महिला के प्रसव और मातृत्व अवकाश अधिकार के सवाल पर नियमित और संविदा कर्मचारियों के बीच कोई भेदभाव स्वीकार्य नहीं, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने आरबीआई को दिया निर्देश
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 28, 2024 05:04 PM2024-02-28T17:04:05+5:302024-02-28T17:04:59+5:30
अदालत ने आरबीआई को उस अवधि के लिए वेतन सहित छुट्टी के तौर पर मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिससे बैंक ने पहले इनकार कर दिया था।
कोलकाताः कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को एक कार्यकारी प्रशिक्षु को मुआवजा देने का निर्दश जारी करते हुए कहा है कि किसी महिला के प्रसव और मातृत्व अवकाश के अधिकार के सवाल पर नियमित और संविदा कर्मचारियों के बीच कोई भेदभाव स्वीकार्य नहीं है। याचिकाकर्ता 16 अगस्त, 2011 से तीन साल की अवधि के लिए आरबीआई के साथ एक कार्यकारी प्रशिक्षु के रूप में अनुबंध के आधार पर कार्यरत थी। याचिकाकर्ता ने 180 दिनों के वेतन सहित मातृत्व अवकाश की अनुमति देने में आरबीआई की विफलता पर सवाल उठाते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था। न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी ने सोमवार को पारित अपने फैसले में कहा कि एक महिला के प्रसव और मातृत्व अवकाश के अधिकार के सवाल पर बैंक के नियमित और संविदा कर्मचारियों के बीच कोई भेदभाव स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने आरबीआई को उस अवधि के लिए वेतन सहित छुट्टी के तौर पर मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिससे बैंक ने पहले इनकार कर दिया था।
इस बात का संज्ञान लेते हुए कि आरबीआई आमतौर पर अपने मास्टर सर्कुलर के अनुसार कर्मचारियों को मातृत्व लाभ प्रदान करता है, न्यायाधीश ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता को ऐसे लाभ से वंचित रखना मेरे विचार में भेदभावपूर्ण कार्य है, क्योंकि यह एक वर्ग के भीतर एक अन्य वर्ग बनाने का प्रयास करता है, जो अनुमति योग्य नहीं है।’’
अदालत ने कहा कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को मातृत्व अवकाश देने से इनकार करना भेदभावपूर्ण कृत्य है और मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत एक अपराध है। इसमें कहा गया है कि अधिनियम के खंड 5(1) के अनुसार, प्रत्येक महिला मातृत्व लाभ के भुगतान की हकदार होगी और उसका नियोक्ता इसके लिए उत्तरदायी होगा।
न्यायमूर्ति बसु चौधरी ने कहा कि यदि आरबीआई को याचिकाकर्ता को मातृत्व लाभ के मूल अधिकार से वंचित करने और मुआवजे के बिना केवल छुट्टी बढ़ा देने की अनुमति दी जाती है तो यह एक महिला कर्मचारी को उसकी गर्भावस्था के दौरान काम करने के लिए मजबूर करने के समान होगा, भले ही महिला और उसके भ्रूण को खतरा क्यों न हो।
अदालत ने कहा, ‘‘अगर इसकी अनुमति दी जाती है, तो सामाजिक न्याय का उद्देश्य भटक जाएगा।’’ आरबीआई में प्रशिक्षु के तौर कार्य करने के दौरान याचिकाकर्ता ने 20 नवंबर, 2012 को एक पत्र लिखकर तीन दिसंबर, 2012 से छह महीने के लिए मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया था, क्योंकि उसे चिकित्सक ने आराम की सलाह दी थी।
महिला कर्मचारी की डिलीवरी जनवरी, 2013 के पहले पखवाड़े में अपेक्षित थी। हालांकि, उस समय याचिकाकर्ता के आवेदन को अस्वीकार करने वाला कोई पत्राचार नहीं किया गया, लेकिन उसे 14 मार्च, 2013 को एक पत्र द्वारा सूचित किया गया था कि वह अनुबंध की शर्तों के अनुसार मातृत्व अवकाश की हकदार नहीं है।