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पति या पत्नी में से किसी एक द्वारा दूसरे जीवनसाथी को बच्चे के प्यार से वंचित करना मानसिक क्रूरता के समान, दिल्ली उच्च न्यायालय ने अलग रह रहे जोड़े के तलाक को बरकरार रखते हुए कहा...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 27, 2023 17:49 IST

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने हाल के एक आदेश में कहा, ‘‘पारिवारिक अदालत के प्रधान न्यायाधीश सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि बच्ची का इस तरह से अलगाव एक पिता के प्रति मानसिक क्रूरता का चरम कृत्य है, जिसने बच्ची की कभी उपेक्षा नहीं की ।’’

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ठळक मुद्देबेटी ‘‘पूरी तरह से अलग-थलग’’ हो गई और उसका इस्तेमाल पति के खिलाफ किया गया जो सेना के एक अधिकारी हैं।कलह और विवाद दम्पति के बीच था, जिन्होंने 1996 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था।बच्चे को इसमें लाना या उसका इस्तेमाल पिता के खिलाफ करना उचित नहीं है।

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने अलग रह रहे एक जोड़े के तलाक को बरकरार रखते हुए कहा है कि पति या पत्नी में से किसी एक द्वारा दूसरे जीवनसाथी को बच्चे के प्यार से वंचित करना मानसिक क्रूरता के समान है। अदालत ने पारिवारिक अदालत के 2018 के उस आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील खारिज कर दी जिसमें उसने तलाक मंजूर किया था।

 

अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में, बेटी ‘‘पूरी तरह से अलग-थलग’’ हो गई और उसका इस्तेमाल पति के खिलाफ किया गया जो सेना के एक अधिकारी हैं। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने हाल के एक आदेश में कहा, ‘‘पारिवारिक अदालत के प्रधान न्यायाधीश सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि बच्ची का इस तरह से अलगाव एक पिता के प्रति मानसिक क्रूरता का चरम कृत्य है, जिसने बच्ची की कभी उपेक्षा नहीं की ।’’

अदालत ने कहा कि कलह और विवाद दम्पति के बीच था, जिन्होंने 1996 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था और रिश्ते में कितनी भी कड़वाहट क्यों न हो, बच्चे को इसमें लाना या उसका इस्तेमाल पिता के खिलाफ करना उचित नहीं है।

अदालत ने कहा, ‘‘माता-पिता में किसी एक के द्वारा दूसरे को इस तरह के प्यार से वंचित करने का कोई भी कार्य बच्चे को अलग-थलग करने के समान है, यह मानसिक क्रूरता के समान है... अपने स्वयं के बच्चे द्वारा अस्वीकार करने से अधिक कष्टदायी कुछ भी नहीं हो सकता। बच्चे को इस तरह जानबूझकर अलग थलग करना मानसिक क्रूरता के समान है।’’

अदालत ने पति द्वारा रोजाना शराब पीने के संबंध में अपीलकर्ता पत्नी की आपत्तियों को भी खारिज कर दिया और कहा, ‘‘सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति रोजाना शराब पीता है, वह शराबी नहीं बन जाता या उसका चरित्र खराब नहीं हो जाता’’ जब तक कि कोई अप्रिय घटना नहीं हुई हो।

अदालत ने यह भी कहा कि कार्यस्थल पर मित्र बनाने को भी क्रूरता नहीं कहा जा सकता, जब दोनों पक्ष काम की जरूरतों के कारण अलग-अलग रह रहे हों। पत्नी ने आरोप लगाया कि जब भी वह उससे मिलने जाती थी तो पति गुमसुम रहता था और हमेशा अपने दोस्तों के साथ फोन पर व्यस्त रहता था, जिनमें महिला-पुरुष दोनों शामिल थे।

पति ने पारिवारिक अदालत के समक्ष कई आधारों पर अपनी पत्नी से तलाक मांगा था। इसमें यह भी शामिल था कि सेना का एक अधिकारी होने के नाते, उसकी तैनाती विभिन्न स्थानों पर होती थी लेकिन उसने कभी भी उसके कार्यस्थल पर उससे मिलने आने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी और उसे अपनी बेटी से घुलने मिलने नहीं दिया।

उन्होंने यह भी दावा किया कि पत्नी पुणे चली गई और पिता और बच्ची के बीच किसी भी संपर्क को खत्म करने के लिए बेटी को दिल्ली के स्कूल से हटा लिया। पति ने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने जून 2008 में एकतरफा तौर पर साथ रहना बंद कर दिया और सैन्य अधिकारियों के समक्ष झूठी शिकायतें कीं और उसके खिलाफ निंदनीय आरोप लगाए। अदालत ने क्रूरता के आधार पर तलाक बरकरार रखा है। 

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