प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'ताली- थाली' अनुरोध ने एक बार फिर साबित किया है कि संकट के समय में किस तरह देश एक रहता है. देश के सभी हिस्सों में पांच बजे से पांच-दस मिनट पहले ही लोगों ने खिड़की- बालकनी में आकर 'ताली-थाली' बजाते हुए कोरोना के खिलाफ देश की एकजुटता को प्रमाणित करना शुरू कर दिया.
वहीं, इस ताली-थाली अनुरोध की सफलता ने यह भी साबित किया कि प्रधानमंत्री की अपील का जनमानस पर व्यापक असर बरकरार है.
हालांकि यह मौका कोरोना से लड़ाई के लिए जनता के संकल्प का था . लेकिन इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं. यह कहा जा रहा है कि जिस बड़ी संख्या में लोगों ने इस ताली-थाली अनुरोध पर समर्थन दिया है, वह प्रधानमंत्री की व्यापक लोकप्रियता का परिचय है. खासकर आसन्न चुनाव वाले राज्यों पश्चिमी बंगाल और बिहार में इसको मिली सफलता को भाजपा अपनी भविष्य की चुनावी सफलता का पैमाना मान रही है.
एक वरिष्ठ भाजपा पदाधिकारी ने कहा कि इस अवसर पर यह राजनीतिक बात ठीक नहीं है लेकिन बिहार और पश्चिम बंगाल में इस ताली-थाली की आवाज ने विरोधी दलों को चिंतित जरूर किया होगा.
इधर, भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व कोरोना के खिलाफ जनता के इस व्यापक समर्थन से उत्साहित है. लेकिन वह इस बात से कुछ अप्रसन्न भी हैं कि उत्साह में कुछ लोग घर से बाहर आकर ताली-थाली अनुरोध को सफल बनाने में 'जनता कर्फ्यू' का संकल्प भूल गए.
कुछ जगहों पर आतिशबाजी का भी आयोजन किया गया जो पूरी तरह अनुचित था. लोगों से अपील है कि वे घर में रहें और जनता कर्फ्यू का अनुपालन कर कोरोना के खिलाफ जंग में शामिल हों. इस पदाधिकारी ने कहा कि कई मंत्री और भाजपा पदाधिकारी भी उत्साह में ताली-थाली बजाते हुए घर से बाहर दिखे. इन सभी मंत्री और पदाधिकारियों को भी जनता कर्फ्यू के वचन का अनुपालन करना चाहिए था.