राजनीतिक जीवन में भी बचा पाए कवि का कोमल मन, जरूर पढ़नी चाहिए अटल बिहारी वाजपेयी की ये कविताएं

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 16, 2018 02:39 PM2018-08-16T14:39:49+5:302018-08-16T14:39:49+5:30

Atal Bihari Vajpayee Popular Poems: वाजपेयी जितने अच्छे राजनेता रहे उतने ही अच्छे साहित्यकार और उसी कोटि के पत्रकार भी। आइए पढ़ते हैं उनकी कुछ अमर कविताएं....

Atal Bihari Vajpayee 6 Popular Poems must read in Hindi | राजनीतिक जीवन में भी बचा पाए कवि का कोमल मन, जरूर पढ़नी चाहिए अटल बिहारी वाजपेयी की ये कविताएं

राजनीतिक जीवन में भी बचा पाए कवि का कोमल मन, जरूर पढ़नी चाहिए अटल बिहारी वाजपेयी की ये कविताएं

राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी की एक लंबी पारी रही है। एक साधारण अध्यापक के पुत्र अटल ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया। लेकिन राजनीति की तिकड़में उनके कोमल मन पर आघात नहीं पहुंचा सकीं। इसका प्रमाण हैं उनके कलम से निकलने वाली कविताएं। वाजपेयी जितने अच्छे राजनेता रहे उतने ही अच्छे साहित्यकार और उसी कोटि के पत्रकार भी। आइए पढ़ते हैं उनकी कुछ अमर कविताएं...

ठन गई! 
मौत से ठन गई! 

जूझने का मेरा इरादा न था, 
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, 

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई। 

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, 
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं। 

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, 
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? 

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, 
सामने वार कर फिर मुझे आजमा। 

मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र, 
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर। 

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, 
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं। 

प्यार इतना परायों से मुझको मिला, 
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला। 

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, 
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए। 

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, 
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है। 

पार पाने का क़ायम मगर हौसला, 
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई। 

मौत से ठन गई। 

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

क्या सच है, क्या शिव, क्या सुंदर?
शव का अर्चन,
शिव का वर्जन,
कहूँ विसंगति या रूपांतर?
         
वैभव दूना,
अंतर सूना,
कहूँ प्रगति या प्रस्थलांतर?

जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।

बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ।

सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।

गीत नहीं गाता हूँ

बेनक़ाब चेहरे हैं,
दाग़ बड़े गहरे हैं 
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ

पीठ मे छुरी सा चांद
राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ

दूसरी अनुभूति:

गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ

एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, 
पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।

अगणित बलिदानो से अर्जित यह स्वतन्त्रता, 
अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता। 
त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतन्त्रता, 
दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता।

इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो,
चिनगारी का खेल बुरा होता है । 
औरों के घर आग लगाने का जो सपना, 
वो अपने ही घर में सदा खरा होता है।

अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो, 
अपने पैरों आप कुल्हाडी नहीं चलाओ। 
ओ नादान पडोसी अपनी आँखे खोलो, 
आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ।

पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है? 
तुम्हे मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई। 
अंग्रेजों के बल पर दो टुकडे पाये हैं, 
माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई?

अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को 
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो। 
दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से 
तुम बच लोगे यह मत समझो।

धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से 
कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो।
हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से 
भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो।

जब तक गंगा मे धार, सिंधु मे ज्वार, 
अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,
स्वातन्त्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे 
अगणित जीवन यौवन अशेष।

अमरीका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध,
काश्मीर पर भारत का सर नही झुकेगा 
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा ।

अटल बिहारी वाजपेयी भारत के दसवें प्रधानमंत्री थे। उनका कार्यकाल साल 1998 से लेकर 2004 तक था। पांच साल तक सत्ता में रहने वाले वो देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। भारतीय राजनीतिक इतिहास में उनको एक कुशल राजनीतिज्ञ, भाषाविद, कवि और पत्रकार के रूप में जाना जाता है। वह एक ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें जनता के साथ-साथ हर पार्टी के लोग पसंद करते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1925 को हुआ। अपनी प्रतिभा, नेतृत्व क्षमता और लोकप्रियता के कारण वे चार दशकों से भी अधिक समय से भारतीय संसद के सांसद रहे। इसके अलावा दो बार भारत के प्रधानमंत्री पद पर भी सुशोभित हुए। अटल जी अपनी सात्विक राजनीति और संवेदनशीलता के लिए जाने जाते हैं। उनके भाषणों का ऐसा जादू कि लोग सुनते ही रहना चाहते हैं। वाजपेयी ने तबीयत के चलते कई साल पहले सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था।

English summary :
Atal Bihari Vajpayee is not only a good politicians but a Writer and journalist also. Lokmat News Hindi shares some popular poem of former prime minister Atal Bihari Vajpayee


Web Title: Atal Bihari Vajpayee 6 Popular Poems must read in Hindi

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