सीजेआई ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के ‘अस्थायी, अनियोजित’ सुधार पर नाराजगी जतायी

By भाषा | Updated: October 23, 2021 15:31 IST2021-10-23T15:31:06+5:302021-10-23T15:31:06+5:30

CJI expresses displeasure over 'temporary, unplanned' reform of judicial infrastructure | सीजेआई ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के ‘अस्थायी, अनियोजित’ सुधार पर नाराजगी जतायी

सीजेआई ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के ‘अस्थायी, अनियोजित’ सुधार पर नाराजगी जतायी

मुंबई, 23 अक्टूबर भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने शनिवार को कहा कि न्याय तक पहुंच में सुधार लाने के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचा महत्वपूर्ण है लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि देश में इसमें सुधार और इसका रखरखाव अस्थायी और अनियोजित तरीके से किया जा रहा है।

प्रभावी न्यायपालिका के अर्थव्यवस्था में मददगार होने का उल्लेख करते हुए सीजेआई ने कहा कि विधि द्वारा शासित किसी भी समाज के लिए न्यायालय बेहद आवश्यक हैं। सीजेआई रमण बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ के उपभवन की दो शाखाओं के उद्घाटन के मौके पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि आज की सफलता के कारण हमें मौजूदा मुद्दों के प्रति आंखें नहीं मूंदनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हम कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं जैसे कि कई अदालतों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। कई अदालतें जर्जर इमारतों में काम कर रही हैं। न्याय तक पहुंच में सुधार लाने के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचा जरूरी है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह ध्यान देने वाली बात है कि न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार और उसका रखरखाव अस्थायी और अनियोजित तरीके से किया जा रहा है।’’ उन्होंने कहा कि शनिवार को औरंगाबाद में जिस इमारत का उद्घाटन किया गया उसकी परिकल्पना 2011 में की गयी थी।

सीजेआई रमण ने कहा, ‘‘इस योजना को लागू करने में 10 साल का समय लग गया, यह बड़ी चिंता की बात है। एक प्रभावी न्यायपालिका अर्थव्यवस्था की वृद्धि में मदद कर सकती है।’’

उन्होंने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय न्यायपालिका बुनियादी ढांचा प्राधिकरण स्थापित करने का प्रस्ताव केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री को भेजा है तथा उन्हें सकारात्मक जवाब की उम्मीद है और संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा।

सीजेआई ने कहा कि सामाजिक क्रांति के कई विचार जिनके कारण स्वतंत्रता हासिल हुई, उन्हें हम सभी आज हल्के में लेते हैं, वे इस उर्वर और प्रगतिशील भूमि से पैदा हुए। उन्होंने कहा, ‘‘चाहे असाधारण सावित्री फुले हो या अग्रणी नारीवादी ज्योतिराव फुले या दिग्गज डॉ. भीमराव अम्बेडकर हो। उन्होंने हमेशा एक समतावादी समाज के लिए प्रेरित किया जहां प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा के अधिकार का सम्मान किया जाए। उन्होंने एक साथ मिलकर एक अपरिवर्तनीय सामाजिक बदलाव को गति दी जो अंतत: हमारे संविधान में बदला।’’

उन्होंने कहा कि यह आम धारणा है कि केवल अपराधी और पीड़ित ही अदालतों का रुख कर सकते हैं और लोग गर्व महसूस करते हैं कि वे कभी अदालत नहीं गए या उन्होंने अपने जीवन में कभी अदालत का मुंह नहीं देखा।

उन्होंने कहा, ‘‘अब वक्त आ गया है कि हम इस भ्रांति को खत्म करें। आम आदमी अपने जीवन में कई कानूनी मुददों का सामना करता है। हमें अदालत जाने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। आखिरकार न्यायपालिका में लोगों का भरोसा लोकतंत्र की बड़ी ताकत में से एक है।’’

न्यायाधीश रमण ने कहा कि अदालतें किसी भी ऐसे समाज के लिए अत्यधिक आवश्यक है जो विधि द्वारा शासित हैं, क्योंकि ये न्याय के संवैधानिक अधिकार को सुनिश्चित करते हैं।

इस कार्यक्रम में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘अभी तक महाराष्ट्र में 48 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं जिनमें से करीब 21,000 मामले तीन दशक से भी ज्यादा पुराने हैं। हमारे सामने ये कुछ समस्याएं हैं। इसके लिए आत्मावलोकन की आवश्यकता है।

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Web Title: CJI expresses displeasure over 'temporary, unplanned' reform of judicial infrastructure

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