जम्मू-कश्मीर के इतिहास में 21 मई की तारीख 'खूनी' मानी जाती है, जानिए क्यों
By सुरेश एस डुग्गर | Published: May 21, 2022 04:56 PM2022-05-21T16:56:43+5:302022-05-21T17:00:41+5:30
आम कश्मीरियों के लिए 21 मई की तारीख दिल दहला देने वाली होती है क्योंकि इस तारीख को हर साल आतंक के आग की बारिश होती है। कश्मीर में रैलियों और जनसभाओं में इस तारीख पर हुए हमलों को आज भी यहां के लोग दहशत के साथ याद करते हैं।
जम्मू: जम्मू-कश्मीर में 21 मई का एक खूनी इतिहास है। वर्ष 2006 में 21 मई को श्रीनगर में कांग्रेस की रैली पर होने वाला हमला कश्मीर के इतिहास में कोई पहला हमला नहीं था। किसी जनसभा पर आतंकी हमले का कश्मीर का अपना उसी प्रकार एक रिकार्ड है जिस प्रकार कश्मीर में 21 मई को होने वाली खूनी घटनाओं का इतिहास है।
आम कश्मीरी तो 21 मई को सताने वाला दिन कहते हैं, जब हर वर्ष आग बरसती आई है। कश्मीर में रैलियों और जनसभाओं पर हमले करने की घटनाएं वैसे पुरानी भी नहीं हैं।
इसकी शुरूआत वर्ष 2002 में ही हुई थी, जब पहली बार आतंकियों ने 21 मई के ही दिन श्रीनगर के ईदगाह में मीरवायज मौलवी फारूक की बरसी पर आयोजित सभा पर अचानक हमला बोलकर पीपुल्स कांफ्रेंस के तत्कालीन चेयरमेन प्रो अब्दुल गनी लोन की हत्या कर दी थी।
वर्ष 2002 में ही उन्होंने करीब 14 रैलियों व जनसभाओं पर हमले बोले। इनमें 37 से अधिक लोग मारे गए थे। सबसे अधिक हमले 11 सितम्बर को बोले गए थे जिसमें तत्कालीन कानून मंत्री मुश्ताक अहमद लोन भी मारे गए थे।
हालांकि उसी दिन कुल 9 चुनावी रैलियों पर हमले बोले गए थे जिसमें कई मासूमों की जानें चली गई थीं। इतना जरूर है कि वर्ष 2006 में 21 मई को हुआ हमला कश्मीरियों को फिर यह याद दिला गया था कि 21 मई के साथ कश्मीर का खूनी इतिहास जुड़ा हुआ है।
आतंकवाद की शुरूआत के साथ ही 21 मई कश्मीरियों को कचोटती रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि 25 साल पहले आतंकवादियों ने 21 मई के दिन हुर्रियत के अध्यक्ष मीरवायज उमर फारूक के अब्बाजान मीरवायज मौलवी फारूक की नगीन स्थित उनके निवास पर हत्या कर दी थी।
मीरवायज मौलवी फारूक की हत्या के बाद ही कश्मीर में आतंकवाद ने नया मोड़ लिया था और उसके बाद शुरू हुआ खूनी खेल इस दशा में पहुंच गया है।