Caste Survey: क्या यह कवायद सर्वेक्षण की आड़ में जनगणना तो नहीं, सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार को झटका, पटना उच्च न्यायालय का आदेश पलटने से इनकार, जानें वजह

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 18, 2023 05:15 PM2023-05-18T17:15:36+5:302023-05-18T17:16:21+5:30

Caste Survey: न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि इस बात की जांच करनी होगी कि क्या यह कवायद सर्वेक्षण की आड़ में जनगणना तो नहीं है।

Caste Survey Supreme Court refuses overturn Patna High Court order regarding caste survey in Bihar this exercise not a census under the guise of survey | Caste Survey: क्या यह कवायद सर्वेक्षण की आड़ में जनगणना तो नहीं, सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार को झटका, पटना उच्च न्यायालय का आदेश पलटने से इनकार, जानें वजह

निर्देश देते हैं कि इस याचिका को 14 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाये।

Highlightsदूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और यह 15 मई तक चलने वाला था।जाति आधारित सर्वेक्षण का पहला दौर सात से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था।निर्देश देते हैं कि इस याचिका को 14 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाये।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने बिहार सरकार के जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगाने संबंधी पटना उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश को पलटने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया। बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण का पहला दौर सात से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था। दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और यह 15 मई तक चलने वाला था।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि इस बात की जांच करनी होगी कि क्या यह कवायद सर्वेक्षण की आड़ में जनगणना तो नहीं है। न्यायमूर्ति बिंदल ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से टिप्पणी की कि बहुत सारे दस्तावेजों से पता चलता है कि यह कवायद केवल जनगणना है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम यह स्पष्ट कर रहे हैं, यह ऐसा मामला नहीं है जहां हम आपको अंतरिम राहत दे सकते हैं।’’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मुख्य याचिका की सुनवाई तीन जुलाई के लिए स्थगित कर दी है। पीठ ने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि इस याचिका को 14 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाये।

यदि किसी भी कारण से, रिट याचिका की सुनवाई अगली तारीख से पहले शुरू नहीं होती है, तो हम याचिकाकर्ता (बिहार) के वरिष्ठ वकील की दलीलें सुनेंगे।’’ बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि उच्च न्यायालय का फैसला त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मौजूदा कवायद जनगणना नहीं है, बल्कि केवल एक स्वैच्छिक सर्वेक्षण है।

दीवान ने दोनों के बीच के अंतर को समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि सर्वेक्षण एक निश्चित गुणवत्ता का होता है जो एक निश्चित अवधि के लिए होता है। उन्होंने कहा, ‘‘जनगणना के लिए आपको जवाब देना होगा। सर्वेक्षण के लिए ऐसा नहीं है। राज्य की नीतियों के लिए मात्रात्मक आंकड़ों की जरूरत होती है। उच्चतम न्यायालय के फैसलों में ऐसा कहा गया है।’’

वरिष्ठ वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय की चिंताओं में गोपनीयता का एक मुद्दा शामिल था। उन्होंने कहा, ‘‘डेटा केवल बिहार सरकार के सर्वर पर संग्रहित किया जायेगा और किसी अन्य ‘क्लाउड’ पर नहीं। हम अदालत के सुझावों को मानने के लिए तैयार हैं।’’ उच्चतम न्यायालय ने हालांकि, दीवान से कहा कि उच्च न्यायालय पहले ही उन पहलुओं पर विचार कर चुका है।

दीवान ने कहा कि संसाधन पहले ही जुटाए जा चुके हैं और सर्वेक्षण का 80 प्रतिशत काम पहले ही पूरा हो चुका है। उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार से तीन जुलाई को उच्च न्यायालय के समक्ष मामले पर दलीलों को रखने के लिए कहा, जहां मामला अभी भी लंबित है।

पटना उच्च न्यायालय के चार मई के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में दायर याचिका में बिहार सरकार ने कहा है कि जातीय सर्वेक्षण पर रोक से पूरी कवायद पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि जाति आधारित आंकड़ों का संग्रह अनुच्छेद 15 और 16 के तहत एक संवैधानिक मामला है।

संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत राज्य धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगा। वहीं, अनुच्छेद 16 के अनुसार राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय में नियोजन या नियुक्ति के संबंध में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर उपलब्ध होंगे।

याचिका में बिहार सरकार ने दलील दी है, “राज्य ने कुछ जिलों में जातिगत जनगणना का 80 फीसदी से अधिक सर्वे कार्य पूरा कर लिया है और 10 फीसदी से भी कम काम बचा है। पूरा तंत्र जमीनी स्तर पर काम कर रहा है। विवाद में अंतिम निर्णय आने तक इस कवायद को पूरा करने से कोई नुकसान नहीं होगा।”

पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार के जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी। अदालत ने साथ ही इस सर्वेक्षण अभियान के तहत अब तक एकत्र किए गए आंकडों को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था। उच्च न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख तीन जुलाई तय की है।

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘प्रथम दृष्टया हमारी राय है कि राज्य के पास जाति आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है और जिस तरह से यह किया जा रहा है वह एक जनगणना के समान है और इस प्रकार यह संघ की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा।’’

अदालत ने कहा था, ‘‘राज्य एक सर्वेक्षण की आड़ में एक जातिगत जनगणना करने का प्रयास नहीं कर सकता, खासकर जब राज्य के पास बिल्कुल विधायी क्षमता नहीं है। और उस स्थिति में भारत के संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत एक कार्यकारी आदेश को बनाए नहीं रखा जा सकता।’’

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘जनगणना और सर्वेक्षण के बीच आवश्यक अंतर यह है कि जनगणना में सटीक तथ्यों और सत्यापन योग्य विवरणों के संग्रह पर विचार किया जाता है। सर्वेक्षण का उद्देश्य आम जनता की राय और धारणाओं का संग्रह और उनका विश्लेषण करना है ।’’ उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाएं सामाजिक संगठन और कुछ व्यक्तियों द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने पिछले महीने उच्चतम न्यायालय से संपर्क किया था। 

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