महिलाएं अच्छी-अच्छी सब्जियां पकाना जानती हैं, लेकिन सब्जियां उगाना नहीं जानती हैं. युवा सस्ता आटा-दाल खरीदना जानते हैं, परन्तु धान पैदा करना उन्हें नहीं आता है. खेती, भारत की सबसे बड़ी ताकत है, किन्तु देश की ज्यादातर जनता को खेती का प्रायोगिक अनुभव नहीं है.
आजादी के बाद गांवों का अभाव दूर नहीं किया गया और खेती-किसानी पर ध्यान नहीं दिया गया, जिसका नतीजा है कि शहरीकरण बढ़ता गया और आज कोरोना वायरस अटैक के कारण अफरा-तफरी मची हुई है. इंसान चौड़ी-चौड़ी सड़कों के बिना चल सकता है, बड़े-बड़े मॉल के बगैर भी जिंदा रह सकता है, परन्तु छोटे-छोटे धान के दानों के अभाव में अपनी जान नहीं बचा सकता है. हमने बढ़ते भौतिक साधनों को ही विकास मान लिया है, लेकिन सुखी रहने के असली साधनों को भूल गए हैं.
ऐसा नहीं है कि युवाओं की खेती-किसानी में दिलचस्पी नहीं है, किन्तु उनके पास इसकी प्रायोगिक शिक्षा नहीं है.इंसान के रहने के लिए दुनिया में भारत इसीलिए स्वर्ग है कि यहां प्रकृति ने खूब वरदान दिए हैं, खाने के लिए धान, सब्जी और फल दिए हैं. सेहत की सुरक्षा के लिए सर्दी, गर्मी और बरसात का सुरक्षाचक्र दिया है. कोई वायरस यहां स्थाई नहीं रहता. सर्दी का वायरस गर्मी में विदा हो जाता है, गर्मी का वायरस बरसात में और बरसात का वायरस सर्दी में चला जाता है.
यही वजह है कि तमाम लापरवाहियों के बावजूद कोरोना वायरस का अटैक भारत में उतना धारदार नहीं है.कोरोना वायरस अटैक ने हमें एक बार फिर देश की असली ताकत पहचानने का अवसर दिया है. हमें इस मौके का फायदा उठाना चाहिए. महिलाओं को घर-आंगन में, गमलों में सब्जियां उगाने की प्रायोगिक जानकारी देनी चाहिए, तो कृषि, पशुपालन और घर के लिए आवश्यक, इलैक्ट्रिशियन, प्लंबर, जैसे कार्यो की प्रायोगिक शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए.
कृषि के क्षेत्र में देश की क्षमता इतनी है कि अपने साथ-साथ पूरी दुनिया का पेट भर सकता है. देश में कृषि आपातकाल लागू करके खेती-किसानी के ढांचे को सुदृढ़ बनाने और व्यवस्थित करने की जरूरत है!