Amit Shah Exclusive Interview: "न्याय संहिता में हुआ बदलाव ‘गेम चेन्जर’ से ज्यादा भारतीय न्याय में एक नए युग की शुरुआत है", गृहमंत्री अमित शाह ने कहा
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 6, 2024 12:25 PM2024-02-06T12:25:41+5:302024-02-06T12:30:36+5:30
गृह मंत्री अमित शाह ने लोकमत समूह के संपादकीय संचालक ऋषि दर्डा से बात करते हुए न्याय संहिता में हुआ बदलाव पर कहा कि मैं इसे ‘गेम चेन्जर’ से ज्यादा भारतीय न्याय में एक नए युग की शुरुआत मानता हूं।
Amit Shah Exclusive Interview: केंद्र की मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में गृह मंत्री अमित शाह एक तेज तर्रार मंत्री के रूप में अपनी पहचान रखते हैं। वह जितने आत्मविश्वास के साथ संसद में अपनी बात रखते हैं, उतनी दृढता के साथ उसे पालन कराने का दावा भी करते हैं। संसद के पिछले सत्र में भारतीय दंड विधान के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता लाने पर वह विपक्ष के निशाने पर रहे, लेकिन हर तरह की आलोचनाओं का तथ्यों परख जवाब देते हुए बदलाव को जायज ठहराया।
बीते सप्ताह नई दिल्ली में ढलती शाम लोकमत समूह के संयुक्त प्रबंध संचालक और संपादकीय संचालक ऋषि दर्डा और नेशनल एडिटर हरीश गुप्ता के साथ बातचीत में गृह मंत्री अमित शाह ने नए कानूनों के विषय में कई सवालों का विस्तार से जवाब दिया।
लोकमत समूह के संपादकीय संचालक ऋषि दर्डा ने संसद में पास हुए तीन क्रिमिनल लॉ के बारे में सवाल करते हुए कहा आपराधिक कानूनों में हुए बदलावों को कानून-व्यवस्था में एक ‘टर्निंग पॉइंट’ या ‘गेम चेन्जर’ क्यों कहा जा रहा है?
इस सवाल के जवाब में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, "मैं इसे ‘गेम चेन्जर’ से ज्यादा भारतीय न्याय में एक नए युग की शुरुआत मानता हूं क्योंकि लगभग 160 साल तक हमारा देश अंग्रेजों की बनाई न्याय व्यवस्था पर चला। मगर जब तक अंग्रेजों का शासन था, तब तक तो ठीक था। उनकी संसद ने कानून बनाया, हमने उसका पालन किया लेकिन स्वतंत्रता के बाद हमारी सत्ता आने के बाद भी वही कानून चलते रहे, जो करीब वर्ष 1860 से 1875 के बीच बने थे और उनका उद्देश्य अंग्रेजी सत्ता को टिकाए रखना था। वे कानून लोगों को न्याय देने के लिए नहीं थे।
ऋषि दर्डा ने गृह मंत्री शाह के दिये जवाब के पूछा कि इससे कानून-व्यवस्था में ऐसा क्या बदलाव आने वाला है?
गृह मंत्री ने कहा, "किसी भी सभ्य समाज के लिए न्याय की प्रक्रिया को तैयार करने में आवश्यक यह है कि वह समाज में सबसे बड़ा गुनाह क्या है वह देखे। आज के संदर्भों में देखें या डेढ़ सौ साल पहले के संदर्भ में देखें, तो मानव हत्या सब से बड़ा अपराध था। वह इंडियन पीनल कोड 302 नंबर पर था। यह उस समय की प्राथमिकता थी। आज के संदर्भों में विचार किया जाए तो महिलाओं तथा बच्चों के साथ अत्याचार के बाद मानव हत्या और अत्याचार है किंतु उनका नंबर धारा 302, 367 था। इसके ऊपर क्या था? खजाना लूटना, राजद्रोह, रेल पटरी उखाड़ देना, रेलवे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, सरकारी अफसर के खिलाफ उद्दंडता करना जैसे अपराधों की धाराएं थीं। पहली बार हमारे संविधान की भावना हर व्यक्ति के साथ समान न्याय, संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा के साथ कानून तैयार किया गया है. इसीलिए यह युग परिवर्तनकारी कानून का होगा।"
गृह मंत्री शाह के जबाव से संतुष्ट होते हुए ऋषि दर्डा ने आगे पूछा, आप ठीक कह रहे हैं, लेकिन न्याय कब मिलता है। मुकदमे चलते ही रहते हैं। सही मायने में कितने लोगों को सजा मिल पाती है?
