अपातकाल: आडवाणी-बाजपेयी के बगल वाले बैरक में गूंजती थीं हीरोइन की चीखें
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 26, 2018 03:33 PM2018-06-26T15:33:17+5:302018-06-26T15:55:51+5:30
आपातकाल में हुई एक गिरफ़्तारी ऐसी भी थी जिसकी जानकारी कम ही जगह मिलती है, कन्नड़ अभिनेत्री ‘स्नेहलता रेड्डी’ की गिरफ्तारी।
बैंगलोर, 26 जूनः इमरजेंसी की बरसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए बॉलीवुड के पार्श्व गायक किशोर कुमार की चर्चा की। उन्होंने बताया कि कैसे किशोर कुमार के गानों को आपातकाल के दौरान सरकार ने आकाशवाणी पर बैन कर दिया था। ऐसे में अगर बात फिल्म जगत और आपातकाल की करें तो सबसे हृदय विदारक घटना कन्नड़ अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी की है।
आपातकाल में नेताओं का जेल जाना सुनने में अजीब नहीं लगता और ऐसे समय में तो बिलकुल भी नहीं जब देश का लोकतंत्र भयानक दौर से गुज़र रहा था। लेकिन एक गिरफ़्तारी ऐसी भी थी जिसकी जानकारी कम ही जगह मिलती है, कन्नड़ अभिनेत्री ‘स्नेहलता रेड्डी’ की गिरफ्तारी। ऐसा कहा जाता है कि जब भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपायी अपने तेज तर्रार भाषणों और उससे भी धारदार नारों के चलते बैंगलौर जेल में बंद कर दिए गए थे। तभी उनके साथ भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी को भी रखा गया था। उस दौरान भारतीय जनसंघ के युवा और उर्जावान चेहरों में यह दो नाम सबसे पहले आते हैं।
उसी वक्त जेल में दोनों नेताओं को एक महिला की चीखें सुनाई देती और बाद में उन्हें पता लगा कि वह कोई अपराधी या नेता नहीं बल्कि कन्नड़ अभिनेत्री ‘स्नेहलता रेड्डी’ थीं। स्नेहलता पर आरोप लगाया गया था कि वह वरोदा डायनामाईट केस में शामिल थीं। जिसके लिए उन्हें 2 मई 1976 को गिरफ़्तार किया गया था। इस केस की जाँच के अंत में उस समय के बड़े समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस को मुख्य आरोपी बनाया गया और स्नेहलता इस आरोप से बरी हुईं।
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लेकिन आपातकाल के दौरान जेल में उनकी तबियत बिगड़ने पर उन्हें ठीक उपचार नहीं मिला, उनकी आँतों और फेफड़ों में इन्फेक्शन हुआ जिससे उनकी हालत और खराब हो गई। अंततः बीस जनवरी 1977 को फेफड़े और आँतों में इन्फेक्शन की वजह से उनकी मौत हो गई। इंदिरा और उनकी सरकार से जुड़े लोगों का ऐसा मानना था कि स्नेहलता साम्यवादी विचारधारा की समर्थक हैं। यह बात भी बहुत पुख्ता नहीं थी पर एक विचारधारा का समर्थन करने की कीमत उस व्यक्ति की जान होना सही है?
जिस फिल्म के लिए स्नेहलता को नेशनल पुरस्कार मिला “संस्कारा” वह उनकी मौत के बाद रिलीज़ हुई थी l मधु दवंते, अटल बिहारी वाजपायी और आडवाणी जैसे अनेक दिग्गज नेताओं के मुताबिक़ लम्बे समय तक उनकी चीखें गूँजती रहीं लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। आपातकाल की दलील पर एक अभिनेत्री का इतने कठिन दौर से गुज़रना, अनेक यातनाएँ झेलना और अंत में तड़प कर मर जाना क्या एक लोकतांत्रिक देश के लिए सही था ?
(रिपोर्ट- विभव देव शुक्ला)