सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद पर राम लला के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की नेता उमा भारती लालकृष्ण आडवाणी के आवास पर उनसे मिलने पहुंची। इस बीच उन्होंने शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि कोर्ट ने एक निष्पक्ष एवं दिव्य निर्णय दिया है।
समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, उमा भारती ने कहा है, 'इस दिव्य और निष्पक्ष फैसले का सारे देश के सभी समुदाय ने मिलकर स्वागत किया है। इससे इस राष्ट्र की महानता समझ में आई है कि इस राष्ट्र की एक महान आत्मा है और सभी धर्मों के लोग इसी प्रकार की महानता का भाव रखते हैं। इससे आज साबित हुआ है।'
उन्होंने आगे कहा, 'मैं तो आडवाणी जी के घर में उनको मत्था टेकने आई हुई हूं क्योंकि आडवाणी जी ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने शुरू से छद्म धर्मनिरपेक्षता को चुनौती दी थी और उसके लिए अयोध्या एक बहुत बड़ा उदाहरण बनी थी, अडवाणी जी की बदौलत आज हम यहां तक पहुंचे। अडवाणी जी ने जिस प्रकार से संसद के अंदर इस पूरे पक्ष को तर्क के साथ प्रस्तुत किया था और पहली बार पॉलिटिकल प्लेटफॉर्म पर राष्ट्रवाद बनाम छद्म धर्मनिरपेक्षता की बहस हुई थी कि राष्ट्रवाद क्या है? इसलिए आज हम यहां तक आ गए बहुत बड़ी घटना हो रही है, जिसमें प्रधानमंत्री करतारपुर कोरिडोर के लिए गए हुए हैं। माननीय कोर्ट का जो निर्णय आया हुआ है और जो भी आता हमें स्वीकार होता, लेकिन आज हम जहा हैं दोबारा सरकार में बैठे, पूरे देश में क्या पूरी दुनिया में स्वीकृति हैं आज उसके कारण बहुत सारे हैं। उसका जो मूल अधिष्ठान माननीय अडवाणी जी हैं। तो मैं उनको मत्था टेकने और प्रणाम करने आई।'
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय इतिहास की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस व्यवस्था के साथ ही करीब 130 साल से चले आ रहे इस संवेदनशील विवाद का पटाक्षेप कर दिया। इस विवाद ने देश के सामाजिक ताने बाने को तार तार कर दिया था।
सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे। पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार राम लला की मूर्ति को सौंप दिया जाये, हालांकि इसका कब्जा केन्द्र सरकार के रिसीवर के पास ही रहेगा।
संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी।