लाइव न्यूज़ :

विधानसभा चुनावों में बीजेपी भले ही हार गई हो, लेकिन संघ जीत गया!

By विकास कुमार | Updated: December 17, 2018 15:48 IST

राजस्थान में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में इस बार गौ सरंक्षण, हिन्दू शरणार्थी और मंदिरों के रखरखाव का मुद्दा शामिल किया था, क्या ये संघ की जीत नहीं है?

Open in App

हाल ही में आये पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा नेतृत्व के होश उड़ाने के लिए काफी थे। पिछले पांच वर्षों से भारतीय राजनीति में चाणक्य का तमगा लेकर घूम रहे अमित शाह भी इन नतीजों के बाद हताश और निराश दिख रहे हैं। उनकी आक्रामकता को जैसे लकवा मार गया हो। भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा भी आजकल टीवी डिबेट में आत्मविश्वास की अथाह कमी से जूझ रहे हैं।

खुद देश की राजनीति को भगवामय बनाने वाले देश के अंतर्राष्ट्रीय नेता नरेन्द्र मोदी की दहाड़ में भी वो गर्जना नहीं दिख रही है, जिसके लिए उन्हें जाना जाता है। इसका साफ मतलब है कि इन चुनावों के हार ने भाजपा नेतृत्व में एक डर पैदा किया है, जिसका दूरगामी असर लोकसभा चुनाओं में भी दिख सकता है। 

बड़ी हार का नहीं था अंदेशा

भाजपा ने कभी नहीं सोचा था कि शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह के राज्यों में उन्हें इतना बड़ा झटका लगेगा। लेकिन लोकतांत्रिक राजनीति भी क्रिकेट के उस मैच की तरह होती है, जहां कुछ भी धारणाओं और पूर्वानुमानों पर नहीं टिका होता है। कुछ देर से ही सही लेकिन भाजपा ने इन राज्यों में हुई पराजय को स्वीकार कर लिया है। प्रदेश नेतृत्व पर हार का ठीकरा फोड़ना देश की राजनीति का पुराना फैशन रहा है। लेकिन इन सवालों के बीच जो सबसे बड़ी बात उभरकर आई है कि क्या इन राज्यों में हुई हार के कारण संघ को चिंतित होना चाहिए? क्या संघ को अपने स्तर पर चिंतन की जरुरत है ? आखिर भाजपा उन्हीं के विचारधारा की राजनीतिक जमा पूंजी है। 

संघ को लेकर उपजे इन सवालों के जवाब हमें इसी साल सितम्बर में दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए मोहन भागवत के भाषण में मिल जायेगा। बदलते राजनीतिक और सामाजिक परिवेशों के बीच संघ ने जिस तरह से खुद को प्रस्तुत किया है, वो पिछले पांच वर्षों में उसके विस्तार की कहानी को दर्शाता है। मोहन भागवत ने कहा था कि 'कांग्रेस मुक्त भारत' एक राजनीतिक नारा है और संघ इससे सरोकार नहीं रखता है। मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर लोगों में जो नाराजगी है क्या संघ ने उसे भांप लिया था? क्या मोहन भागवत का यह बयान भाजपा नेतृत्व में उनके  विश्वास की कमी को दर्शा रहा है? मोहन भागवत ने साथ ही ये भी कहा था कि संघ का स्वयंसेवक किसी भी पार्टी को वोट दे सकता है। इसके साथ ही उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. केशवराम बलिराम हेडगवार की कुछ बातों को आज के दौर अप्रासंगिक करार दिया था। 

संघ का हिंदूत्व बनाम कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदूत्व 

कांग्रेस पार्टी और इनके शीर्ष के नेता, गांधी परिवार और इसका मुख्य वारिश राहुल गांधी जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों से मंदिरों के भ्रमण पर निकले हैं, क्या इससे संघ के कलेजे को ठंडक मिली है ? कैलाश मानसरोवर से लेकर दक्षिण के मंदिरों तक कांग्रेस अध्यक्ष की चहलकदमी आरएसएस को भाने लगी है। राहुल गांधी का जनेऊ निकालना, गोत्र बताना और कश्मीरी ब्राह्मण होने का दावा करना ही तो संघ के विचारधारा की जीत है। हेडगवार ने कांग्रेस पार्टी पर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का आरोप लगाते हुए संघ की स्थापना की थी। लेकिन आज जब वही कांग्रेस राम मंदिर से लेकर गौ सरंक्षण की बात कर रही है तो क्या ऐसे में भाजपा का महत्व कम होता हुआ दिख रहा है। कांग्रेस के नेता अब राम मंदिर के निर्माण की बातें भी करने लगे हैं। 