गृह मंत्री ने कहा, "आजादी के 75 साल बाद पहली बार हम भारतीय न्याय व्यवस्था के अनुसार काम करेंगे। मोदीजी ने जो एक बहुत बड़ा लक्ष्य देश के सामने रखा हैं कि वर्ष 2047 के पहले हमें गुलामी की सारी निशानियों कों समाप्त कर देना है और हमारी संस्कृति के आधार पर नया कानून बनाना हैं, बस यह इसकी शुरुआत है। पुराने कानून का पूरा जोर सजा देने पर था, मगर नए कानून का उद्देश्य न्याय दिलाना है। ढेर सारे लोगों ने न्याय के बारे में लिखा है। नारद से याज्ञवल्क्य, कल्प से कौटिल्य तक बहुत सारे लोगों ने न्याय के बारे में लिखा है। सभी की न्याय की अवधारणा का मूल न्याय था। अब दंड, पैनल्टी, सजा की जगह न्याय को केंद्र में लाया गया है। सजा किसलिए दी जाए, क्योंकि समाज में कोई दूसरा व्यक्ति इसे देखकर अपराध न करे. परंतु मूल भावना व्यक्ति को मिलने वाले न्याय की है। बहुत बड़ा फर्क यह है। हमने कानून की आत्मा को भारतीय कर दिया है और संविधान के हिसाब प्राथमिकता बदल ली है। हमने दंड की जगह न्याय को स्थापित कर मूल भारतीय न्याय विचारों से हमारा ‘जस्टिस सेंट्रिक’ कानून तैयार किया है। दुनिया में लगभग तीन न्याय व्यवस्थाएं हैं। चौथी शरियत भी है परंतु पूर्णतः शरियत को बहुत कम देशों ने अपनाया है। अपराध कानून लैटिन, आयरिश हैं। भारतीय न्याय की भी व्यवस्था है। हम आज तक आयरिश न्याय व्यवस्था से नियंत्रित होते रहे हैं।"
इसके बाद ऋषि दर्डा ने पूछा कि आज तो अदालतों में तारीख पर तारीख मिलती है, ऐसे में फैसले का क्या?
अमित शाह ने कहा, "न्याय वही सच्चा होता है, जो समय पर मिले। 150 साल पुराने कानून में कहीं पर भी समय पर न्याय का प्रावधान नहीं था। हमने समय पर न्याय दिलाने के लिए दो प्रकार का प्रावधान किया है। एक, आधुनिक तकनीक को बहुत अधिक उपयोग में लाया है। जिससे न्याय की प्रक्रिया बहुत सरल हो जाएगी। दो, हमने पुलिस मतलब जांच, अभियोजन (वकीलों) और न्यायाधीशों, तीनों स्तर के लिए तीस से ज्यादा धाराओं में समय सीमा तय की है। अब जांच को 180 दिन से लंबा नहीं खींचा जा सकता है। अब आपको ‘फाइनल चार्जशीट’ अदालत में रखनी ही होगी। ‘फाइनल चार्ज शीट’ आने के बाद इतने दिन में ‘एक्नॉलेज’ करना हैं, इतने दिन में सुनवाई शुरू करनी है। फैसला सुरक्षित रखने के बाद 45 दिन में आपको फैसला सुनाना है। अब तकनीक के सहारे और कानूनी प्रावधानों से भी समय पर न्याय मिलेगा. सबसे बड़ी बात यह कि पूरी तरह से लागू होने के बाद यह कानून विश्व का सबसे आधुनिक और तकनीक से युक्त कानून होगा।"
ऋषि दर्डा ने गृह मंत्री से अगला सवाल किया कि कुछ अधिकारी-कर्मचारी अपनी कार्यालयी व्यस्तताओं के चलते अदालत में जाना टलते हैं। उनसे भी मुकदमों के फैसलों में देर होती है। क्या इसके लिए भी नये कानून में कोई तकनीकी सुधार किया गया है?
गृह मंत्री अमित शाह ने इस सवाल के जवाब में कहा, "अगले सौ साल में आने वाली तकनीक को ध्यान में रखकर हमने इसमें प्रावधान जोड़े हैं। अभी अधिकारी को कोर्ट में आना पड़ता है तो उसे सुबह से शाम तक बैठना पड़ता है। उसका नाम आएगा या नहीं या डेढ़ महीने बाद की तारीख मिलेगी कहा नहीं जा सकता है। कोर्ट का वातावरण भी वैज्ञानिकों को अच्छा नहीं लगता, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों को भी अच्छा नहीं लगता, बैंक के ऑफिसरों को भी अच्छा नहीं लगता है तो वो वहां आना टालते हैं और ‘डेट पे डेट’ मिलती रहती है। हमने तय किया कि अब ऑनलाइन गवाही होगी। गवाह को या अफसर को कोर्ट में आने की जरूरत नहीं होगी। कैदी को कोर्ट में लाया नहीं जाएगा, जेल से ऑनलाइन सुनवाई की जाएगी।"