पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से पहले सियासी सरगर्मियां अब चरम पर हैं. छह दलों वाले ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट (जीडीएसएफ) में सीटों का बंटवारा हो गया है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा इस गठबंधन की ओर से बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं. उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के खाते में 104 सीटें, मायावती की बहुजन समाज पार्टी के पाले में 80 सीटें, असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम को 24 सीटें, समाजवादी जनता दल के खाते में 25 सीटें मिली हैं.
जबकि यूपी के पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा पांच सीटों पर चुनाव लडे़गी और जनतांत्रिक पार्टी सोशलिस्ट को भी पांच सीटें मिली हैं. वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के साथ 23 अक्टूबर को संयुक्त रूप से भभुआ और करगहर की चुनावी जनसभाओं को संबोधित करेंगे. जबकि कुशवाहा 19 अक्टूबर को गोह, पारू, मोतिहारी, ढाका, वाजपट्टी, पटना में जबकि 20 और 21 अक्टूबर को बक्सर, चेनारी, मोहनियां, दिनारा, राजपुर, डुमरांव और नोखा में चुनाव सभा को संबोधित करेंगे.
इसके पहले पिछले हफ्ते उपेन्द्र कुशवाहा ने लालू और नीतीश को एक ही सिक्के के दो पहलू करार देते हुए कहा था कि उनकी पार्टी का गठबंधन न तो किसी के वोट काटने के लिए है और न ही किसी को परोक्ष रूप से समर्थन देने के लिए है, बल्कि यह बिहार की जनता को एक सार्थक विकल्प देने के लिए है.
कुशवाहा ने कहा था कि बिहार की जनता नीतीश कुमार के 15 वर्षों के कुशासन से मुक्ति चाहती है. दूसरी ओर, राजद नीत गठबंधन में भी मुख्यमंत्री पद का चेहरा मजबूत नहीं है और लोग इनके 15 साल के शासन के इतिहास को भी याद करते हैं. ऐसे में दोनों जनता में विश्वास पैदा करने में विफल रहे हैं.
उन्होंने कहा था कि लोग नीतीश के साथ भी नहीं हैं और न ही वे राजद के साथ जाना चाहते हैं क्योंकि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. ऐसे में प्रदेश की जनता एक विकल्प की तलाश में हैं. कुछ दिनों पहले महागठबंधन से अलग होने के बारे में उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा था कि वर्तमान नीतीश कुमार की सरकार को हटाने के लिए राजद का वर्तमान नेतृत्व काफी नहीं है और उसने मुख्यमंत्री पद के लिए जो चेहरा (तेजस्वी यादव) पेश किया है, उसमें वह क्षमता नहीं है.