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उपेन्द्र कुशवाहा के हिस्सेदारी की मांग पर गर्मायी सियासत, 1994 में नीतीश कुमार ने भी लालू प्रसाद से मांगी थी हिस्सेदारी!

By एस पी सिन्हा | Updated: January 31, 2023 19:06 IST

उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलकर बिहार के सियासी पारे को बढ़ा दिया है। उन्होंने 1994 की उस घटना का भी जिक्र किया जब नीतीश और लालू यादव के रास्ते अलग हुए थे।

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पटना: बिहार में सत्तासीन जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के द्वारा पार्टी में हिस्सेदारी की मांग किये जाने पर राजनीति गर्मा गई है। उन्होंने अपने हिस्से की मांग को लेकर आज अपना पत्ता भी खोल दिया। कुशवाहा ने कहा कि 1994 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से जो हिस्सा मांगा था। वही हिस्सा आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुझे चाहिए। 

कुशवाहा ने 12 फरवरी 1994 को पटना के गांधी मैदान में हुई रैली का भी जिक्र किया। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि उस वक्त नीतीश ने लालू यादव से कैस हिस्सेदारी की मांग की थी?

कुशवाहा ने जिस तारीख का जिक्र किया है, वो बिहार की राजनीति में अहम मानी जाती है। उस वक्त राज्य में जनता दल की सरकार थी और लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे। 1994 में ये बातें उड़ी कि लालू यादव सरकार कुर्मी और कोईरी समाज को ओबीसी से बाहर करने की योजना बना रही है। नीतीश कुमार खुद कुर्मी जाति से हैं, इसलिए उन्हें यह बात नागवार गुजरी। 

नीतीश  ने इसके बाद कुर्मी और कोईरी समाज को एकजुट करना शुरू कर दिया। फिर 12 फरवरी को गांधी मैदान में रैली बुलाई, जिसमें बड़ी संख्या में कुर्मी और कोईरी समाज के लोग जुटे। नीतीश कुमार की कुर्मी चेतना रैली लालू यादव की सत्ता पर सीधी चोट थी। 

यहीं से नीतीश ने अपनी राह अलग की और इसके आठ महीने बाद जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था। यही समता पार्टी आगे चलकर जदयू में बदली और करीब 10 साल के संघर्ष के बाद नीतीश कुमार ने लालू यादव के राज को सत्ता से बाहर कर दिया। 

उपेंद्र कुशवाहा ने इशारों-इशारों में यह बता दिया कि जदयू में कुशवाहा समाज को उतना सम्मान नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि बीते दो सालों में एमएलसी और राज्यसभा समेत कई चुनाव हुए। इनमें उन्होंने नीतीश कुमार और ललन सिंह को अति पिछड़ा वर्ग की उम्मीदवारी पर कई बार सुझाव दिए, मगर उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया गया। 

उपेंद्र का इशारों में यह आरोप है कि जदयू में कुशवाहा समाज के नेताओं को तरजीह नहीं दी जा रही है। उपेंद्र कुशवाहा इसी हिस्सेदारी की बातें कर रहे हैं।

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