'एक देश दो विधान दो प्रधान नहीं चलेंगे' नारे से श्यामाप्रसाद मुर्खजी ने कश्मीर में उठाई थी 370 के खिलाफ आवाज

By पल्लवी कुमारी | Published: June 23, 2018 08:18 AM2018-06-23T08:18:08+5:302018-06-23T08:18:08+5:30

जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज पुण्यतिथि है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जम्मू-कश्मीर की जेल में हुई मौत हुई थी।

DR.Shyama Prasad Mukherjee death anniversary special story on his life | 'एक देश दो विधान दो प्रधान नहीं चलेंगे' नारे से श्यामाप्रसाद मुर्खजी ने कश्मीर में उठाई थी 370 के खिलाफ आवाज

'एक देश दो विधान दो प्रधान नहीं चलेंगे' नारे से श्यामाप्रसाद मुर्खजी ने कश्मीर में उठाई थी 370 के खिलाफ आवाज

नई दिल्ली, 23 जून: भारतीय राजनीति में कांग्रेस के एकाधिकारी को चुनौती देने वाले और जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज पुण्यतिथि है।  23 जून 1953 में उनका निधन हो गया था। इस दिन बीजेपी इसे बलिदान दिवस के रूप में भी मनाती है। जनसंघ ही बाद में भारतीय जनता पार्टी में बदल गई उसके नेता अटल बिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी जनसंघ से राजनीति की शुरुआत की थी। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जनसंघ के निर्माता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट में भी शामिल थे। लेकिन कई मुद्दों पर मतभेद होने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और नई पार्टी बना ली थी। तो आइए आज उनकी पुण्यतिथि पर उनसे जुड़ी कुछ विशेष बातें...

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1907 कोलकाता के भवानीपुर में में हुआ था।  उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए  वह 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर वापस भारत लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए। बता दें कि इस पद पर वह नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। 

श्यामा प्रसाद मुखर्जी साल 1929 में बंगाल विधान परिषद के सदस्य के रूप में अपना राजनैतिक करियर शुरू किया था। बाल गांगधर के तिलक के बीमार होने जाने पर मुखर्जी को 1940 में हिंदू महासभा का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया। मुर्खजी भारत के विभाजन के निर्णय पर असहमत थे। हालांकि गांधी जी और पटेल जी के कहने पर वह नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल तो हो गए लेकिन विचारों के मतभेद के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और अक्टूबर 1951 में उन्होंने जनसंघ की स्थापना की और पूरी ताकत से कांग्रेस की नीतियों का विरोध करना शुरू कर दिया। 

श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने और 'एक देश में दो विधान , दो प्रधान , दो निशान- नहीं चलेंगे नहीं चलेंगे' के संकल्पों को पूरा करने के लिए कश्मीर में खुद का बलिदान देने के लिए याद किया जाता है। लेकिन डॉ. मुखर्जी का व्यक्तित्व इतने तक सीमित नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान की ऐतिहासिक श्रृंखलाएं हैं। 

बंगाल की राजनीति और डॉ. मुखर्जी का योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत 1937 में संपन्न हुए प्रांतीय चुनावों में बंगाल में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। यह चुनाव ही डॉ. मुखर्जी के राजनीति का प्रवेश काल था। कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी और मुस्लिम लीग एवं कृषक प्रजा पार्टी को भी ठीक-ठाक सीटें मिली थीं। 

वर्ष 1937 से लेकर 1941 तक फजलुल हक और लीगी सरकार चली और इससे ब्रिटिश हुकुमत ने फूट डालो और राज करो की नीति को मुस्लिम लीग की आड़ में काफी हवा दी। लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1941 में बंगाल को मुस्लिम लीग के चंगुल से मुक्त कराया और फजलुल हक के साथ गठबंधन करके नई सरकार बना डाली। यह साझा सरकार 'श्यामा-हक' गठबंधन के नाम से मशहूर हुई। इस 'श्यामा-हक' वाले सरकार में श्यामा प्रसाद मुखर्जी वित मंत्री थे। 

कश्मीर में धारा 370 के खिलाफ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सबसे पहले आवाज उठाई थी। वह ऐसा वक्त था जब जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए परमिट की जरूरत पड़ती थी और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसी अलग संविधान और अलग झंडे के खिलाफ थे। 1952 की एक जम्मू-कश्मीर में आयोजित एक रैली में उन्होंने कहा था- या तो वह राज्य के लोगों को भारत का संविधान के नीचे लाएंगे या फिर वह बलिदान दे देंगे। अपने इसी जनून और संकल्प को पूरा करने के लिए मुखर्जी 23 जून 1953 को बिना परमिट के ही जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर  निकल पड़े। जैसे ही वह वहां पहुंचे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद अगले ही उनकी जेल से अस्पताल जाते हुए मौत हो गई लेकिन कहा जाता है कि रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मौत हुई है। मुर्खजी के मृत्यु के बाद उनकी मां ने कहा था- मेरे बेटे की मौत, भारत के बेटे की मृत्यु है। 

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की देशभक्ति और उस वक्त उनकी क्या अहमियत थी इसका पता इसी बात से लगाया जा सकता है, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी  ने मुखर्जी से कहा था ' सृष्टि और उसके प्राणियों की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकला विष पीकर जो कार्य भगवान शिव ने किया था, उसी प्रकार भारतीय राजनीति का विष पीने के लिए भी किसी की आवश्यकता थी, तुम वही काम करोगे'। 
 

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Web Title: DR.Shyama Prasad Mukherjee death anniversary special story on his life

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