जयंती विशेष: क्या सच में नरसिम्हा राव बाबरी मस्जिद गिरने से बचा सकते थे?
By पल्लवी कुमारी | Published: June 28, 2018 08:14 AM2018-06-28T08:14:18+5:302018-06-28T08:14:18+5:30
माखनलाल फोतेदार ने अपनी आत्मकथा 'द चिनार लीव्स' में लिखा था, जब बाबरी मस्जिद का एक गुबंद टूटा था तो मैंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वो इसे रोकने के लिए कुछ करें।
नई दिल्ली, 28 जून: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की आज ( 28 जून 1921) की जयंती है। पीवी नरसिम्हा राव देश के 10वें प्रधानमंत्री थे। इन्होंने सबसे पहले आधुनिक भारत के निर्माण की नींव रखी थी। नरसिम्हा राव को भाषाओं पर काफी अच्छी पकड़ थी। उन्हें 13 भाषाओं के साथ-साथ साहित्य और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग जैसे विषयों में भी रूचि थी। उन्होंने ही सबसे पहले आधुनिक भारत के निर्माण की निर्माण की नींव रखी थी।
राजनीतिक जीवन में नरसिम्हा राव केंद्रीय रक्षा मंत्री और गृह मंत्री जैसे पदों पर भी रहे हैं और 1971 से 1973 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। नरसिम्हा राव के राजनीतिक जीवन में बड़ा मोड़ तब आया जब 21 मई 1991 को श्रीपेरंबदूर में कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। इस हत्या के बाद कांग्रेस पार्टी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। अब राजीव गाँधी की हत्या के बाद कांग्रेस की ओर से अगला प्रधानमंत्री उम्मीदवार कौन होगा ये सवाल काफी अहम था। सोनिया गांधी उस वक्त ऐसी हालत में नहीं थी कि वो प्रधानमंत्री पदभार संभाल सकें। उस वक्त अर्जुन सिंह ने नरसिम्हा राव को सही उम्मीदवार के रूप में देखा। पीवी नरसिम्हा राव साल 1991-1996 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।
पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री कार्यकाल का सबसे अहम मुद्दा जो चर्चा में रहा, वह था बाबरी मस्जिद का। ये 6 दिसंबर 1992 की बात है। जब नरसिम्हा राव दिन के 12 बजे प्रधानमंत्री आवास में टीवी देख रहे थे। टेलीविजन पर आ रहा था कि हजारों कारसेवक बाबरी मस्जिद के गुंबदों पर चढ़े हुए हैं।
इसी बीच 2 बजे तक बाबरी मस्जिद का गुंबद नीचे गिर चुका था। इस वक्त नरसिम्हा राव के डॉक्टर श्रीनाथ रेड्डी ने सोचा, प्रधानमंत्री दिल के मरीज हैं, 1990 में हुए दिल के ऑपरेशन ने उन्हें करीब-करीब राजनीति से रिटायर करवा दिया था। इस खबर को सुनकर रेड्डी प्रधानमंत्री का ब्लड प्रेशर जांचने प्रधानमंत्री निवास पर पहुंच गए। जब तक बाबरी मस्जिद का तीसरा गुंबद भी गिर चुका था।
बीबीसी के मुताबिक डॉक्टर श्रीनाथ रेड्डी इससे पहले भी पीएम की जांच करने आ चुके थे। जैसे ही वह बाबरी मस्जिद की खबर सुनकर दोबारा पहुंचे। पीवी नरसिम्हा राव ने गुस्से में रेड्डी से पूछा, 'आप फिर क्यों चले आए?'। रेड्डी ने बोला- मुझे आपकी फिर जांच करनी है। मैं उनको बगल के छोटे कमरे में ले आया। जैसा कि मुझे उम्मीद थी, उनके दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। उनकी नाड़ी भी तेज चल रही थी। उनका ब्लड प्रेशर भी बढ़ा हुआ था। मैंने उनको 'बीटा ब्लॉकर' की अतिरिक्त डोज दी और वहां से तभी हटा जब वो थोड़े बेहतर दिखाई देने लगे। उनके शरीर की जांच से ये नहीं लगा कि उनकी इस ट्रेजेडी में कोई साठगांठ थी।'
बाबरी मस्जिद की इस घटना के बाद नरसिम्हा राव ने कथित रूप से खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था। उसी दिन शाम छह बजे राव ने अपने निवास स्थान पर मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई। अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा 'ए ग्रेन ऑफ सैंड इन द आर ग्लास ऑफ टाइम' में लिखा है, "पूरी बैठक के दौरान नरसिम्हा राव इतने हतप्रभ थे कि उनके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला। सबकी निगाहें जाफर शरीफ की तरफ मुड़ गईं, मानों उन से कह रही हों कि आप ही कुछ कहिए। जाफर शरीफ ने कहा इस घटना की देश, सरकार और कांग्रेस पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। माखनलाल फोतेदार ने उसी समय रोना शुरू कर दिया लेकिन पीएम राव बुत की तरह चुप बैठे रहें।"
माखनलाल फोतेदार ने अपनी आत्मकथा 'द चिनार लीव्स' में लिखा था, जब बाबरी मस्जिद का एक गुबंद टूटा था तो मैंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वो वायुसेना से कहें कि वो फैजाबाद में तैनात चेतक हैलिकॉप्टरों से अयोध्या में मौजूद कारसेवकों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले चलवांए। राव ने कहा, 'मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ?' मैंने कहा इस तरह की आपात परिस्थितियों में केंद्र सरकार के पास जो भी फैसला जरूरी हो लेने की सारी ताकत मौजूद हैं। मैंने उनसे विनती की, 'राव साहब कम से कम एक गुंबद तो बचा लीजिए। ताकि बाद में हम उसे एक शीशे के केबिन में रख सकें और भारत के लोगों को बता सकें कि बाबरी मस्जिद को बचाने की हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। लेकिन प्रधानमंत्री चुप रहे और लंबे ठहराव के बाद बोले, फोतेदारजी मैं आपको दोबारा फोन करता हूं।''
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