अलविदा टाइगरः मिग-21 को काॅफिन मत कहिए?, वीर चक्र से सम्मानित एयर मार्शल हरीश मसंद से जानिए लड़ाकू विमान के बारे में...

By फहीम ख़ान | Updated: September 24, 2025 18:12 IST2025-09-24T18:11:39+5:302025-09-24T18:12:53+5:30

Goodbye Tiger: पूरे छह दशक की सेवा के बाद मिग-21, 26 सितंबर को चंडीगढ़ में रिटायर होने जा रहा है.

alvida Goodbye Tiger air marshal masand says Don't call MiG-21 coffin Know about fighter aircraft from Vir Chakra awardee Air Marshal Harish Masand | अलविदा टाइगरः मिग-21 को काॅफिन मत कहिए?, वीर चक्र से सम्मानित एयर मार्शल हरीश मसंद से जानिए लड़ाकू विमान के बारे में...

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Highlightsभारतीय वायुसेना के फाइटर विमान मिग-21 की विदाई का समय आ गया है. विदाई दुनिया में किसी एयरक्राफ्ट की शायद ही कभी हुई हो.महीनों पहले के ऑपरेशन सिंदूर में इस एयक्राफ्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

नागपुर: मिग -21 जैसा लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना के बेड़े में हमेशा होना चाहिए. इस विमान ने वायुसेना के जांबाज फाइटर पायलटों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मनों को धूल चटाई है. लेकिन बावजूद इसके मिग-21 को काॅफिन कहा गया. यह असल में इस विमान के साथ नाइंसाफी ही थी. जो ऐसा कहते थे उन्होंने कभी इसकी खूबियों को जानने की कोशिश नहीं की, और न ही उन्होंने कभी दूसरे विमानों के साथ तुलना में आंकड़े ही पेश किए. यह कहना है वीर चक्र से सम्मानित भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी एयर मार्शल हरीश मसंद का.

भारतीय वायुसेना के फाइटर विमान मिग-21 की विदाई का समय आ गया है. पूरे छह दशक की सेवा के बाद मिग-21, 26 सितंबर को चंडीगढ़ में रिटायर होने जा रहा है. इसकी विदाई की तैयारियों से जाहिर होता है कि ऐसी विदाई दुनिया में किसी एयरक्राफ्ट की शायद ही कभी हुई हो. मिग-21 ने देश की वायुसेना का सिर कभी झुकने नहीं दिया. 1965 के भारत-पाक युद्ध से लेकर चंद महीनों पहले के ऑपरेशन सिंदूर में इस एयक्राफ्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

यही वजह है कि वायुसेना के पूर्व अफसरों से लेकर इस विमान के पायलटों की आंखें नम हैं. इसी उपलक्ष्य में इस फाईटर विमान को 1003 घंटे उड़ाने वाले तथा इसके अपग्रेडेशन योजना के डायरेक्टर रह चुके पूर्व वायुसेना अधिकारी वीर चक्र से सम्मानित एयर मार्शल हरीश मसंद ‘लोकमत समाचार’ से बात कर रहे थे.

एयर मार्शल मसंद ने कहा कि वे 67 कमिशन्ड अफसर हैं. उन्होंने वैसे तो जरा देरी से ही भारतीय वायुसेना के पहले सुपर सोनिक विमान मिग-21 को उड़ाना शुरू किया था लेकिन अपने सेवाकाल के दौरान उन्होंने लगातार पांच साल में करीबन 1003 घंटे की मिग-21 की उड़ान का अनुभव जरूर लिया है. भारतीय वायुसेना के अन्य लड़ाकू विमानों को भी उड़ाने का उन्हें अनुभव रहा,

लेकिन उनका मानना है कि आसमान में जिस जाबांजी के साथ यह विमान अपने टारगेट को अंजाम देता था, उसका कोई जवाब नहीं. 28 स्क्वाड्रन को मिग-21 उड़ाने की जिम्मेदारी मिली. पहली स्क्वाड्रन होने से उसका नाम भी सुपर साेनिक रखा गया था. 1986-87 में सौभाग्य से मैंने इसी स्क्वाड्रन को कमांड किया.

मिग-21 हंटर और सुखोई से अगल इस मायने में थे कि यह ऐसा एक लड़ाकू विमान था जो जल्दी से 40-50 हजार फुट की ऊंचाई पर चला जाए और ऊपर पहुंचते ही दो मिसाइल से फायर करें और अपना टारगेट पूरा कर तुरंत लौट आए. इसी खासियत की वजह से दुनियाभर में 13 हजार के करीब मिग -21 बने थे.

