वह प्रयोगशाला के निदेशकों में से एक हैं। बनर्जी संयुक्तराष्ट्र महासचिव की ‘2015 के बाद के विकासत्मक एजेंडा पर विद्वान व्यक्तियों की उच्च स्तरीय समिति’ के सदस्य भी रह चुके हैं। डुफ्लो का जन्म 1972 में हुआ। वह जे-पाल की सह-संस्थापक और सह-निदेशक हैं। वह एमआईटी के अर्थशास्त्र विभाग में गरीबी उन्मूलन और विकास अर्थशास्त्र की अब्दुल लतीफ जमील प्रोफेसर हैं। डुफ्लो ने बनर्जी के साथ मिलकर ‘गरीबी अर्थशास्त्र : वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने के तरीकों पर एक तार्किक पुनर्विचार’ शोधपत्र लिखा।

इसके लिए उन्हें 2011 में फाइनेंशियल टाइम्स एंड गोल्डमैन सैश बिजनेस बुक ऑफ द इयर पुरस्कार मिला। इस शोधपत्र को 17 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। डुफ्लो ने स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय समावेशन, पर्यावरण और शासन व्यवस्था जैसे विषयों पर काम किया है। उन्होंने अपनी पहली डिग्री पेरिस के इकोल नॉर्मल सुपिरियर से अर्थशास्त्र और इतिहास में हासिल की। बाद में 1999 में एमआईटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।

डुफ्लो को कई अकादमिक पुरस्कार मिले हैं। इनमें 2015 का प्रिंसेस ऑफ ऑस्ट्रियास अवार्ड फॉर सोशल साइंसेस, 2015 का ही ए.एसके सोशल साइंस अवार्ड, 2014 का इंफोसिस पुरस्कार, 2011 का डेविड एन. करशॉ अवार्ड, 2010 का जॉन बेट्स क्लार्क मेडल और 2009 की मैक ऑर्थर ‘जीनियस ग्रांट’ फेलोशिप शामिल है। वह अमेरिकन इकनॉमिक रिव्यू की संपादक हैं। इसके अलावा वह ब्रिटिश अकादमी की करेसपॉन्डिंग फेलो भी हैं। क्रेमर, 54 वर्ष, एक विकास अर्थशास्त्री हैं। वर्तमान में वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विकासशील समाजों के गेट्स प्रोफेसर हैं। 

Web Title: Everyone wrote a book on poverty, Nobel prize for economics to husband and wife

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