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बक्सर जेल में बने मनीला रस्से से दी जाएगी शबनम को फांसी, 7200 धागों से हो रहा तैयार, जानिए क्या है खासियत

By एस पी सिन्हा | Updated: February 18, 2021 19:27 IST

अजमल कसाब को पुणे जेल में दी गई फांसी हो या फिर वर्ष 2004 में कोलकाता में धनजंय चटर्जी को दी गई फांसी। अफजल गुरु को भी फांसी बक्सर जेल की ही रस्सी से दी गई थी।

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ठळक मुद्देशबनम को उत्तर प्रदेश के मथुरा में फांसी देने की तैयारी शुरू हो गई है। मेरठ से पवन जल्लाद ने भी दो बार आकर मथुरा में फांसी घर का मुआयना किया है।निर्भया मामले के दोषियों को पवन जल्लाद ने ही फांसी पर लटकाया था।

पटनाः बिहार का बक्सर केन्द्रीय कारा एक बार फिर से फांसी का फंदा बनाने को लेकर सुर्खियों में आ गया है।

उसे मथुरा जेल में एक महिला को फांसी दिए जाने के लिए फांसी का फंदा बनाने का निर्देश मिला है। फांसी का फंदा बनाने का निर्देश मिलने की पुष्टि बक्सर जेल के अधीक्षक विजय कुमार अरोरा ने भी की है। हालांकि इसको कबतक बनाकर देना है, इस बारे में उन्होंने कुछ भी बताने से इंकार किया है।

उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद देश में पहली बार किसी महिला को फांसी देने के लिए फंदा बनाने की निर्देश बक्सर केन्द्रीय कारा को मिला है। देश में केवल बक्सर सेंट्रल जेल में ही फांसी का फंदा तैयार किया जाता है। बक्सर के अधीक्षक विजय कुमार अरोरा के अनुसार मथुरा जेल के अधीक्षक ने फांसी का फंदा बनाने को लेकर पत्र भेजा है।

फंदा तैयार करने का काम शुरू

पत्र मिलने के बाद फंदा तैयार करने का काम शुरू कर दिया गया है। देश में पहली बार मथुरा जेल में बंद महिला कैदी को फांसी दी जानी है। बताया जाता है कि यूपी के मथुरा जेल में सात हत्याओं की सजा काट रही शबनम को कोर्ट ने फांसी की सजा दी है। मथुरा जेल अधीक्षक ने सेंट्रल जेल बक्सर को फांसी का फंदा बनाने को लेकर पत्र भेजा है।

अप्रैल 2008 में अपने परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी थी

मथुरा जिला कारागार देश में अकेला जेल है, जहां महिला फांसी घर है, शबनम ऐसी पहली महिला होगी जिसे मथुरा जिला कारागार के एकलौते फांसी घर फांसी दी जायेगी। बताया जाता है कि मथुरा जेल में बंद शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर यूपी के अमरोहा जिले में अप्रैल 2008 में अपने परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी थी।

इस हत्याकांड को लेकर ट्रायल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक फांसी की सजा पर मुहर लगा चुका है, शबनम ने राष्ट्रपति से दया की गुहार लगाई थी, लेकिन राष्ट्रपति उसकी दया याचिका पन्द्रह फरवरी को ठुकरा दिया। इसके बाद फांसी की तैयारी शुरू हो गई है, हालांकि इसकी तारीख अभी तय नही हुई है।

यहां बता दें कि बक्सर जेल में इस तरह की रस्सी बनानेवाले एक्सपर्ट हैं। यहां के कैदियों को भी इसे बनाने का हुनर सिखाया जाता है, यहां के खास बरामदे में इसे बनाने का काम किया जाता है। पहले तो रस्सी बनाने के लिए जे-34 कॉटन यार्न खासतौर पर भठिंडा पंजाब से मंगाया जाता था, लेकिन अब इसे गया या पटना से ही प्राइवेट एजेसियां सप्लाइ करती हैं।

