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बिहारः नीतीश सरकार में कांग्रेस का कोई कद्र नहीं!, 28 बोर्ड-निगमों में 10 का पुनर्गठन, जदयू-राजद ने आपस में बांटे, मंत्री के बाद बोर्ड-आयोग में भी जगह नहीं

By एस पी सिन्हा | Updated: July 29, 2023 17:12 IST

बिहारः 5 के अध्यक्ष जदयू नेता हैं तो 4 के अध्यक्ष राजद के हैं। पर कांग्रेसियों को अब तक एक भी बोर्ड-आयोग का कमान संभालने का मौका नहीं मिल पाया है। 

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ठळक मुद्देबिहार में अभी 18 बोर्ड-आयोग का पुनर्गठन होना है। दो मंत्रियों को शामिल करने के लिए प्रदेश कांग्रेस के नेता लगातार प्रयासरत हैं।8 महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं और सभी दल उसकी तैयारी में लग गए हैं।

पटनाः कांग्रेस के साथ होने का दावा करने वाली बिहार की नीतीश सरकार में कांग्रेस का कोई कद्र नहीं है। इसका जीता जागता उदाहरण बोर्ड और निगमों के गठन के बाद सामने आया है। वर्तमान नीतीश सरकार ने 28 बोर्ड-निगमों में से 10 का पुनर्गठन कर दिया है, जिसमें से 9 के अध्यक्ष का पद जदयू-राजद ने आपस में बांट लिए हैं।

5 के अध्यक्ष जदयू नेता हैं तो 4 के अध्यक्ष राजद के हैं। पर कांग्रेसियों को अब तक एक भी बोर्ड-आयोग का कमान संभालने का मौका नहीं मिल पाया है। बता दें कि बिहार में अभी 18 बोर्ड-आयोग का पुनर्गठन होना है। यह देखते हुए कांग्रेस नेताओं की निगाह उनके गठन पर लगी हुई है। बिहार मंत्रिमंडल में भी दो मंत्रियों को शामिल करने के लिए प्रदेश कांग्रेस के नेता लगातार प्रयासरत हैं।

8 महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं और सभी दल उसकी तैयारी में लग गए हैं। 20 सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति ऐसी समिति होती है, जिसमें राज्य स्तर से लेकर जिला एवं प्रखंड स्तर तक गठन होता है। राज्य स्तरीय समिति के अध्यक्ष मुख्यमंत्री खुद होते हैं तो जिला स्तरीय समिति के अध्यक्ष जिला के संबंधित प्रभारी मंत्री होते हैं।

इसमें हर समिति में छहों दलों के प्रतिनिधित्व होने पर हर समिति में 15 सदस्यों का मनोनयन हो तो राज्य से लेकर प्रखंड स्तर तक करीब 8600 नेता-कार्यकर्ताओं की सत्ता में सीधी भागीदारी हो जाएगी। उसी तरह जेल निगरानी समिति जिला स्तर पर गठित होती है। हर जिले में 15 सदस्यों का मनोनयन होने पर 570 नेताओं के इस समिति में शामिल होने का मौका मिल सकता है।

जबकि सवर्ण आयोग, मछुआरा आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, उपभोक्ता संरक्षण आयोग, धार्मिक न्यास परिषद, खादी ग्रामोद्योग आयोग, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, जेपी सेनानी सलाहकार परिषद, नागरिक परिषद, भोजपुरी अकादमी, मगही अकादमी, अंगिका अकादमी, उर्दू अकादमी, राज्य सूचना आयोग, कृषि आयोग, खाद्य सुरक्षा सलाहकार परिषद में भी अपने लोगों को बिठाया जाना है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं की उम्मीद टिकी हुई है कि शायद नीतीश सरकार का ध्यान उनपर भी जाए। लेकिन अभीतक के क्रिया कलापों को देखते हुए ऐसा लगता नही है कि कांग्रेस को कोई स्थान मिलने जा रही है।

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