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बोफोर्स विवाद: दोबारा नहीं खुलेगा केस, CBI नहीं करना चाहती है जांच, जानें पूरा मामला

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 16, 2019 14:29 IST

बोफोर्स मामले में निजी याचिकाकर्ता अजय अग्रवाल भी इस मसले में आगे की जांच से जुड़ी याचिका वापस लेना चाहते हैं। सीबीआई की दरख्वास्त पर दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिका वापस लेने की मंजूरी दे दी है।

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ठळक मुद्देपीएम मोदी ने भी हाल में ही बोफोर्स का मुद्दा उठाया था।सीबीआई के कदम से कांग्रेस पार्टी को राहत महसूस कर रही है।

केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) बोफोर्स मामले में आगे की जांच से जुड़ी याचिका वापस लेना चाहता है। गुरुवार को सीबीआई ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि वह जांच संबंधी याचिका वापस लेना चाहती हैं। सीबीआई की इस दरख्वास्त पर कोर्ट ने याचिका वापस लेने की मंजूरी दे दी है। 

वहीं निजी याचिकाकर्ता अजय अग्रवाल भी इस मसले में आगे की जांच से जुड़ी याचिका वापस लेना चाहते हैं। कोर्ट उनकी याचिका पर छह जुलाई को सुनवाई करेगी। 

बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 में पांचवें चरण के मतदान के बाद पीएम मोदी ने कांग्रेस को चुनौती दी थी कि दम है तो शेष बचे दो चरण के चुनाव अपने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मान-सम्मान और बोफोर्स के मुद्दे पर लड़ लें। इस मुद्दे पर खूब राजनीति हुई है। अब सीबीआई के कदम से कांग्रेस पार्टी को राहत महसूस कर रही है।

बोफोर्स केस में कब-कब क्या-क्या हुआ

24 मार्च, 1986: भारत और स्वीडन के हथियार निर्माता एबी बोफोर्स के बीच 1437 करोड़ रुपये के हथियारों की डील हुई। इसमें 155 एमएम की 410 बोफोर्स तोप देने के लिए करार हुआ।

16 अप्रैल, 1987: स्वीडीश रेडियो ने दावा किया कि बोफोर्स सौदे के लिए कंपनी ने भारतीय राजनेताओं और रक्षा से जुड़े अधिकारियों को घूस दी है।

20 अप्रैल, 1987: तत्कालीन राजीव गांधी ने लोकसभा में बताया कि बोफोर्स सौदे में किसी तरह की कोई घूस नहीं दी गई है और ना ही इसमें कोई बिचौलिया शामिल था।

6 अगस्त, 1987: बोफोर्स सौदे में कथित घूसखोरी के आरोपों की जांच के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री बी. शंकरानंद की अध्यक्षता में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन 

फरवरी 1988: भारतीय जांचकर्ताओं के दल ने बोफोर्स तोप सौदे की जांच के लिए स्वीडन का दौरा किया।

18 जुलाई, 1989: जेपीसी ने बोफोर्स सौदे की जांच पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।

नवंबर, 1989: बोफोर्स में घोटाले के आरोपों के बीच लोकसभा चुनाव हुए, राजीव गांधी को करारी शिकस्त मिली।

22 जनवरी, 1990: CBI ने तत्कालीन एबी बोफोर्स के प्रेसिडेंट मार्टिन अर्ब्दो और बिचौलिए विन चड्ढा और हिन्दुजा ब्रदर्स के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र रचने, ठगी, और फर्जीवाड़े को लेकर FIR दर्ज किया।

जुलाई, 1993: स्वीडन की सुप्रीम कोर्ट ने ओतावियो क्वात्रोच्चि और अन्य अभियुक्त की अपील को खारिज कर दिया। 

फरवरी, 1997: क्वात्रोच्चि के खिलाफ गैर जमानती वारंट और रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया।

22 अक्टूबर, 1999: पहली चार्जशीट विन चड्ढा, रक्षा सचिव एस.के. भटनागर, मार्टिन कार्ल अर्ब्दो (तत्कालीन बोफोर्स कंपनी के अध्यक्ष) के खिलाफ फाइल 

दिसंबर, 2000: क्वात्रोच्चि को मलेशिया में गिरफ्तार किया गया लेकिन उसे इस शर्त पर जमानत दे दी गई कि वह देश छोड़कर नहीं जाएगा।

दिसंबर, 2002: भारत ने क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण की मांग की लेकिन मलेशिया हाईकोर्ट ने भारत की अपील को खारिज कर दिया।

जुलाई, 2003: भारत की तरफ से ब्रिटेन सरकार को रोगेटरी लेटर भेजकर क्वात्रोच्चि के बैंक अकाउंट्स को फ्रीज करने के लिए कहा गया।

फरवरी-मार्च, 2004: कोर्ट ने स्व. राजीव गांधी और रक्षा सचिव भटनागर को आरोपों से बरी कर दिया।

मई-अक्टूबर, 2005: दिल्ली हाईकोर्ट ने हिन्दुजा ब्रदर्स और एबी बोफोर्स के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया। उसके बाद सीबीआई की तरफ से हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 90 दिनों के अंदर अपील नहीं करने पर सर्वोच्च अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय अग्रवाल को इस केस में हाईकोर्ट के खिलाफ याचिका दायर करने को कहा।

अप्रैल-नवंबर, 2009: क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण पर लाख कोशिशों के बावजूद सफलता नहीं मिलने के बाद सीबीआई ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस को वापस ले लिया और सुप्रीम कोर्ट से उसके खिलाफ केस वापल लेने की इजाजत मांगी।

फरवरी-मार्च 2011: दिल्ली के स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने क्वात्रोच्चि को केस से बरी करते हुए कहा कि देश अपनी कड़ी मेहनत से की गई कमाई को उसके प्रत्यर्पण पर और वहन नहीं कर सकता है क्योंकि अब तक उस पर 250 करोड़ रुपये खर्च किया जा चुका है।

अप्रैल, 2012: स्वीडन की पुलिस चीफ स्टेन लिंडस्ट्रोम ने माना कि उनके पास राजीव गांधी या फिर अमिताभ बच्चन के खिलाफ घोटाले में पैसे लेने के कोई सबूत नहीं है।

जुलाई, 2013: क्वात्रोच्चि कभी भारत नहीं आया, उसकी मौत हो गई।

1 दिसंबर, 2016: करीब छह सालों बाद अग्रवाल की याचिका पर एक बार फिर से सुनवाई शुरु हुई।

14 जुलाई, 2017: सीबीआई ने कहा कि वह बोफोर्स केस को दोबारा खोलने के लिए तैयार है अगर सुप्रीम कोर्ट इसकी इजाजत दे ।

16 मई, 2019: सीबीआई ने आगे जांच की वाली याचिका वापस ले ली।

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