महाराष्ट्र पुलिस का दावा, म्यांमार में बैठक कर रची गई थी 'भीमा-कोरेगांव हिंसा' की साजिश
By भारती द्विवेदी | Published: September 1, 2018 11:05 AM2018-09-01T11:05:18+5:302018-09-01T11:45:43+5:30
इस बैठक में देश के खिलाफ युद्ध चलाने और शहरी संयुक्त मोर्चा (अर्बन युनाइटेड फ्रंट) बनाने के इरादे से साझा रूप से एक घोषणा पर हस्ताक्षर किया गया था।
नई दिल्ली, 1 सितंबर: महाराष्ट्र पुलिस ने अर्बन नक्सल मामले को लेकर एक नया खुलासा किया है। भीमा-कोरेगांव हिंसा में संलिप्तता बताकर पुणे पुलिस ने देश के अलग-अलग हिस्सों से जून में पांच एक्टिविस्टों का गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने कई दस्तावेज भी जब्त किए थे। इनमें म्यांमार का जिक्र है।
महाराष्ट्र के एडीजी परमवीर सिंह ने दावा किया है कि उन जब्त दस्तावेज में इस बात का जिक्र है कि शीर्ष माओवादी नेताओं ने म्यांमार और फ्रांस में एक मीटिंग की थी। उस मीटिंग में उन्होंने प्रतिबिंधित संगठनों के साथ मिलकर रणनीतिक गठबंधन बनाए हैं। म्यांमार में हुई बैठक में प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी संगठनों के नेता मौजूद थे।
इस बैठक में देश के खिलाफ युद्ध चलाने और शहरी संयुक्त मोर्चा (अर्बन युनाइटेड फ्रंट) बनाने के इरादे से साझा रूप से एक घोषणा पर हस्ताक्षर किया गया था। साथ ही पीएलए कमांडर सीपीआई (माओवादी) के युवा सदस्यों को ट्रेनिंग और हथियार देने पर सहमति बनी थी।
युवा सदस्यों को ट्रेनिंग देने के लिए छत्तीसगढ़ के जंगली क्षेत्र और गढ़चिरौली में एक जगह को चुना गया था। ट्रेनिंग के दौरानों युवा सदस्यों को गोरिल्ला युद्ध, विद्रोह और शहरी युद्ध सीखाया जाना था। साथ नेपाल और म्यांमार के रास्ते भारत में हथियार लाने की प्लानिंग थी। और इसके लिए नदी के पास तीन रास्तों को चिहिन्त किया गया था।
खबर के अनुसार, असम के कामरेड प्रकाश उर्फ रितुपम गोस्वामी की चिट्ठी से इन सारी बातों का खुलासा हुआ है।कामरेड प्रकाश ने कामरेड आनंद को ये चिट्ठी लिखी है। ये दोनों ही इस मामले में वांटेड हैं।
दरअसल ये सारा मामला भीमा कोरे गांव में हुई हिंसा से जुड़ी है। इसी साल 1 जनवरी कोएक जनवरी को भीमा-कोरेगांव की 200वीं बरसी का आयोजन किया गया था। दलितों के जुटान में कुछ लोगों के समूह ने पत्थरबाजी शुरू कर दी। इसके बाद यहां हिंसा भड़क गई और एक व्यक्ति की मौत भी हो गई। दलितों का आरोप है कि यह हिंसा हिंदुत्ववादी संगठनों ने भड़काई थी।
3 जनवरी को पुणे पुलिस ने 'हिन्दू एकता मंच' के मुखिया मिलिंद एकबोटे और 'शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान' के मुखिया संभाजी भिड़े के खिलाफ मामला दर्ज किया। इन दोनों पर दलितों के खिलाफ हिंसा भड़काने के आरोप थे। मिलिंद एकबोटे को इस मामले में गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन जल्द ही उन्हें जमानत पर रिहा भी कर दिया गया। जबकि संभाजी भिड़े को कभी गिरफ्तार ही नहीं किया गया।
4 जनवरी को भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी और जेएनयू के छात्रनेता उमर खालिद के खिलाफ केस दर्ज किया गया। पुणे के विश्रामबाग पुलिस ने आईपीसी की धारा 153 ए, 505 और 117 के तहत केस दर्ज किया गया है। पुलिस ने मुंबई में होने वाले जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद के कार्यक्रम को भी अनुमति नहीं दी।
अप्रैल में पुलिस ने 'यलगार परिषद' के आयोजकों के घर पर ही छापेमारी शुरू कर दी गई। इसमें सामाजिक कार्यकर्ता रोमा विल्सन, मानवाधिकार अधिवक्ता सुरेंद्र गडलिंग, सामाजिक कार्यकर्ता महेश राउत, नागपुर यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की प्रोफेसर शोमा सेन और दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले के घरों और दफ्तरों पर यह छापेमारी की गई। जून में भीमा-कोरेगांव हिंसा से कनेक्शन बताते हुए महाराष्ट्र पुलिस ने पांच एक्टिविस्ट दलित एक्टिविस्ट सुधीर धावले, वकील सुरेंद्र गाडलिंग, एक्टिविस्ट महेश राऊत, शोमा सेन, रोना विल्सन को गिरफ्तार किया था। पुलिस का आरोप था कि इन लोगों के माओवादी संगठनों से संपर्क हैं और 'यलगार परिषद' को माओवादी संगठन से वित्तीय मदद मिल रही थी।