कोविड-19 महामारी के कारण इस साल बकरीद पर काम न मिलने से कसाइयों को भारी नुकसान
By भाषा | Published: July 29, 2020 05:03 AM2020-07-29T05:03:23+5:302020-07-29T05:03:23+5:30
जाकिर नगर में मटन की दुकान चलाने वाले कुरैशी ने कहा, ‘‘ लोग डर रहे हैं। उन्हें लगता है कि कसाई उन्हें संक्रमित कर सकते हैं।
बकरीद पर पशु की कुर्बानी देने के लिए कसाई नवाब कुरैशी को पिछले साल सौ से अधिक बुकिंग मिली थी, लेकिन इस साल कोरोना वायरस महामारी के कारण उसके लिए शायद ही कोई काम हो। फरजाना अहमद का परिवार दिल्ली में अपने घर पर पशु की कुर्बानी देने के लिए कसाई को रखता था, लेकिन इस बार वे कुछ और करने की सोच रहे हैं। दिल्ली के कई परिवारों ने एक अगस्त को ईद-उल-अजहा पर पशु की कुर्बानी नहीं देने का फैसला किया है, क्योंकि उन्हें डर है कि कसाई से यह बीमारी फैल सकती है।
जाकिर नगर में मटन की दुकान चलाने वाले कुरैशी ने कहा, ‘‘ लोग डर रहे हैं। उन्हें लगता है कि कसाई उन्हें संक्रमित कर सकते हैं। कुछ बुकिंग मिली है और हमें उम्मीद है कि वे इसे रद्द नहीं करेंगे।’’ उसने कहा, ‘‘बकरीद पर हमारा काफी व्यस्त कार्यक्रम होता था।’’ चालीस वर्षीय कुरैशी ने कहा, ‘‘कसाईखाना को इस समय काफी नुकसान हुआ है। उन्हें लग रहा है कि इस बार बड़े पैमाने पर नुकसान होने वाला है।’’ ओखला निवासी अहमद ने कहा कि उसने बिहार के सीवान में अपने गांव में अपने परिवार के सदस्यों से उसकी ओर से पशु की कुर्बानी देने के लिए कहा है।
उसने कहा, ‘‘हम जोखिम नहीं उठा सकते। दिल्ली दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में से एक है।’’ अहमद ने बताया कि उसके गांव में एक बकरे की कीमत सिर्फ 5,000 रुपये होगी, जबकि दिल्ली में एक बकरे की कीमत करीब 10,000 रुपये है। बची हुई राशि को लॉकडाउन से प्रभावित गरीबों में वितरित किया जा सकता है। पिछले साल तक, हुमा आफरीन ओखला में अपनी सोसाइटी के एक निर्धारित स्थान पर बकरे की कुर्बानी देती रही हैं। लेकिन उन्होंने इस बार बकरे की कुर्बानी देने के बजाय 10,000 रुपये किडनी के एक मरीज के इलाज के लिए दान करने का फैसला किया है, जिसे उन्होंने इस साल बकरा खरीदने के लिए अलग से रखा था।
उन्होंने बताया, ‘‘बकरीद पर एक कसाई बकरे की कुर्बानी देने के लिए करीब 20 घरों में जाता है। उससे संक्रमण फैलने का खतरा अधिक होता है।’’ हर साल राजधानी में अमरोहा, सहारनपुर, मुरादाबाद और मुजफ्फरनगर से सैकड़ों कसाई आते हैं, क्योंकि उन्हें राजधानी में इस काम के लिए करीब 2,000 रुपये प्रति कुर्बानी के बेहतर दाम मिलते हैं। लेकिन, इस बार उनके लिए शायद ही कोई काम हो।