"बेरोजगार और बीमार पति को कमाने वाली पत्नी दे गुजारा भत्ता", बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, जानिए पूरा मामला

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 12, 2024 09:23 AM2024-04-12T09:23:05+5:302024-04-12T09:29:07+5:30

बॉम्बे हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें अदालत ने एक महिला को अपने बेरोजगार और कई बीमारियों से ग्रसित पति को 10,000 रुपये का मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था।

"earning wife should give maintenance to her unemployed and sick husband", Bombay High Court said in its order, know the whole matter | "बेरोजगार और बीमार पति को कमाने वाली पत्नी दे गुजारा भत्ता", बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, जानिए पूरा मामला

फाइल फोटो

Highlightsमहिला को अपने बेरोजगार और कई बीमारियों से ग्रसित पति को देना होगा मासिक गुजारा भत्ताबॉम्बे हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर लगाई मुहर, कहा- पति भत्ता पाने का हकदार हैबॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि महिला ने ऐसा कोई तथ्य नहीं पेश किया, जिससे उसे भत्ता देने से छूट मिले

मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें अदालत ने एक महिला को अपने बेरोजगार और कई बीमारियों से ग्रसित पति को 10,000 रुपये का मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था।

महिला ने बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि वह जिस बैंक में शाखा प्रबंधक के पद पर कार्यरत थी, उससे उसने इस्तीफा दे दिया है।

समाचार वेबसाइट इंडिया टुडे के अनुसार महिला ने खुद बेरोजगार होने के दावे को कोर्ट में पुष्ट करने के लिए 2019 में सेवा से दिये अपने त्यागपत्र को भी संलग्न किया था, जिसे देखने के बावजूद अदालत ने आदेश को बरकरार रखा।

निचली अदालत ने अपने फैसले में इस बात को माना था कि महिला होम लोन का भुगतान कर रही है और अपने नाबालिग बच्चे का भी खर्च उठा रही थी। बावजूद उसके कल्याण की निचली अदालत ने कहा था, "महिला के उस स्रोत का खुलासा करना जरूरी है, जिससे वो अपने होम लोन और बच्चे का खर्च पूरा कर रही है। यह स्पष्ट है कि महिला बैंक से इस्तीफा देने के बाद भी कमा रही है और उसके पास आय का एक स्रोत है।"

जानकारी के अनुसार महिला के पति ने 2016 में तलाक के लिए याचिका दायर किया था। दोनों ने एक-दूसरे से अंतरिम भरण-पोषण की मांग करते हुए तलाक के लिए आवेदन दायर किया था। निचली अदालत ने महिला के आवेदन को खारिज कर दिया और उसने महिला के पति के आवेदन को स्वीकार कर लिया जिसमें उसने अपनी पत्नी को 10,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

निचली अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि महिला बैंक में प्रति माह लगभग 65,000 रुपये कमा रही थी। इसलिए उसे अपने बीमार और बेरोजगार पति को मासिक गुजारा भत्ता  देना चाहिए। पत्नी ने निचली अदालत के उसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दिया था।

मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस शर्मिला देशमुख ने कहा कि महिला के वकील ने इस बात पर विवाद नहीं किया कि आज की तारीख में महिला कमा रही है। बेंच ने कहा कि निचली अदालत में भी महिला ने अपनी आय के संबंध में कोई दस्तावेजी साक्ष्य दाखिल नहीं किया।

हाईकोर्ट ने कहा, "अगर पत्नी का यह तर्क था कि उस पर कुछ खर्चों के भुगतान का दायित्व है, तो उसके लिए इसे रिकॉर्ड पर रखना आवश्यक था ताकि ट्रायल कोर्ट गुजारा भत्ता की मात्रा का आकलन कर सके जो कि उसके पति को दिया जाना है।''

जस्टिस शर्मिला देशमुख ने आगे कहा कि यदि पति-पत्नी में से कोई एक बेरोजगार है और उसे अंतरिम गुजारा भत्ता चाहिए तो पार्टियों की आय पर विचार करते हुए ट्रायल कोर्ट गुजारा भत्ता की मात्रा का पता लगाता है।

पीठ ने अंत में कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि पत्नी को कुछ खर्च वहन करने हैं, लेकिन यह उसका दायित्व है कि वह ट्रायल कोर्ट के समक्ष आवश्यक सामग्री रखे ताकि वह भरण-पोषण की मात्रा का आकलन करने की स्थिति में हो। दुर्भाग्यवश, इस मामले में ऐसा नहीं किया गया है।"

Web Title: "earning wife should give maintenance to her unemployed and sick husband", Bombay High Court said in its order, know the whole matter

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