दुष्यंत कुमारः गज़ल को सिंहासन से उतारकर आम आदमी की चौखट तक लाने वाली शख्सियत

By आदित्य द्विवेदी | Published: September 1, 2019 01:31 PM2019-09-01T13:31:04+5:302019-09-01T13:31:04+5:30

दुष्यंत कुमार ने कविता, गीत, गज़ल, काव्य, नाटक, कहानी जैसी अनेक विधाओं में लेखन किया लेकिन गज़लों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया। पढ़िए, दुष्यंत कुमार की कुछ चुनिंदा गज़ले...

Dushyant Kumar Birth anniversary special, his life journey and selected poems | दुष्यंत कुमारः गज़ल को सिंहासन से उतारकर आम आदमी की चौखट तक लाने वाली शख्सियत

दुष्यंत कुमारः गज़ल को सिंहासन से उतारकर आम आदमी की चौखट तक लाने वाली शख्सियत

Highlightsदुष्यंत कुमार एक ऐसे पहले कवि माने जाते हैं जिन्होंने गजल को बोलचाल की भाषा में लिखा।दुष्यंत का जन्म उत्तर प्रदेश के राजपुर नवादा में 1 सितंबर 1933 को हुआ था।

जाने-माने कवि और गज़लकार दुष्यंत कुमार ने अपनी बहुचर्चित किताब 'साये में धूप' की भूमिका में लिखा है, 'उर्दू और हिन्दी अपने-अपने सिंहासन से उतरकर जब आम आदमी के बीच आती हैं तो उनमें फर्क कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। मेरी नीयत और कोशिश यही रही है कि इन दोनों भाषाओं को ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब ला सकूँ। इसलिए ये ग़ज़लें उस भाषा में लिखी गई हैं जिसे मैं बोलता हूँ।'

दुष्यंत कुमार एक ऐसे पहले कवि माने जाते हैं जिन्होंने गजल को बोलचाल की भाषा में लिखा। उसमें आम आदमी से जुड़े मुद्दे उठाए। जब उन्होंने लेखन शुरू किया तो उर्दू में ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। लेकिन इनसे इतर दुष्यंत कुमार ने अपनी अलग लकीर खींची।

दुष्यंत का जन्म उत्तर प्रदेश के राजपुर नवादा में 1 सितंबर 1933 को हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्व विद्यालय से पढ़ाई की और इस शहर से उनका गहरा लगाव रहा।  उन्होंने आकाशवाणी में नौकरी करते हुए ही तमाम रचनाएं लिखीं। 30 दिसंबर 1975 को महज 42 वर्ष की इस प्रतिभाशाली शख्सियत का निधन हो गया।

दुष्यंत कुमार ने कविता, गीत, गज़ल, काव्य, नाटक, कहानी जैसी अनेक विधाओं में लेखन किया लेकिन गज़लों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया। पढ़िए, दुष्यंत कुमार की कुछ चुनिंदा गज़ले...

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरख़तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।।


***
इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तो
इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।।

***
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए।
जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखा
बहुत से लोग वहीं छटपटा के बैठ गए।
खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने को
सब अपनी अपनी हथेली जला के बैठ गए।

***
मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है।
दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में संभावना है।

***
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

***
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ।
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।

Web Title: Dushyant Kumar Birth anniversary special, his life journey and selected poems

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