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Blog कुलदीप नैयर: असम में परदेशी या वोट बैंक?

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 24, 2018 06:10 IST

कांग्रेस ने यह जान-बूझ कर किया क्योंकि हम असम को अपने साथ रखना चाहते थे।

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कुलदीप नैयर

भारतीय जनता पार्टी पूवरेत्तर  के सात  में  से  छह राज्यों में अच्छी तरह जड़ जमा चुकी है। यह कुछ ऐसा है जिसकी कल्पना देश के विभाजन के लिए हो रही बातचीत के समय किसी ने नहीं की थी। उस समय के कांग्रेस के बड़े नेता फखरुद्दीन अली अहमद ने एक बार स्वीकार किया था कि ‘वोट के लिए’ पड़ोसी देशों, जैसे पूर्व पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश है, से मुसलमान असम लाए गए थे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने यह जान-बूझ कर किया क्योंकि हम असम को अपने साथ रखना चाहते थे।

राज्य के लोगों के लिए इसने गंभीर समस्या पैदा कर दी। उस समय से पूवरेत्तर, खासकर असम में घुसपैठ की समस्या बहुत बड़ी चिंता बन गई है। अवैध स्थानांतरण को रोकने की प्रक्रिया, जो ब्रिटिश शासन के समय ही शुरू हुई थी। राष्ट्रीय और राज्य के स्तर पर काफी प्रयासों के बावजूद अधूरी ही रह गई। इसके नतीजे के तौर पर, बड़े पैमाने पर स्थानांतरण ने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरण से संबंधित प्रभाव डाले और पूवरेत्तर के लोग चिंता व्यक्त करने लगे। जब 1950 में प्रवासी (असम से निष्कासन) कानून पास हुआ, जिसके तहत सिर्फ उन्हीं लोगों को रहने की अनुमति है, जो पूर्वी पाकिस्तान में  लोगों के उपद्रव के कारण विस्थापित हुए थे, तो लोगों को निकालने पर पश्चिम पाकिस्तान में काफी विरोध हुआ। इसके बाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और लियाकत अली खान के बीच समझौता हुआ जिसके तहत 1950 में देश से निकाले गए लोगों को वापस आने दिया गया।

चीन-भारत के बीच 1962 में हुए युद्ध के दौरान सरहद पर पाकिस्तानी झंडा लिए कुछ घुसपैठिए देखे गए। इसके कारण  केंद्र सरकार ने 1964 में असम प्लान बनाया। लेकिन सत्तर के दशक में पूर्व पाकिस्तान में जारी अत्याचार का नतीजा था कि बड़ी संख्या में शरणार्थियों का बेरोकटोक आना हुआ। इंदिरा गांधी - मुजीबुर रहमान के बीच 1972 के समझौते ने अवैध परदेशियों को फिर से परिभाषित किया। इसके तहत 1971 के पहले आने वाले लोगों को गैर-बांग्लादेशी घोषित कर दिया गया।

असमिया लोगों ने इसका विरोध किया और आंदोलन करने लगे। इसके कारण 1983 में अवैध परदेशी (ट्रिब्यूनल से निर्धारण), कानून लागू हुआ। इस कानून का उद्देश्य ट्रिब्यूनल के जरिए अवैध परदेशियों की पहचान और उन्हें देश से बाहर निकालना था। लेकिन इससे पूवरेत्तर में वर्षो से चली आ रही इस समस्या का निपटारा नहीं हो पाया। सन 1985 में असम समझौते के तुरंत बाद अवैध परदेशियों की पहचान के लिए अंतिम तारीख 25 मार्च 1971 को तय किया गया, जिस दिन बांग्लादेश का जन्म हुआ है। 

दुर्भाग्य से, भाजपा सरकार 1955 के कानून में इस तरह के बदलाव पर तुली है जिसके तहत धार्मिक  आधार पर सताए गए परदेशियों को नागरिकता देगी यानी सांप्रदायिक आधार पर उनके बीच भेद किया जाएगा। असम के ज्यादातर लोग इसके खिलाफ हैं क्योंकि समझौते के अनुसार 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी अवैध परदेशियों को वापस भेजा जाना तय हुआ था। इसके बदले, केंद्र को राज्यों, मसलन असम, नगालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय के साथ सीमा के लंबित विवादों को सुलझाने के लिए कदम उठाने चाहिए। अरुणाचल प्रदेश को छोड़ कर बाकी राज्य असम से ही अलग कर बनाए गए हैं। इसी तरह, मणिपुर का नगालैंड तथा मिजोरम के साथ भी सीमा विवाद है। पर वे असम की तरह दिखाई नहीं देते हैं।

इसके बावजूद, क्षेत्र के लोग, देश की राजधानी समेत इसके दूसरे हिस्सों में पूवरेत्तर के लोगों, खासकर छात्रों को, परेशान करने जैसे कई मुद्दों पर एक साथ हैं। वे क्षेत्र के विकास में और भागदारी चाहते हैं। बेशक, विकास के कई कदम भाजपा ने उठाए हैं और वहां के लोगों से भावनात्मक जुड़ाव की कोशिश कर रही है। अगले साल हो रहे आम चुनाव के मद्देनजर भाजपा पूवरेत्तर की समस्याओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती

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