राजनीति, सत्ता, धनबल और बाहुबल का ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ गठजोड़ है आनंद मोहन की रिहाई: जयप्रकाश नारायण

By भाषा | Published: April 30, 2023 03:15 PM2023-04-30T15:15:15+5:302023-04-30T15:26:33+5:30

‘फाउंडेशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के संस्थापक जयप्रकाश नारायण ने कहा कि एक जिलाधिकारी की जब पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है तो एक राज्य के रूप में आप क्या संदेश देते हैं? आप कुछ भी दलील देते रहिए लेकिन जब आप ऐसा करते हैं तो अपनी साख और विश्वसनीयता को ताक पर रख देते हैं। ऐसे कदमों से सरकार पर जनता का विश्वास कम होता है।

Anand Mohan's release is an unfortunate nexus of politics money and muscle power Jayaprakash Narayan | राजनीति, सत्ता, धनबल और बाहुबल का ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ गठजोड़ है आनंद मोहन की रिहाई: जयप्रकाश नारायण

राजनीति, सत्ता, धनबल और बाहुबल का ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ गठजोड़ है आनंद मोहन की रिहाई: जयप्रकाश नारायण

Highlightsआनंद मोहन की रिहाई पर लोकसत्ता आंदोलन और ‘फाउंडेशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के संस्थापक जयप्रकाश नारायण ने अपनी बात रखी है। जयप्रकाश नारायण ने कहा कि देश में प्रशासनिक स्तर पर कई खामियां हैं। इनकी वजह से पुलिस हो या सरकार, लोगों को भरोसा नहीं होता। इस जघन्य अपराध में अपराधी को जो सजा मिली वह नाकाफी थीः जयप्रकाश नारायण

नयी दिल्लीः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार ने हाल में जेल नियमावली में संशोधन कर सांसद रहे बाहुबली नेता आनंद मोहन सहित 27 लोगों को रिहा कर दिया। गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी आनंद मोहन की रिहाई को लेकर राज्य सरकार आलोचनाओं के घेरे में है। इसी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर लोकसत्ता आंदोलन और ‘फाउंडेशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के संस्थापक जयप्रकाश नारायण से ‘भाषा के पांच सवाल’ और उनके जवाब:

सवाल: राजनीति में अपराधीकरण के प्रखर आलोचक होने के नाते आनंद मोहन की रिहाई पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या है?
जवाब: अपने देश में न्याय के प्रति सम्मान की बहुत कमी है। एक जिलाधिकारी की जघन्य हत्या कर दी जाती है, वह भी जब वह अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे थे। इस जघन्य अपराध में अपराधी को जो सजा मिली वह नाकाफी थी। अपराध की प्रकृति के अनुरूप उसे सजा नहीं मिली। देश में कोई कानून का राज है, इसे लेकर कभी-कभी संशय भी होता है। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली स्थिति नजर आती है। यदि आपके पास सत्ता और पैसा है तो आपके लिए अलग नियम हैं... बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनीति, सत्ता, धनबल, बाहुबल सबका गठजोड़ हो गया है। अपने देश की राजनीतिक प्रक्रिया में जो खामियां हैं, यह उस का लक्षण है।

सवाल: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि इस फैसले में नियमों का पालन किया गया है। आप क्या कहेंगे?
जवाब: आप नियम बदल सकते हैं, आप जेल नियमावली में बदलाव कर सकते हैं, आप कानून को तोड़ मरोड़ सकते हैं और फिर यह दलील दें कि हमने एक निश्चित प्रक्रिया का पालन किया है। लेकिन सवाल यह है कि आप समाज को संदेश क्या दे रहे हैं? एक जिलाधिकारी की जब पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है तो एक राज्य के रूप में आप क्या संदेश देते हैं? आप कुछ भी दलील देते रहिए लेकिन जब आप ऐसा करते हैं तो अपनी साख और विश्वसनीयता को ताक पर रख देते हैं। ऐसे कदमों से सरकार पर जनता का विश्वास कम होता है।

सवाल: फैसले पर परिवार ने भी सवाल उठाए हैं। क्या इस प्रकार के कदमों से आपको नहीं लगता कि पुलिस अधिकारियों के मनोबल पर असर पड़ता है?
जवाब: देश में प्रशासनिक स्तर पर कई खामियां हैं। इनकी वजह से पुलिस हो या सरकार, लोगों को भरोसा नहीं होता। दोषसिद्धि की दर को जब हम देखते हैं तो अपने यहां दुनिया में यह सबसे कम है। हम सब खुशनसीब हैं कि एक समाज के तौर पर हम बहुत ही शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण हैं। यह कानून या पुलिस की बदौलत नहीं है बल्कि समाज की वजह से है। आनंद मोहन का मामला तो स्पष्ट है। जब मामला इतना स्पष्ट होता है तो समाज की सुरक्षा के लिए कड़ी सजा आवश्यक है। जिस प्रकार बिहार सरकार ने यह फैसला लिया है उससे निश्चित तौर पर वे अधिकारी हतोत्साहित होंगे जो ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं। रही बात कृष्णैया के परिवार की तो यह उनका अधिकार है। सरकार जब पीड़ितों के अधिकारों को भूल जाए तो उनका सवाल उठाना लाजमी है। सरकार का कदम पीड़ित पक्ष के अधिकारों को क्षीण करना और समाज को कमजोर करने जैसा है।

सवाल: कृष्णैया तेलंगाना से थे और एक दलित परिवार से ताल्लुक रखते थे लेकिन इस मामले में मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव चुप हैं। इस पर आप क्या कहेंगे?
जवाब: हमारे नेता और हमारी मीडिया ने जनहित के मुद्दों के तथ्यपूर्ण, तर्कपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण विश्लेषण की क्षमता ही खो दी है। दुर्भाग्य से अब यह हो गया है कि वह हमारा आदमी है तो वह सही है और वह हमारा नहीं है तो वह गलत है। सत्य, तथ्य कोई मायने नहीं रखता है। इसलिए यदि एक मुख्यमंत्री ऐसे मामलों में भी अपनी आवाज नहीं उठाता है तो वह पीड़ित परिवार के साथ अन्याय है। यह बहुत दुखद है लेकिन इसमें मुझे आश्चर्य भी नहीं है। इसलिए मैं बार-बार कानून के एक प्रभावी और स्वतंत्र राज का पक्षधर हूं।

सवाल: एक ऐसा ही मामला इन दिनों सुर्खियों में है। दिल्ली के जंतर मंतर पर पदक विजेता पहलवान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके बारे में आपकी क्या राय है?
जवाब: मैंने अभी कानून के राज की बात की। यदि हमारे यहां स्वतंत्र और विश्वसनीय तंत्र नहीं होगा तो जनता का भरोसा कैसे कायम होगा। यह सिर्फ कागजों पर ही सीमित नहीं होना चाहिए। यह नहीं होगा तो समस्याएं और बढ़ेंगी। हमें किसी व्यक्ति विशेष के बारे में न सोचकर व्यापक तंत्र के बारे में सोचना होगा। इसे मजबूत बनाना होगा। ऐसे मामलों में कार्रवाई होगी तो जनता का विश्वास बढ़ेगा। सरकार को इस बारे में सोचना ही होगा। 

Web Title: Anand Mohan's release is an unfortunate nexus of politics money and muscle power Jayaprakash Narayan

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