दस साल बाद भी भारत के गरीब बुजुर्गों को मिलती है 300 रुपये प्रतिमाह की पेंशन
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 31, 2022 05:52 PM2022-07-31T17:52:25+5:302022-07-31T17:55:35+5:30
2012 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांग पेंशन योजना के तहत पेंशन की राशि 200 रुपये से बढ़ाकर 300 रुपये प्रति माह कर दी गई थी। दस वर्ष बाद लोग अपनी पेंशन में वृद्धि की आस लगाए बैठे हैं।
नयी दिल्ली: कुछ लोगों के लिए तीन सौ रुपये की ज्यादा अहमियत नहीं होती, वे इसे एक फिल्म के टिकट, कॉफी, सप्ताहभर की सब्जी या किसी ढाबे में परिवार के साथ खाना खाकर खर्च कर सकते हैं। मगर भारत में हजारों लोग ऐसे हैं जिनकी एक महीने की पेंशन मात्र तीन सौ रुपये है। इसमें पिछली बार 2012 में वृद्धि की गई थी जब इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांग पेंशन योजना के तहत पेंशन की राशि 200 रुपये से बढ़ाकर 300 रुपये प्रति माह कर दी गई थी। दस वर्ष बाद लोग अपनी पेंशन में वृद्धि की आस लगाए बैठे हैं।
सरकार, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रमों (एनएसएपी) के तहत विभिन्न पेंशन योजनाओं का क्रियान्वयन करती है। कई लाभार्थियों के लिए पेंशन में थोड़ी सी बढ़ोतरी भी स्वागतयोग्य है, भले ही वह महंगाई को देखते हुए अपर्याप्त हो। पिछले 10 साल से बिस्तर पर पड़ी, लकवाग्रस्त हिरी देवी (65) को दिव्यांग पेंशन योजना के तहत 300 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं। दिल्ली के जहांगीरपुरी में रहने वाली हिरी देवी ने पीटीआई-भाषा से कहा, “मेरे पति 70 साल से ज्यादा की उम्र के हैं और उन्होंने महंगाई को देखते हुए दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया है। हमें इन पैसों से पांच दिन का राशन भी नसीब नहीं होता।” कुछ महीने पहले तक हिरी देवी को गैर सरकारी संगठनों से ‘एडल्ट डायपर’ और अतिरिक्त राशन की मदद मिल जाया करती थी पर महामारी की स्थिति में सुधार होते ही यह सहायता बंद हो गई। आगे कोई राहत मिलने की उम्मीद भी नहीं दिखाई देती। मध्य प्रदेश स्थित कार्यकर्ता चंद्र शेखर गौर की ओर से दायर आरटीआई पर ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जवाब दिया कि राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत पेंशन की राशि में बदलाव का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है।
इस प्रकार की कई कहानियां हैं। लाला राम (72) भी लकवाग्रस्त हैं और साफ बोल नहीं पाते। उनकी बहु गंगा ने परिवार की समस्याओं के बारे में बताया। दिल्ली के मयूर विहार में रहने वाली गंगा ने कहा, “हमारी कुल पारिवारिक आय दो हजार रुपये है जिसमें पेंशन शामिल है। छह लोगों के परिवार के लिए इसमें जीवन यापन करना बेहद कठिन है। इसके अलावा हमेशा इतनी आय नहीं रहती।” कुछ लोगों को विभिन्न स्रोतों से पेंशन मिलती है। नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर 76 वर्षीय एक महिला ने कहा कि उनके पति की 2015 में कैंसर से मृत्यु हो गई थी और अब वह तीन-तीन सौ रुपये की दो पेंशन पर निर्भर हैं जो उन्हें विधवा पेंशन योजना और वृद्धावस्था पेंशन योजना से मिलती है। रांची में रहने वाली इस महिला को झारखंड सरकार से भी कुछ पैसे मिलते हैं लेकिन कुल मिलाकर ढाई हजार रुपये भी आज के जमाने में अपर्याप्त हैं। महिला ने फोन पर पीटीआई-भाषा से कहा, “महंगाई इतनी ज्यादा है कि इससे 10 दिन का भोजन जुटाना मुश्किल हो जाता है। मैं दवाई तक नहीं खरीद सकती।”
भारत, परंपरागत रूप से एक आदर्श कल्याणकारी राज्य नहीं है और जीवनयापन करने के लिए पेंशन अपने आप में कभी पर्याप्त नहीं हो सकती लेकिन यह भी तथ्य है कि केंद्र सरकार की कई योजनाओं के तहत दी जाने वाली राशि ‘कुछ सौ’ में है और राज्य सरकार की योजनाओं में ‘कुछ हजार’ की राशि दी जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसमें परिवर्तन होना जरूरी है। राष्ट्रीय दिव्यांगजन अधिकार मंच (एनपीआरडी) के महासचिव मुरलीधरन ने पीटीआई-भाषा से कहा, “राज्यों की अपनी योजनाएं होती हैं और दिल्ली तथा आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा पेंशन दी जाती है… । ऐसे राज्य भी हैं जो केंद्र के समान ही पेंशन देते हैं। यह राशि कम से कम पांच हजार रुपये प्रतिमाह होनी चाहिए।” उन्होंने कहा कि देश में कहीं भी, केंद्र और राज्य की ओर से दी जाने वाली पेंशन मिलाकर साढ़े तीन हजार रुपये से अधिक नहीं होती। आरटीआई में साझा किये गए आंकड़ों के अनुसार, एनएसएपी के तहत सभी पेंशन योजनाओं में 2.9 करोड़ लाभार्थियों को पेंशन दी जाती है। हेल्पएज इंडिया संगठन की अधिकारी अनुपमा दत्ता ने भी न्यूनतम पांच हजार रुपये पेंशन देने पर सहमति जताई और कहा कि सरकार को गरीब बुजुर्गों के लिए पांच हजार रुपये प्रतिमाह की बेसिक सामाजिक पेंशन देने की व्यवस्था करनी चाहिए।
इनपुट- एजेंसी