भाजपा संघ की मजबूरी 

संघ और भाजपा एक दुसरे के पूरक हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को राजनीतिक विस्तार के बिना अपने मुकाम पर नहीं पहुंचाया जा सकता है। और यह बात संघ भी अच्छी तरह से समझता है। लेकिन जब कांग्रेस के नेता ये बोलने लगे कि हिंदूत्व भाजपा की बपौती नहीं है, तो यह बयान भले ही भाजपा को विचलित कर सकती है लेकिन संघ के लिए यह मीठी सुपारी के जैसा होगा। जो उसके राजनीतिक साथियों को तो नुकसान पहुंचा सकता है लेकिन अंततः संघ के विचारधारा की ही जीत होगी। राजस्थान में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में इस बार गौ सरंक्षण, हिन्दू शरणार्थी और मंदिरों के रखरखाव का मुद्दा शामिल किया था, क्या ये संघ की जीत नहीं है ? 

कांग्रेस पार्टी इसे भले ही सॉफ्ट हिंदूत्व का नाम देकर बचने की कोशिश करे लेकिन उसे ये मालूम है कि इस देश का जनमानस  कट्टर हिंदूत्व की राजनीति को कभी स्वीकार नहीं कर सकता है। उदारता भारत की विरासत है और ये देश के डीएनए में है। देश की राजनीति एक नया करवट ले रही है, जहां मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति करने वाली पार्टियां भी कृष्ण मंदिर और भगवत गीता बांटने की बात कर रही है। ममता दीदी और टिप्पू भैया इसके साक्षी हैं। क्या यह संघ के विचारधारा की जीत नहीं है, जिसका सपना डॉ हेडगवार और गोलवलकर ने देखा था, वो आज देश की राजनीति का पर्याय बन चुका है। 

टॅग्स :विधानसभा चुनावआरएसएसराहुल गांधीकांग्रेसभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)नरेंद्र मोदीअमित शाह
Open in App

संबंधित खबरें

भारतPutin India Visit: ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे...!

भारतमहाराष्ट्र शीतकालीन सत्र: चाय पार्टी का बहिष्कार, सदनों में विपक्ष के नेताओं की नियुक्ति करने में विफल रही सरकार

भारतकांग्रेस के मनीष तिवारी चाहते हैं कि सांसदों को संसद में पार्टी लाइन से ऊपर उठकर वोट देने की आजादी मिले, पेश किया प्राइवेट मेंबर बिल

ज़रा हटकेपाकिस्तानी महिला ने पीएम मोदी से लगाई मदद की गुहार, पति के दिल्ली में दूसरी शादी करने का किया दावा

भारतगोवा के नाइट क्लब में भीषण आग, 25 लोगों की गई जान; जानें कैसे हुआ हादसा

भारत अधिक खबरें

भारतAirport Suitcases Rules: प्लेन में सूटकेस ले जाने का बदला नियम, यात्रा से पहले जरूर जान लें इसे

भारतPM Awas Yojana: अब अपने घर का सपना होगा पूरा, सरकार से पाए 1.30 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता; ऐसे करें आवेदन

भारतगोवा अग्निकांड: मजिस्ट्रियल जांच के आदेश, सीएम प्रमोद सावंत ने ₹5 लाख मुआवज़े की घोषणा की

भारतसतत निगरानी, सघन जांच और कार्रवाई से तेज़ी से घटा है नक्सली दायरा: मुख्यमंत्री डॉ. यादव

भारतयूपी विधानसभा के शीतकालीन सत्र में योगी सरकार लाएगी 20,000 करोड़ रुपए का अनुपूरक बजट, 15 दिसंबर हो सकता है शुरू