जम्मू: देश के दुश्मनों को अपनी जबड़ों में दबोचने वाले 'जूम' को बचाने को दुआ कबूल नहीं हुई और आतंकियों की गोलियों से जख्मी 'जूम' की जान अंत में नहीं बचाई जा सकी। सेना के डाक्टरों ने बहादुर डॉग 'जूम' को बचाने की भरसक कोशिश की लेकिन सारी कोशिशें नाकाम रही।
श्रीनगर स्थित चिनार कोर मुख्यालय में शहीद हुए खोजी कुत्ते 'जूम' को सैन्य अधिकारियों ने श्रद्धांजलि दी। शुक्रवार सुबह जूम के लिए आयोजित हुए श्रद्धांजलि सभा में लेफ्टिनेंट जनरल एडीएस औजला समेत सेना के कई अन्य अधिकारी मौजूद थे।
आतंकियों के साथ मुठभेड़ के दौरान गंभीर रूप से घायल हुए 'जूम' की 72 घंटे के इलाज के बाद गुरुवार को श्रीनगर के 54 एडवांस फील्ड वेटरनरी अस्पताल (एएफवीएच) में मौत हो गई थी। वह 10 अक्तूबर को अनंतनाग के टंगपावा इलाके में आतंकियों की गोली का शिकार हुआ था।
इससे पहले 30 जुलाई को उत्तरी कश्मीर के बारामुल्ला जिले में आतंक विरोधी आप्रेशन में असाल्ट डाग 'एक्सेल' भी गंभीर रूप से घायल होने के बाद शहीद हो गया था। सेना ने करीब ढाई माह में अपने दो बहादुर कुत्तों को खो दिया है।
सैन्य अधिकारियों ने बताया कि 'जूम' की उम्र दो साल एक महीने की थी। वह बेल्जियम की चरवाहा नस्ल का था और पिछले आठ महीनों से सेवा में सक्रिय था। उसे आतंकियों का पता लगाने और उन्हें खत्म करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था।
इससे पहले सेना ने उत्तरी कश्मीर के बारामुल्ला जिले के वानीगाम में 30 जुलाई को आतंकी ऑपरेशन के दौरान दो साल के असाल्ट श्वान 'एक्सेल' को भी खो दिया था। आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर 15 अगस्त को 'एक्सेल' को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उत्तरी कमान के एक उच्च सैन्य अधिकारी ने बताया कि आर्मी असाल्ट डाग 'जूम' ने 72 घंटे तक बहादुरी से जूझते हुए ‘इन द लाइन आफ ड्यूटी’ पर अपनी जान की कुर्बानी दे दी। 'जूम' को दक्षिण कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान उस स्थान पर भेजा गया था, जहां आतंकी छिपे हुए थे।
‘जूम’ दक्षिण कश्मीर में कई सक्रिय आप्रेशन में हिस्सा ले चुका है। सेना के अधिकारियों के मुताबिक ‘जूम’ बेहद प्रशिक्षित, आक्रामक और वफादार डाग था। आर्मी के इस असाल्ट डाग को छिपे हुए आतंकियों का पता लगाने और उनके खात्मे की ट्रेनिंग दी गई थी।
सेना आतंकियों की जानकारी के लिए पहले आर्मी के असाल्ट डाग आतंकियों की लोकेशन पर भेजती है और वो कुत्ते आतंकियों के हथियारों और गोला-बारूद का पता लगाते हैं। इन कुत्तों के शरीर पर कैमरे लगे होते हैं, जिसके जरिए कंट्रोल रूम से निगरानी की जाती है।
सेना इन कुत्तों को छिपे हुए आतंकियों की लोकेशन में बिना नजर में आए एंट्री की ट्रेनिंग देती है। इसके अलावा इन्हें ऑपरेशन के दौरान न भौंकने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। अगर आतंकी इन कुत्तों को देख लें, तो ऐसी स्थिति में यह कुत्ते आतंकियों पर हमला करने में भी माहिर होते हैं।
सेना के कुत्तों द्वारा कई तरह की ड्यूटीज की जाती हैं। इसमें गार्ड ड्यूटी, पेट्रोलिंग, इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेस सहित विस्फोटकों को सूंघना, सुरंग का पता लगाना, ड्रग्स सहित प्रतिबंधित वस्तुओं को सूंघना, संभावित टारगेट पर हमला करना, मलबे का पता लगाना, छिपे हुए भगोड़ों और आतंकवादियों का पता करना शामिल है।
सेना के हर कुत्ते की देखरेख की पूरी जिम्मेदारी उसके डॉग हैंडलर की होती है। उसे कुत्ते के खाने-पीने से लेकर साफ-सफाई का ध्यान रखना होता है और ड्यूटी के समय सभी काम कराने के लिए हैंडलर ही जिम्मेदार होता है।
सेना के कुत्तों को मेरठ स्थित रिमाउंट एंड वेटरनरी कार्प सेंटर एंड स्कूल में प्रशिक्षित किया जाता है। कुत्तों की नस्ल और योग्यता के आधार पर उन्हें सेना में शामिल करने से पहले कई चीजों में प्रशिक्षित किया जाता है। ये कुत्ते रिटायर होने से पहले लगभग आठ साल तक सेना को अपनी सेवाएं देते हैं।