दुर्लभ बीमारी 'गौचर' से पीड़ित बच्ची, परिवार खर्च रहा 3.50 लाख प्रतिमाह, हाई कोर्ट ने AIIMS को दिया 'मुफ्त इलाज' का आदेश
By भाषा | Published: March 25, 2020 04:04 PM2020-03-25T16:04:31+5:302020-03-25T16:05:12+5:30
बच्ची के पिता के वकील ने अदालत से कहा कि इस बीमारी के उपचार पर हर महीने करीब साढ़े तीन लाख रूपए खर्च आता है। अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि इस बीमारी के इलाज का खर्च उसका परिवार नहीं उठा सकता है।
उच्च न्यायालय ने एम्स को निर्देश दिया है कि दुर्लभ बीमारी ‘गौचर’ से पीड़ित डेढ़ साल की बच्ची का उसके पिता से एक भी पैसा लिये बगैर इलाज किया जाए। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने अपने आदेश में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि दुर्लभ किस्म की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों का इलाज करने के बारे में कोई नीति है। अदालत ने इसके साथ ही ऐसी दुर्लभ बीमारियों से निबटने के लिये सरकार की मौजूदा नीति के बारे में 17 अप्रैल तक हलफनामा दाखिल करने का केन्द्र को निर्देश दिया है।
अदालत ने 23 मार्च को अपने आदेश में कहा कि इस बच्ची का उपचार तत्काल शुरू करने के अनुरोध के साथ इस आदेश की प्रति अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक और निदेशक को भेजी जाये। अदालत गौचर बीमारी से पीड़ित बच्ची के पिता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिका में बच्ची के इलाज के लिये धन और इस संबंध में उचित निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। याचिका के अनुसार बच्ची के इलाज के संबंध में सरकार को अनेक प्रतिवेदन दिये गये लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला है। बच्ची के पिता के वकील ने अदालत से कहा कि इस बीमारी के उपचार पर हर महीने करीब साढ़े तीन लाख रुपए खर्च आता है। अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि इस बीमारी के इलाज का खर्च उसका परिवार नहीं उठा सकता है।
अदालत को बताया गया कि अमेरिका और यूरोपीय यूनियन में ‘अनाथ बीमारी’ के रूप में ‘गौचर’ बीमारी का इलाज किया जा चुका है। यह एक आनुवांशिक विकार है। अदालत को यह भी बताया कि केन्द्र सरकार ने 2018 में दुर्लभ बीमारियों के उपचार की नीति तैयार की थी लेकिन कतिपय राज्य सरकारों की आपत्ति के कारण इसे कथित रूप से रद्द कर दिया गया।
दुर्लभ बीमारियों के उपचार की नीति का मसौदा दस्तावेज 13 जनवरी, 2020 को जारी किया गया था। अदालत ने कहा कि यह नीति अभी तक लागू नहीं हुयी है। इस तथ्य को देखते हुये ऐसा लगता है कि दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों और उनके उपचार के बारे में अभी कोई नीति नहीं है।