दहेज एक सामाजिक बुराई, लेकिन बदलाव समाज के भीतर से आना चाहिए: शीर्ष अदालत

By भाषा | Updated: December 6, 2021 23:05 IST2021-12-06T23:05:04+5:302021-12-06T23:05:04+5:30

Dowry a social evil, but change must come from within society: Supreme Court | दहेज एक सामाजिक बुराई, लेकिन बदलाव समाज के भीतर से आना चाहिए: शीर्ष अदालत

दहेज एक सामाजिक बुराई, लेकिन बदलाव समाज के भीतर से आना चाहिए: शीर्ष अदालत

नयी दिल्ली, छह दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि दहेज एक सामाजिक बुराई है और इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन बदलाव समाज के भीतर से आना चाहिए कि परिवार में शामिल होने वाली महिला के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और लोग उसके प्रति कितना सम्मान दिखाते हैं।

शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर याचिका को विधि आयोग के पास भेज दिया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उस तरह का कोई उपाय इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर है, जिसमें अनिवार्य रूप से विधायी सुधारों की आवश्यकता होती है।

न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ ने जनहित याचिका का निपटारा करते हुए कहा, “इस विषय पर मौजूदा कानून के तहत किये जाने वाले उपायों पर विचार करने को लेकर बातचीत शुरू की जा सकती है। इस पृष्ठभूमि में हमारा मानना है कि यदि भारतीय विधि आयोग इस मुद्दे पर अपने सभी दृष्टिकोणों पर विचार करे, तो यह उचित होगा। याचिकाकर्ता विधि आयोग को सहयोग करने की दृष्टि से अनुसंधान और सभी प्रासंगिक पहलुओं पर एक नोट प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र हैं।’’

पीठ ने आगे कहा, ‘‘कानून में सुधार एक आवश्यकता है, लेकिन समाज के भीतर से एक बदलाव जरूरी होगा कि हम एक महिला के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, समाज उस महिला को कितना सम्मान देता है, जो हमारे परिवार में आती है, एक महिला का सामाजिक जीवन कैसे बदलता है। यह एक संस्था के रूप में विवाह के सामाजिक बुनियादी मूल्य से संबंधित है। यह एक सामाजिक परिवर्तन के बारे में है, जिसके बारे में सुधारकों ने लिखा है और ऐसा करना जारी रखे हुए हैं।’’

पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि दहेज एक सामाजिक बुराई है, लेकिन सूचना का अधिकार अधिनियम की तरह ही इस याचिका में दहेज-निषेध अधिकारियों को नामित करने के लिए प्रार्थना की गई है, लेकिन यह अदालत ऐसा नहीं कर सकती।

पीठ याचिकाकर्ता साबू सेबेस्टियन और अन्य की ओर से दायर याचिका की सुनवाई कर रही थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिका में उठाये गये सभी मामले विधायिका के संज्ञान में हैं और केवल वही मौजूदा कानूनों में संशोधन कर सकती है। न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा कि नोटिस से कुछ भी नहीं निकलेगा और कानून आयोग सुझावों पर गौर कर सकता है और कानून को मजबूत करने के लिए सरकार को उचित सिफारिशें दे सकता है।

न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा “हम आपको बता रहे हैं कि बेहतर विकल्प क्या है। लोगों को इन मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए जागरूकता पैदा करना महत्वपूर्ण है। नोटिस जारी होने के बाद आप अदालतों में समय बर्बाद कर रहे होंगे।’’ उन्होंने कहा कि विधि आयोग का सहारा कम से कम सुधारों की प्रक्रिया को गति देगा।

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Web Title: Dowry a social evil, but change must come from within society: Supreme Court

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