दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने रविवार को संसद के कामकाज की कड़े शब्दों में आलोचना की, जिसमें समस्याओं पर ध्यान न देकर कानून पर उचित ढंग से बहस नहीं की जाती है । न्यायधीश ने आज के समय की तुलना पहले के समय से की , जब संसद के दोनों सदन "वकीलों से भरे हुए" थे । साथ ही उन्होंने कानूनी बिरादरी से भी सार्वजनिक सेवा के लिए अपना समय देने के लिए कहा । उन्होंने वर्तमान स्थिति को चिंताजनक बताते हुए कहा कि सदन में कोई उचित बहस नहीं हो रही ।
सदन में वकीलों का होना जरूरी है
उन्होंने कहा कि 'वहां कानून को लेकर कोई स्पष्टता नहीं हैं । हम समझ नहीं पाते हैं कि कानून का उद्देश्य क्या है । यह जनता के लिए नुकसानदायक है । ऐसा तब है जब वकील और बुद्धिजीवी सदनों में नहीं है ।' न्यायमूर्ति रमण ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उच्चतम न्यायलय में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि "अगर हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को देखें, तो उनमें से कई कानूनी बिरादरी से भी थे। लोकसभा और राज्यसभा के पहले सदस्य वकीलों के समुदाय से भरे हुए थे।"
न्यायमूर्ति ने कहा पहले बहस रचनात्मक होता थी
उन्होंने कहा कि "दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब आप सदनों में क्या देख रहे हैं ... उस समय सदनों में बहस बहुत रचनात्मक थी । मैंने वित्तीय विधेयकों पर बहस देखी और बहुत रचनात्मक बिंदूओं पर बहस होती थी । कानूनों पर चर्चा और विचार-विमर्श किया जाता था । लोगों के पास विधायी कानून की स्पष्ट तस्वीर थी । न्यायमूर्ति ने कहा, "मैं वकीलों से कहना चाहता हूं । अपने आप को कानूनी सेवा तक सीमित न रखें बल्कि सार्वजनिक सेवा भी करें। इस देश को अपने ज्ञान और बुद्धिमता से आगे बढ़ाएं । "
आज जब पूरा देश ने आजादी की 75 वीं स्वतंत्रता दिवस मना रहा है । तब मुख्य न्यायाधीश रमण ने कहा कि यह नीतियों और उपलब्धियों की "समीक्षा" करने का समय है । उन्होंने कहा, "75 साल देश के इतिहास में कोई छोटी अवधि नहीं है। जब हम स्कूल जाते थे तब हमें केवल गुड़ का टुकड़ा और एक छोटा झंडा दिया जाता था । भले ही आज हमें इतना कुछ मिल रहा लेकिन हम खुश नहीं हैं । हमारा संतोष करने का स्तर नीचे पहुंच गया है ।