उन्होंने बताया कि रशिया ने जिस मिग-21 लड़ाकू विमान को 2400 घंटों की उड़ान या 40 साल उम्र बताकर भारत को बेचा था, उसी विमान की कार्यक्षमता को समय-समय पर बढ़ाकर भारतीय वायुसेना के इंजीनियरों ने करीबन 4000 घंटों की उड़ान भरी  और इस विमान की उम्र 20-22 साल से बढ़ा दी. ऐसा कारनामा करने वाली दुनिया में भारत की ही एकमात्र वायुसेना और उसके इंजीनियर हैं.

उनका कहना है कि यदि भारतीय चाहें तो क्या कुछ कर गुजर सकते हैं, इसका प्रमाण ही मिग-21 विमान है. ऐसा इसलिए कि हमने मिग-21 को जब खरीदा तो धीरे-धीरे हमें उसमें कुछ कमिया नजर आईं. जैसे उसमें गन नहीं थी, अकेली मिसाइल थी. भारतीय वायुसेना के इंजीनियरों की तारीफ होनी चाहिए कि उसमें गोंडोला गन लगाई गई.

भारत ने मिग-21 का जिस तरीके से इस्तेमाल किया है, वह कहीं पर भी रशिया द्वारा बनाए गए विमान के हिसाब से नहीं था. हमने काफी हद तक आगे बढ़कर इसका अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल किया है. एयर मार्शल के रूप में सेवानिवृत्त हुए तत्कालीन विंग कमांडर विष्णोई, जो 28 स्क्वाड्रन के सीओ थे, ने ढाका के रनवे को मिग-21 से बमबारी कर बंद किया था.

ऐसा कारनामा करना इस विमान का असल में काम भी नहीं था. यह काम असल में हंटर या सुखोई को करना चाहिए था. आगे चलकर मिग-21 को कैमरे लगा दिए गए. कारगिल युद्ध में भी अलग-अलग भूमिका में मिग-21 नजर आया. इसके अपग्रेड वर्जन बायसन के साथ जो ग्रुप कैप्टन अभिनंदन वर्थमान ने कर दिखाया, वह तो जगजाहिर है.

उन्होंने आगे कहा कि दुनियाभर की वायुसेनाएं जो लड़ाकू विमान, जिस काम के लिए बनाया गया है, उसी के लिए उसका इस्तेमाल करती है. लेकिन भारत के साथ ऐसा नहीं है. मिग-21 ने भारतीय वायुसेना में करीबन 62 साल सेवाएं दी है. इस दौरान करीबन 400 से ज्यादा हादसे हुए हैं. यानी हर साल करीबन 6-7 हादसे हुए हैं.

जबकि सामान्य तौर पर वायुसेना में सालाना 20-25 हादसे तो होते ही हैं. इसमें कई हादसे ट्रेनिंग दौरान के होते है. यानी इस हिसाब से मिग -21 के हादसे बहुत ज्यादा नहीं थे. लेकिन भारत ने इस जहाज को कई नई भूमिका में इस्तेमाल किया है. यहां तक कि 15-20 सालों तक एजेटी  (एडवांस जेट ट्रेनर) की कमी के कारण इसे एडवांस ट्रेनिंग के लिए भी इस्तेमाल किया जाता रहा.

फिर भी मिग-21 का एक्सीडेंट रेट दूसरे लड़ाकू विमानों की तुलना में अच्छा ही रहा. मिग-21 एक समय भारतीय वायु सेना में 24 से ज्यादा स्क्वाड्रन्स में था, जो हमारी वायुसेना का करीबन 60 फीसदी हिस्सा था. ऐसे में हादसे गिनती में भले ही ज्यादा दिख सकते हैं परंतु एक्सीडेंट रेट बाकी विमानों के समान या कम ही रहा.

डिजाइन भी खास था

डेल्टा प्लेटफार्म पर बने, पतली विंग और राॅकेट जैसे बने मिग-21 का असल में यही काम था कि फायटर पायलट उसमें उड़ान भरे, ऊंचाई पर पहुंचकर फायर करें और पलक झपकते ही लैंट कर दें. ग्राउंड अटैक के लिए यह विमान बना ही नहीं था, हालांकि भारतीय वायुसेना में इसने हमेशा इस तरह के काम भी खुद को साबित कर दिखाया है.

मिग-21 की सबसे बड़ी खूबी ही यही थी कि वह एक समय के बाद पायलट के लिए खुद ही ट्रेनर बन जाता है. वह पायलट को ऐसी-ऐसी चीजें सिखा देता है, जो पायलट को कभी पता ही नहीं थी. मसंद का कहना है कि यही कारण था कि उन्होंने अपनी 40 साल की पूरी सर्विस में कोई हादसा नहीं देखा.

ट्रेनिंग जहाज और मिग-21 में बड़ा अंतर

उन्होंने कहा कि वैम्पायर, एचजेटी-16 किरण जैसे विमानों में भारतीय वायुसेना के पायलट ट्रेनिंग लेकर आते थे. जिनकी रफ्तार बड़ी मुश्किल से 242 नाॅट्स पर माइल हुआ करती थी. लेकिन ट्रेनिंग से निकलकर जब वे मिग-21 को उड़ाते थे तो उसकी रफ्तार 600 नाॅट्स पर माइल तक हुआ करती थी.

