हिन्दू पक्ष ने कहा- सुन्नी वक्फ बोर्ड यह सिद्ध करने में विफल रहा कि विवादित स्थल पर बाबर ने मस्जिद बनाया

By भाषा | Published: October 16, 2019 04:32 PM2019-10-16T16:32:18+5:302019-10-16T16:33:12+5:30

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष इस प्रकरण की सुनवाई के 40वें दिन एक हिन्दू पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष का यह दावा था कि विवाद की विषय वस्तु मस्जिद का निर्माण शासन की जमीन पर हुकूमत (बाबर) द्वारा किया गया था लेकिन वे इसे अभी तक सिद्ध नहीं कर पाये।

Ayodhya dispute: Hindu side said - Sunni Waqf Board failed to prove that Babur built a mosque at the disputed site | हिन्दू पक्ष ने कहा- सुन्नी वक्फ बोर्ड यह सिद्ध करने में विफल रहा कि विवादित स्थल पर बाबर ने मस्जिद बनाया

इस संपत्ति पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही काबिज हैं।

Highlightsअयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर मालिकाना हक के लिये 1961 में दायर मुकदमे का जवाब दे रहे थे।वैद्यनाथन ने कहा कि वे प्रतिकूल कब्जे के लाभ का दावा नहीं कर सकते।

उच्चतम न्यायालय में बुधवार को एक हिन्दू पक्षकार की ओर से दलील दी गयी कि सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकार यह सिद्ध करने में विफल रहे हैं कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल पर मुगल बादशाह बाबर ने मस्जिद का निर्माण किया था।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष इस प्रकरण की सुनवाई के 40वें दिन एक हिन्दू पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष का यह दावा था कि विवाद की विषय वस्तु मस्जिद का निर्माण शासन की जमीन पर हुकूमत (बाबर) द्वारा किया गया था लेकिन वे इसे अभी तक सिद्ध नहीं कर पाये।

वैद्यनाथन सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम व्यक्तियों द्वारा अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर मालिकाना हक के लिये 1961 में दायर मुकदमे का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि मुस्लिम पक्ष प्रतिकूल कब्जे के सिद्धांत के तहत विवादित भूमि पर मालिकाना हक का दावा कर रहे हैं तो उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि मूर्तियां या मंदिर पहले इसके असली मालिक थे। वैद्यनाथन ने कहा कि वे प्रतिकूल कब्जे के लाभ का दावा नहीं कर सकते।

यदि वे ऐसा दावा करते हैं तो उन्हें पहले वाले मालिक, जो इस मामले में मंदिर या मूर्ति हैं, को बेदखल करना दर्शाना होगा। इस प्रकरण की सुनवाई कर रही संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे़, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। वैद्यनाथन ने कहा कि अयोध्या में मुसलमानों के पास नमाज पढ़ने के लिये अनेक स्थान हो सकते हैं लेकिन हिन्दुओं के लिये तो भगवान राम का जन्म स्थान एक ही है जिसे बदला नहीं जा सकता।

उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष की इस दलील में कोई दम नहीं है कि लंबे समय तक इसका उपयोग होने के आधार पर इस भूमि को ‘वक्फ’ को समर्पित कर दिया गया था क्योंकि इस संपत्ति पर उनका अकेले का कब्जा नहीं था। उन्होंने कहा कि इस संपत्ति पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही काबिज हैं।

एक हिन्दू श्रद्धालु गोपाल सिंह विशारद की ओर से एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि मुस्लिम अपना मामला साबित करने में विफल रहे हैं और इसलिए सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य लोगों द्वारा दायर मुकदमा खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इस स्थान पर विशारद और दूसरे हिन्दू श्रृद्धालुओं का पूजा अर्चना करने का पहले से ही अधिकार था। रंजीत कुमार ने अपनी दलील समाप्त करते हुये कहा कि मुस्लिम समुदाय की आस्था के आधार पर विवादित स्थल का स्वरूप नहीं बदला जा सकता है।

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के विभिन्न पहलुओं का जिक्र किया और कहा कि भगवान राम के जन्मस्थल की पवित्रता के प्रति लंबे समय से हिन्दुओं की आस्था और विश्वास रहा है।

मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल द्वारा अयोध्या पर लिखित एक पुस्तक का हवाला दिये जाने के प्रयास पर आपत्ति की और कहा कि इस तरह के प्रयासों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

पीठ ने सिंह को अपनी बहस जारी रखने के लिये कहा और टिप्पणी की कि धवन जी हमने आपकी आपत्ति का संज्ञान ले लिया है। धवन ने भगवान राम के सही जन्मस्थल को दर्शाने वाले सचित्र नक्शे का हवाला देने पर आपत्ति की थी।

धवन ने पीठ से जानना चाहा कि वह इसका क्या करें। पीठ ने कहा कि वह इसके टुकड़े कर सकते हैं। इसके बाद धवन ने अखिल भारतीय हिन्दू महासभा द्वारा उपलब्ध कराये गये इस नक्शे को न्यायालय कक्ष में ही फाड़ दिया। निर्मोही और निर्वाणी अखाड़ा ने भी अयोध्या में विवादित भूमि के प्रबंधन और अनुयायी के अधिकार को लेकर अपना दावा किया और कहा कि 1885 से ही इस संपत्ति पर उनका कब्जा है और मुस्लिम पक्ष ने ईमानदारी से इस तथ्य को स्वीकार किया है।

इससे पहले, बुधवार को सुनवाई शुरू होते ही शीर्ष अदालत ने सभी पक्षकारों को यह स्पष्ट कर दिया कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में दायर अपीलों पर दैनिक सुनवाई आज ही पूरी होगी। न्यायालय ने कहा कि बहुत हो चुका है।

संविधान पीठ अयोध्या में विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश देने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर छह अगस्त से सुनवाई कर रही है।

पीठ ने कहा कि अयोध्या भूमि विवाद पर पिछले 39 दिन से सुनवाई की जा रही है और अब आज के बाद किसी भी पक्षकार को इस मामले में बहस पूरी करने के लिये कोई समय नहीं दिया जायेगा। शीर्ष अदालत ने पहले इस प्रकरण की सुनवाई 17 अक्टूबर तक पूरी करने की समय सीमा निर्धारित की थी लेकिन इसे बाद में एक दिन कम कर दिया गया था। संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। 

Web Title: Ayodhya dispute: Hindu side said - Sunni Waqf Board failed to prove that Babur built a mosque at the disputed site

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