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9 जून को मोदी सरकार तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ और कुल मिलाकर 11वीं वर्षगांठ?, मजबूत और आत्मविश्वास के साथ नेतृत्व कर पीएम मोदी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 9, 2025 05:21 IST

सोमवार को मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ तथा कुल मिलाकर 11वीं वर्षगांठ मनायेगी और प्रधानमंत्री पहले की ही तरह मजबूत स्थिति में और पूरे आत्मविश्वास के साथ नेतृत्व करते नजर आ रहे हैं।

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ठळक मुद्देपीएम मोदी को मनोवैज्ञानिक रूप से खत्म कर दिया है।विधानसभा चुनाव में इन दोनों राज्यों में जीत हासिल की।नये सिरे से तैयार करने के लिए फिर से काम शुरू किया है।

नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नौ जून 2024 को जब तीसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली थी, तो उस वक्त राहुल गांधी बेहद उत्साहित नजर आये थे क्योंकि लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने से चूक गई थी, जबकि चुनाव प्रचार अभियान के दौरान उसने 543 सदस्यीय निचले सदन में 400 से अधिक सीट हासिल करने का दावा किया था। लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद आलोचकों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार की तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जदयू नेता नीतीश कुमार पर निर्भरता को रेखांकित किया था।

आलोचकों ने कहा था कि नायडू और कुमार का गठबंधन बदलने का इतिहास रहा है और उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में लोकसभा चुनाव में इसका (भाजपा) प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा है, जिससे भविष्य में राजनीतिक उथल-पुथल की संभावना है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा था, ‘‘हमने मोदी को मनोवैज्ञानिक रूप से खत्म कर दिया है।

प्रधानमंत्री पूरे आत्मविश्वास के साथ नेतृत्व करते नजर आ रहे हैं

उनकी सरकार को जल्द ही सत्ता से हटा दिया जायेगा।’’ सोमवार को मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ तथा कुल मिलाकर 11वीं वर्षगांठ मनायेगी और प्रधानमंत्री पहले की ही तरह मजबूत स्थिति में और पूरे आत्मविश्वास के साथ नेतृत्व करते नजर आ रहे हैं। वहीं, उनके दो प्रमुख सहयोगी (नायडू और कुमार), जिन्हें विपक्ष बैसाखी बता रहा था, न केवल भरोसेमंद साबित हुए हैं।

लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन हरियाणा और महाराष्ट्र में उम्मीद से कम

बल्कि जमकर मोदी के नेतृत्व की सराहना कर रहे हैं। भाजपा ने अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक पहुंच को नये सिरे से तैयार करने के लिए फिर से काम शुरू किया है और विधानसभा चुनावों में आश्चर्यजनक रूप से बड़ी जीत हासिल करके अपनी गति फिर से हासिल कर ली। लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन हरियाणा और महाराष्ट्र में उम्मीद से कम रहा था, लेकिन इस पार्टी ने अपने कल्याणकारी उपायों और क्षेत्रीय नेतृत्व के प्रयासों से स्थिति को बदल दिया और विधानसभा चुनाव में इन दोनों राज्यों में जीत हासिल की।

भाजपा ने अंततः 26 वर्षों के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की और अपने प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को पछाड़ दिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और केजरीवाल जैसे अन्य भाजपा के प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस से दूर हो गए हैं और शिवसेना (उबाठा) और राकांपा (एसपी) जैसे दलों का भविष्य अनिश्चित है।

भाजपा की ताकत को रेखांकित करता

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर मनोज कुमार इस बात पर जोर देते हैं कि विपक्ष द्वारा मोदी के खिलाफ लड़ाई में विफल रहने के बावजूद मोदी के नेतृत्व की स्थिति लगभग निर्विवाद है। उन्होंने कहा, ‘‘राजनीति में किसी भी मोड़ पर हमेशा अवसर और चुनौतियां होती हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि जब तक प्रधानमंत्री मोदी हैं, उनका कोई ठोस विकल्प नहीं है।’’

उन्होंने कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत सैन्य कार्रवाई ने एक बार फिर राष्ट्रीय हित में काम करने वाले नेता के रूप में उनकी छवि को मजबूती प्रदान की है। कुमार ने कहा कि जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने का सरकार का निर्णय राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मुद्दों को अपने पक्ष में करने में भाजपा की ताकत को रेखांकित करता है।

उन्होंने कहा कि पार्टी ने हमेशा जातिगत चिंताओं को दूर करने के लिए काम किया है और यह सुनिश्चित किया है कि जाति आधारित राजनीति उसके एजेंडे में न हो। उन्होंने कहा कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ के इर्द-गिर्द निर्मित मोदी के कल्याण मॉडल से भाजपा को मदद मिली है और यह आगे भी मिलती रहेगी।

क्योंकि पार्टी के पास प्रधानमंत्री के रूप में एक ऐसा लोकप्रिय करिश्माई और भरोसेमंद नेता है, जिनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। कुमार ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता भी अपनी सर्वश्रेष्ठ स्थिति में लोकप्रिय स्वीकृति के मामले में इसी स्तर के थे।

असम और बिहार में भी विधानसभा चुनाव

संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक को पारित कराने में तेदेपा, जद(यू) और चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा (रामविलास) से मिले समर्थन और विधानसभा चुनावों में जीत के बाद भाजपा के निर्विवाद प्रभुत्व को रेखांकित किया। यदि भाजपा अपनी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में आम चुनाव में विपक्ष से खोई अपनी राजनीतिक जमीन वापस पाने में सफल होती दिखती है।

तो अगले वर्ष यह पता चलेगा कि क्या पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वियों को और अधिक हैरान कर सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि विपक्ष के कई गढ़ जैसे तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल के अलावा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) शासित दो राज्यों असम और बिहार में भी विधानसभा चुनाव होने हैं।

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