बक्सर में फांसी की रस्सियां 1930 से बनाई जा रही

अंग्रेजों के समय में ही यहां फंदा तैयार किया जाता है। जेलर से मिली जानकारी के मुताबिक गंगा किनारे सेंट्रल जेल अवस्थित होने के कारण फंदा बनाने के लिए जो नमी चाहिए वह प्राकृतिक रूप से प्राप्त होती है. फंदा 16 फीट लम्बी रस्सी से बनता है। बक्सर में फांसी की रस्सियां 1930 से बनाई जा रही हैं, यहां बनी रस्सी से जब भी फांसी दी गई तो वो कभी फेल नहीं हुई।

दरअसल, ये रस्सी खास तरह की होती है, इसे मनीला रोप या मनीला रस्सी कहते हैं। माना जाता है कि इससे मजबूत रस्सी होती ही नहीं। इसीलिए पुलों को बनाने, भारी बोझों को ढोने और भारी वजन को लटकाने में इसी का इस्तेमाल किया जाता है, चूंकि ये रस्सी सबसे पहले फिलिपींस के एक पौधे से बनाये गये थे, लिहाजा इसका नाम मनीला रोप या मनीला रस्सी पड़ा, ये खास तरह की गडारीदार रस्सी होती है।

दिल्ली में घटी निर्भयाकांड के दोषियों को भी

बताया जाता है कि पानी से इस पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि ये पानी को सोख लेती है। इससे लगाई गई गांठ पुख्ता तरीके से अपनी पकड़ को दमदार बनाकर रखती है। गत कुछ दशकों में देश में जहां कभी भी फांसी हुई है. वहां फांसी का फंदा बनाने के लिए रस्सी बक्सर जेल से ही गई है, चाहे वो अजमल कसाब को पुणे जेल में दी गई फांसी हो या फिर वर्ष 2004 में कोलकाता में धनजंय चटर्जी को दी गयी फांसी। अफजल गुरु को भी फांसी बक्सर जेल की ही रस्सी से दी गई, इसके अलावे दिल्ली में घटी निर्भयाकांड के दोषियों को भी यहीं से बनी फांसी के फंदे से फांसी दी गाई थी।

कहा जाता है कि जेल के करीब गंगा नदी के बहने से वहां से आनेवाली आर्द्रता भी इसकी मजबूती और बनावट पर खास असर डालती है, फांसी के लिए रस्सी को और खास तरीके से बनाते हैं, इसमें मोम का भी इस्तेमाल करते हैं. इसको बनाने में सूत का धागा, फेविकोल, पीतल का बुश, पैराशूट रोप का भी इस्तेमाल होता है।

विशेष रॉड में 100 किलो वजन का सामान बांधा जाता

जेल के अंदर एक पावरलुम मशीन लगी है, जो धागों की गिनती कर अलग-अलग करती है, एक फंदे में 72 सौ धागों का इस्तेमाल होता है। फांसी के फंदेवाली रस्सी में चार बंच होते हैं। एक में 900 धागे होते हैं।कुल 7200 धागों से रस्सी तैयार की जाती है। जेल सूत्रों अनुसार रस्सी निर्माण के बाद जेल में ही बनी विशेष रॉड में 100 किलो वजन का सामान बांधा जाता है और झटके से गिराकर इसका परीक्षण किया जाता है. यह देखा जाता है कि निर्धारित वजन रस्सी उठा पा रही है या नहीं।

वजन 3 किलो 950 ग्राम और लंबाई 60 फुट

इसका वजन 3 किलो 950 ग्राम और लंबाई 60 फुट होती है। इस रस्सी की क्षमता 184 किलो वजन उठाने की होती है, जेल सूत्रों की मानें तो इस रस्सी की कीमत 1725 रुपये है, लेकिन कच्चे धागे की कीमतों में वृद्धि और उसके इस्तेमाल किये जाने वाले पीतल के खास बुश का भी रेट ज्यादा होने से कीमत में इजाफा किया जायेगा।

रस्सी तैयार होने के बाद इसे सील पैक कर भेज दिया जाता है। इस्तेमाल होने से पहले इसमें पका केला रगडकर सरसों के तेल(मस्टर्ड ऑयल) में डुबाया जाता है, जिससे यह रस्सी बहुत मुलायम हो जाती है. सूत्रों के अनुसार आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी महिला कैदी को फांसी पर लटकाने की तैयारी शुरू कर दी गई है, इसके लिए मेरठ के रहने वाले पवन जल्लाद दो बार फांसी घर का निरीक्षन कर चुके हैं।

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