आतंकियों पर कारगर साबित हो रहा सेना का ऑपरेशन ‘मां’, जानें इस ऑपरेशन के बारे में सबकुछ

By भाषा | Published: February 21, 2020 05:08 PM2020-02-21T17:08:31+5:302020-02-21T17:08:31+5:30

जम्मू-कश्मीर में एनकाउंटर के दौरान पूरी तरह से घिर जाने के बाद आतंकियों पर ऑपरेशन ''मां'' चलाया जाता है।

Army operation Maa is proving effective on terrorists says army official kanwal jeet singh dhillon know everything about this operation | आतंकियों पर कारगर साबित हो रहा सेना का ऑपरेशन ‘मां’, जानें इस ऑपरेशन के बारे में सबकुछ

चारों तरफ से आतंकियों को घेरने के बाद सेना चलाती है ऑपरेश मां

Highlightsजम्मू-कश्मीर में सेना का ऑपरेशन मां आतंकियों को देता सुधरने का मौका370 खत्म होने के बाद घाटी में कम हुई आतंकियों की संख्याकश्मीर में अब युवाओं को लुभा नहीं पा रहे आतंकवादी समूह

सेना के एक शीर्ष अधिकारी का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से निपटने के लिए चलाए गए ऑपरेशन ‘मां’ का प्रभाव उल्लेखनीय रहा है और इसके जरिये आतंकवादी समूहों के सरगनाओं से जन-हितैषी तरीके से निपटा जा रहा है। कश्मीर स्थित सामरिक रूप से महत्वपूर्ण 15वें कोर के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल कंवल जीत सिंह ढिल्लों ने ऑपरेशन ‘मां’ की शुरुआत की थी। इसमें मुठभेड़ के दौरान जब स्थानीय आतंकवादी पूरी तरह घिर जाते हैं तो उनकी मां या परिवार के अन्य बड़े सदस्यों या समुदाय के प्रभावी लोगों को उनसे बात करने का अवसर दिया जाता है। इस दौरान वे युवकों को आतंकवाद का रास्ता छोड़कर सामान्य जीवन में लौटने के लिए समझाते हैं। लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों का मानना है, “कुछ भी तब तक नहीं खोता जब तक आपकी मां उसे खोज नहीं सकती।’’ उन्होंने इस अभियान के नतीजों को उल्लेखनीय बताया है।

सेना आतंकियों को देती है वापसी का अवसर

लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा, ‘‘सभी अभियानों के दौरान हम स्थानीय आतंकवादियों को वापसी का अवसर देते हैं। मुठभेड़ को आधे में रोक दिया जाता है और उसके माता-पिता या समुदाय के बुजुर्गों को घिरे हुए स्थानीय आतंकवादियों से लौट आने की अपील करने को कहा जाता है। यह है ऑपरेशन ‘मां’ और हमें कई बार सफलता मिली है।’’ हालांकि सेना ने कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी क्योंकि इससे धीरे-धीरे सामान्य जीवन से जुड़कर मुख्यधारा में लौट रहे पूर्व आतंकवादियों की सुरक्षा और जीवन को खतरा पैदा हो सकता है।

370 खत्म होने के बाद आतंकी समूह से दूरी बना रहे युवा

उन्होंने कहा कि कोई भी प्रभावी अभियान, खास तौर पर किसी आतंकी संगठन के सरगनाओं के खिलाफ, पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ ‘जन हितैषी’ तरीके से अपनाए गए रुख का नतीजा होता है। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा हाल ही में तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, छह महीने पहले जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने और उसके दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद से हर महीने औसतन महज पांच युवक ही आतंकवादी समूहों में शामिल हुए हैं। जबकि पांच अगस्त, 2019 से पहले हर महीने करीब 14 युवक आतंकवादी समूहों का हाथ थाम लेते थे।

आतंकवाद युवाओं के लिए लुभावना विकल्प नहीं रह गया

गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने पांच अगस्त, 2019 को तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया और राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था। लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों का मानना है कि सुरक्षा बलों द्वारा विभिन्न अभियान चलाकर आतंकवादी समूहों के 64 प्रतिशत नए रंगरूटों को उनके संगठन में शामिल होने के एक साल के भीतर खत्म कर दिया जाना भी अवरोधक के रूप में काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस कारण 2018 के मुकाबले 2019 में स्थानीय युवकों की भर्ती आधी से भी कम रह गई है और आतंकवादी समूहों में शामिल होना अब युवाओं के लिए लुभावना विकल्प नहीं रह गया है।

आतंकवादियों के जनाजे में भारी भीड़ जुटना अब बीते दिनों की बात

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आतंकवादियों के जनाजे में भारी भीड़ जुटना भी अब बीते दिनों की बात हो गई है। अब सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादी के जनाजे में कुछ मुट्ठी भर करीबी रिश्तेदार ही नजर आते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच अगस्त, 2019 से पहले मारे गए आतंकवादियों के जनाजे में बड़ी संख्या में लोग जुटते थे। कई बार तो 10 हजार तक लोग होते थे। ऐसी भीड़ युवाओं को आतंकवाद की ओर खींचने की जमीन देती थी। विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों द्वारा संकलित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि अब इसमें कमी आयी है और इस कारण स्थानीय युवकों की भर्तियों में भी कमी आयी है। उसमें कहा गया है, ‘‘(पांच अगस्त, 2019 के बाद) कई ऐसे मौके पर आए हैं जब आतंकवादियों के जनाजे में सिर्फ दर्जन भर करीबी रिश्तेदार ही शामिल हुए।’’

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