मराठा आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, संवैधानिक वैधता पर उठाए सवाल
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 7, 2019 08:11 AM2019-07-07T08:11:01+5:302019-07-07T08:11:01+5:30
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 27 जून को दिए अपने फैसले में कहा था कि न्यायालय द्वारा तय की गई आरक्षण की 50% की सीमा को असाधारण परिस्थितियां में ही पार किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट में बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई है, जिसमें उसने महाराष्ट्र में शिक्षा और नौकरी में मराठा समुदाय के आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था.
याचिका में कहा गया कि सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) आरक्षण कानून मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरी में क्रमश: 12% से 13% आरक्षण प्रदान करता है.
यह शीर्ष अदालत के इंदिरा साहनी मामले में दिए फैसले में तय की गई 50% आरक्षण सीमा का उल्लंघन है, जिसे 'मंडल फैसला' भी कहा जाता है. गैर सरकारी संगठन के प्रतिनिधि संजीत शुक्ला ने याचिका में दावा किया कि मराठा के लिए एसईबीसी कानून 'राजनीति दबाव' में बनाया गया और यह संविधान के समानता एवं कानून के शासन के सिद्धान्तों की 'पूर्ण अवहेलना' करता है.
वकील पूजा धर द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट ने केवल इस तथ्य को असाधारण परिस्थिति मानकर गलती की कि अन्य ओबीसी को मराठों के साथ अपना आरक्षण कोटा साझा करना होगा (अगर मराठा को मौजूदा ओबीसी श्रेणी में डाला गया). इंदिरा साहनी मामले में निर्धारित की गई 50% की सीमा को केवल असाधारण परिस्थिति में ही तोड़ा जा सकता है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 27 जून को दिए अपने फैसले में कहा था कि न्यायालय द्वारा तय की गई आरक्षण की 50% की सीमा को असाधारण परिस्थितियां में ही पार किया जा सकता है.