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'भारतीय विचार प्रक्रिया को समझने के लिए महाभारत का अध्ययन जरूरी है', जानें डॉ जयशंकर की इस बात का अर्थ

By मनाली रस्तोगी | Updated: April 28, 2022 16:12 IST

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर को बड़ी मजबूती से भारत का पक्ष अंतरराष्ट्रीय मंच पर रखते हुए देखा जाता है। इसी क्रम में अपनी किताब 'द इंडिया वे' में भी उन्होंने बताया है कि वो एक बदलती दुनिया में भारत की भूमिका को कैसे देखते हैं और कैसे चाहते हैं कि दुनिया भारत को देखे। 

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ठळक मुद्देभारत की आजादी के बाद के देश के 75 साल के सफर और आगे की राह के बारे में जयशंकर ने कहा कि हमें विश्व को अधिकार की भावना से नहीं देखना चाहिए।देश की 25 वर्षों में प्राथमिकता क्या होनी चाहिए, इस बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि हर क्षेत्र में क्षमता निर्माण पर मुख्य जोर होना चाहिए।

नई दिल्ली: विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने जब से अपना कार्यभार संभाला है, वो तब से अक्सर ही चर्चा का विषय बने रहते हैं। दरअसल, वो बड़ी ही बेबाकी से अपनी बात रखते हुए नजर आते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच पर वो भारत को मजबूती से पेश करते हुए दिखाई देते हैं। इस बार भी डॉ जयशंकर अपने एक बयान को लेकर चर्चा का विषय बने हुए हैं। 

दरअसल, बुधवार को जयशंकर ने कहा कि वैश्विक समुदाय को खुश करने के बजाय भारत को अपनी अस्मिता में विश्वास के आधार पर विश्व के साथ बातचीत करनी चाहिए। यूक्रेन पर रूस के हमले का विरोध करने के लिए भारत पर पश्चिमी देशों के बढ़ते दबाव के बीच विदेश मंत्री ने यह कहा। जयशंकर ने भारत की विदेश नीति को प्रदर्शित करते हुए "रायसीना डायलॉग" में कहा कि देश को इस विचार को पीछे छोड़ने की जरूरत है कि उसे अन्य देशों की मंजूरी की जरूरत है। 

उन्होंने कहा,"हम इस बारे में आश्वस्त हैं कि हम कौन हैं। मुझे लगता है कि दुनिया जैसी भी है उसे उस रूप में खुश करने के बजाय, हम जो हैं उस आधार पर विश्व से बातचीत करने की जरूरत है। यह विचार जिसे हमारे लिए अन्य परिभाषित करते हैं, कि कहीं न कहीं हमें अन्य वर्गों की मंजूरी की जरूरत है, मुझे लगता है कि उस युग को हमें पीछे छोड़ देने की जरूरत है।"

भारत की आजादी के बाद के देश के 75 साल के सफर और आगे की राह के बारे में जयशंकर ने कहा,"हमें विश्व को अधिकार की भावना से नहीं देखना चाहिए। हमें विश्व में अपनी जगह बनाने की जरूरत है। इसलिए इस मुद्दे पर आइए कि भारत के विकास करने से विश्व को क्या लाभ होगा। हमें उसे प्रदर्शित करने की जरूरत है।"

देश की 25 वर्षों में प्राथमिकता क्या होनी चाहिए, इस बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि हर क्षेत्र में क्षमता निर्माण पर मुख्य जोर होना चाहिए। यूक्रेन संकट का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि संघर्ष से निपटने का सर्वश्रेष्ठ तरीका "लड़ाई रोकने और वार्ता करने पर" जोर देना होगा। साथ ही, संकट पर भारत का रुख इस तरह की किसी पहल को आगे बढ़ाना है।

जयशंकर ने यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई पर भारत के रुख की आलोचना किए जाने का मंगलवार को विरोध करते हुए कहा था कि पश्चिमी शक्तियां पिछले साल अफगानिस्तान में हुए घटनाक्रम सहित एशिया की मुख्य चुनौतियों से बेपरवाह रही हैं। 

उन्होंने कहा,"हमने यूक्रेन मुद्दे पर कल काफी समय बिताया और मैंने न सिर्फ यह विस्तार से बताने की कोशिश की कि हमारे विचार क्या हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि हमें लगता है कि आगे की सर्वश्रेष्ठ राह लड़ाई रोकने, वार्ता करने और आगे बढ़ने के रास्ते तलाशने पर जोर देना होगा। हमें लगता है कि हमारी सोच, हमारा रुख उस दिशा में आगे बढ़ने का सही तरीका है।" 

उल्लेखनीय है कि भारत ने यूक्रेन पर किए गए रूसी हमले की अब तक सार्वजनिक रूप से निंदा नहीं की है और वार्ता एवं कूटनीति के जरिये संघर्ष का समाधान करने की अपील करता रहा है। जयशंकर ने अपने संबोधन में भारत की आजादी के बाद के 75 वर्षों के सफर के बारे में चर्चा की और इस बात को रेखांकित किया कि देश ने दक्षिण एशिया में लोकतंत्र को बढ़ावा देने में किस तरह से भूमिका निभाई है।

बताते चलें कि विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर को बड़ी मजबूती से भारत का पक्ष अंतरराष्ट्रीय मंच पर रखते हुए देखा जाता है। इसी क्रम में अपनी किताब 'द इंडिया वे' में भी उन्होंने बताया है कि वो एक बदलती दुनिया में भारत की भूमिका को कैसे देखते हैं और कैसे चाहते हैं कि दुनिया भारत को देखे। 

इस किताब में 'कृष्णा की पसंद: एक उभरती हुई शक्ति की सामरिक संस्कृति' नामक एक चैप्टर है जहां डॉ जयशंकर बताते हैं कि भारत को अपनी रणनीतियों और लक्ष्यों को समझने के लिए और दुनिया को भारत को समझने के लिए महाभारत का अध्ययन करना आवश्यक है। ये चैप्टर गोएथे के एक उद्धरण से शुरू होता है, जो कहता है कि एक राष्ट्र जो अपने अतीत का सम्मान नहीं करता है उसका कोई भविष्य नहीं है।

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