Bilkis Bano case: कानून का उल्लंघन, गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया, जो उसके पास नहीं थे और शक्ति का दुरुपयोग किया, पीठ ने 100 पन्नों का फैसला सुनाते हुए कहा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 8, 2024 01:19 PM2024-01-08T13:19:30+5:302024-01-08T13:21:25+5:30
Bilkis Bano case News: न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूइयां की पीठ ने दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया।
Bilkis Bano case News: उच्चतम न्यायालय ने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को सोमवार को यह कहकर रद्द कर दिया कि आदेश ‘‘घिसा पिटा’’ था और इसे बिना सोचे-समझे पारित किया गया था।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूइयां की पीठ ने दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया। सजा में छूट को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं को सुनवाई योग्य करार देते हुए पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है।
STORY | Bilkis Bano case verdict: Chronology of events
— Press Trust of India (@PTI_News) January 8, 2024
READ: https://t.co/M7kQgwfFWZ#BilkisBanopic.twitter.com/nA0E8mYc4B
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि एक राज्य जिसमें किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम होता है। दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया था। पीठ ने 100 पन्नों का फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘हमें अन्य मुद्दों को देखने की जरूरत नहीं है।
Supreme Court strikes down the Gujarat government’s order granting remission to 11 convicts who had gang-raped Bilkis Bano and murdered her family members during the 2002 Godhra riots.
— ANI (@ANI) January 8, 2024
Supreme Court says the exercise of power by the State of Gujarat is an instance of usurpation… pic.twitter.com/yMJlYr4IXD
कानून के शासन का उल्लंघन हुआ है क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया जो उसके पास नहीं थे और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। उस आधार पर भी सजा से माफी के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।’’ शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से दोषियों की सजा माफी की याचिका पर विचार करने संबंधी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को ‘अमान्य’ माना और कहा कि यह ‘अदालत को गुमराह’ करके और ‘तथ्यों को छिपाकर’ हासिल किया गया।
Bilkis Bano case: Supreme Court directs all 11 convicts to report to jail authorities within two weeks.
— ANI (@ANI) January 8, 2024
पीठ ने कहा कि यह एक विशेष मामला है जहां इस अदालत के आदेश का इस्तेमाल सजा में छूट देकर कानून के शासन का उल्लंघन करने के लिए किया गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिकारों का दुरुपयोग कर कानून के शासन का उल्लंघन किया गया है और 13 मई, 2022 के आदेश का इस्तेमाल शक्तियों को हथियाने और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए किया गया।
पीठ ने कहा, ‘‘हम गुजरात सरकार द्वारा अधिकारों का दुरुपयोग करने के आधार पर सजा में छूट के आदेश को रद्द करते हैं।’’ शीर्ष अदालत ने बानो द्वारा दायर याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर 11 दिन की सुनवाई के बाद पिछले साल 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
Bilkis Bano case: Supreme Court says it is the duty of this court to correct arbitrary orders at the earliest and to retain the foundation of trust of the public.
— ANI (@ANI) January 8, 2024
शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और गुजरात सरकार को 16 अक्टूबर तक 11 दोषियों की सजा माफी से संबंधित मूल रिकॉर्ड जमा करने का निर्देश दिया था। पिछले साल सितंबर में मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पूछा था कि क्या दोषियों के पास सजा से माफी मांगने का मौलिक अधिकार है।
पहले की दलीलों के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में चयनात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए और सुधार एवं समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को मिलना चाहिए। गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर इस राहत के खिलाफ चुनौती दी थी।
तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा ने भी सजा में छूट और समय से पहले रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। घटना के वक्त बिनकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं। बानो से गोधरा ट्रेन में आग लगाए जाने की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था। दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया था।