इसी के साथ लैंडिंग स्पीड में भी इन विमानों की तुलना में मिग-21 की रफ्तार ज्यादा हुआ करती थी. इसलिए यह विमान हमेशा पायलट के लिए चुनौती तो था ही, बावजूद इसके जब पायलट इसे समझने की कोशिश करता, तो यह खुद ही पायलट को इतना सहायता करने लगता जैसे कोई ट्रेनर अपने ट्रेनी को करता है. 

एडवांस जेट ट्रेनर की कमी खूब खली 

हंटर पुराना हो गया तो 90 में हंटर था नहीं तो पायलट को सीधे मिग-21 पर भेजना पड़ा. जबकि यह विमान पायलट की ट्रेनिंग के लिए नहीं बना था, यह तो खास मिशन के लिए लाया गया था. लेकिन मजबूरी थी कि पायलट को सीधे मिग-21 जैसे सुपर सोनिक विमान को ही ट्रेनिंग जहाज जैसे इस्तेमाल करना पड़ा. हालांकि जब 2005-06 में हाॅक विमान वायुसेना में शामिल हुए तो फिर मिग-21 पर सीधे पायलट को भेजना बंद हुआ. विकल्प नहीं होने की वजह से करीबन 14-15 सालों तक ऐसा होता रहा, ऐसे में कई हादसे हुए तो बदनाम मिग-21 होता गया.

उसे काॅफिन कहे जाने का एक कारण यह भी बना. बिना अनुभवी पायलटों को मिग-21 जैसे विमानों पर ट्रेनिंग देना भी हादसों का कारण बना. साथ ही मिग के अन्य वेरियंट (मिग-23, 25, 27 और 29) का भी हादसा होने पर नाम बदनाम मिग-21 होता रहा.

मिग-21 वायुसेना का ‘टाइगर’

पूर्व एयर मार्शल हरीश मसंद का कहना है कि मैं तो मानता हूं कि मिग-21 विमान भारतीय वायुसेना का ‘टाइगर’ है. हमारी वायुसेना में करीबन 60 फीसदी से ज्यादा वायुसैनिक -अधिकारियों ने मिग-21 को या तो हाथ लगाया है या उसे उड़ाया है. इस विमान का योगदान बहुत ज्यादा है. वह हमारे लिए लंबे समय तक और सबसे विश्वसनीय साथी रहा. असल में वह तो हमारी ‘रीढ की हड्डी’ था. जिसे 62 साल की सेवा के बाद 26 सितंबर को विदा करते हुए हमें बड़ा दुख होगा.

लंबा चला और अपग्रेड भी हुआ सस्ते में 

पूर्व एयर मार्शल हरीश मसंद मिग-21 अपग्रेडेशन प्रोजेक्ट के डायरेक्टर भी रह चुके है. उन्होंने बताया कि एक मिग-21 को अपग्रेड करने के लिए करीबन ढाई मिलियन डाॅलर खर्च किए हैं. इसमें हथियार खरीदना और लगाना भी शामिल रहा. उससमय के रेट के हिसाब से यह 7-8 करोड़ रुपया होता था.

सुपर सोनिक विमान को इतने कम खर्च में हमने न सिर्फ अपग्रेड कर लिया बल्कि उसकी तय की गई उम्र से 20 साल ज्यादा तक उसे उड़ाया है. इतना सस्ता सौदा केवल भारतीय वायुसेना के इंजीनियरों के ही कारण संभव हो सका है.

कल वायुसेना से विदा होगा मिग-21

भारतीय वायुसेना की ताकत रहे रूसी निर्मित मिग-21 लड़ाकू विमान शुक्रवार, 26 सितंबर को आधिकारिक रूप से सेवामुक्त हो जाएंगे. छह दशक से अधिक समय तक आसमान में अपनी क्षमता दिखाने वाले इन विमानों की विदाई चंडीगढ़ वायुसेना स्टेशन पर ‘डीकमीशनिंग’ समारोह और फ्लाईपास्ट के साथ होगी. 23वें स्क्वाड्रन के अंतिम मिग-21, जिसे “पैंथर्स” कहा जाता है, को इस मौके पर विदाई दी जाएगी.

समारोह में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित सीडीएस जनरल अनिल चौहान, सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी, वायुसेना प्रमुख ए पी सिंह और नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी मौजूद रहेंगे. मिग-21 ने 1965 और 1971 के युद्ध, 1999 के करगिल युद्ध और 2019 के बालाकोट हमलों में अहम भूमिका निभाई थी. एक माह पहले बीकानेर के नाल स्टेशन से इस विमान ने अपनी अंतिम परिचालन उड़ान भरी थी.

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