अमित शाह के लिए धारा 370 को हटाना कितना मुश्किल है?
By विकास कुमार | Published: June 29, 2019 04:33 PM2019-06-29T16:33:03+5:302019-06-29T16:38:55+5:30
देश में फिलहाल बीजेपी की सरकार है और गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बीते दिन कहा कि यह व्यवस्था अस्थायी रूप से की गई थी. बीजेपी ने हमेशा धारा 370 को हटाने की प्रतिबद्धिता जताई है, लेकिन यह उतना आसान भी नहीं है जितना पार्टी द्वारा प्रचारित किया जाता है.
गोपाल स्वामी अयंगर जब धारा 370 का मसौदा लेकर भीमराव आंबेडकर के पास गए थे तो बाबासाहेब ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था और उस सत्र का भी वहिष्कार किया था जिसमें धारा 370 को संविधान के तहत मान्यता दी गई. उन्होंने इसको देश के साथ द्रोह की संज्ञा दी थी. जबकि वो ड्राफ्टिंग समिति के चेयरमैन थे.
शेख अब्दुल्लाह के नाम लिखी गई चिट्ठी में उन्होंने कहा था कि आप ये चाहते हैं कि कश्मीर में भारत सरकार सड़क निर्माण करे, अनाज भी उपलब्ध कराये और कश्मीर को बराबरी का दर्जा भी दिया जाए लेकिन कश्मीर को लेकर भारत सरकार के पास सीमित अधिकार हो, यह प्रस्ताव भारत के हितों के खिलाफ है और कानून मंत्री रहते मैं इसे कभी स्वीकार नहीं करूंगा.
गोपाल स्वामी अयंगर मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रतिनिधि थे और उनके मुताबिक धारा 370 अंतरिम सरकार के लागू होने तक एक टेम्पररी प्रबंधन था जो स्थायी सरकार के आने के बाद स्वतः खत्म हो जाना चाहिए था.
धारा 370 को संविधान के चैप्टर 21 में रखा गया था. अक्सर ये तर्क दिया जाता है कि धारा 370 को हटाने के लिए राज्य सरकार की सहमती लेनी होगी, दरअसल सहमती उस सरकार से लेनी थी जो अंतरिम सरकार संविधान सभा के बनने से पहले कश्मीर में थी. लेकिन पिछले कई दशकों से कश्मीर में स्थायी सरकार है. इसलिए इस तरह का कोई भी कानूनी प्रावधान नहीं है. कश्मीर में अंतरिम सरकार के प्रमुख शेख अब्दुल्लाह थे.
धारा 370 का इतिहास
कई जानकारों के मुताबिक, कश्मीर में संविधान सभा के भंग होने के साथ ही यह कानून स्वतः खत्म हो जानी चाहिए थी. इसको बाद में प्रेसिडेंसियल आर्डर से चलाया गया. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर यह आरोप लगते हैं कि उन्होंने संसद को बाईपास करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश लाकर इस कानून को जारी रखा क्योंकि नेहरू कश्मीर से इस कानून को खत्म नहीं करना चाहते थे. देश के संविधान में धारा 1 में जम्मू कश्मीर भारत का इंटीग्रल पार्ट है और जम्मू और कश्मीर के संविधान के धारा 3 के मुताबिक कश्मीर देश का अभिन्न हिस्सा है.
धारा 370 के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि जम्मू कश्मीर के संविधान सभा को उस दौरान भंग कर दिया गया था, जबकि देश के संविधान सभा को स्थगित किया था. कई जानकारों के मुताबिक, धारा 370 पर अंतिम फैसला कश्मीर का संविधान सभा ही कर सकता था लेकिन भंग होने की स्थिति में यह मुमकिन नहीं है. लेकिन जम्मू कश्मीर विधानसभा के द्वारा इस स्पेशल स्टेटस को हटाया जा सकता है. मौजूदा परिस्थिति में यह मुमकिन नहीं लगता.
हरी सिंह की शर्तें
कश्मीर के राजा हरी सिंह ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन पर हस्ताक्षर करने से पहले कुछ शर्तें रखी थी जिसे धारा 370 के तहत कश्मीर को दिया गया. लेकिन बीते 7 दशक से धारा 370 की प्रासंगिकता पर बहस चल रही है. कोई इसे अलगाववाद का जनक मानता है तो कोई इसे कश्मीर को भारत से जुड़े रहने का एक मात्र जरिया.
देश में फिलहाल बीजेपी की सरकार है और गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बीते दिन कहा कि यह व्यवस्था अस्थायी रूप से की गई थी. बीजेपी ने हमेशा धारा 370 को हटाने की प्रतिबद्धिता जताई है, लेकिन यह उतना आसान भी नहीं है जितना पार्टी द्वारा प्रचारित किया जाता है.