यौन अपराधों में झूठे मामलों को लेकर हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कहा- "कानून पुरुषों के प्रति पक्षपाती..."
By अंजली चौहान | Published: August 2, 2023 05:45 PM2023-08-02T17:45:12+5:302023-08-02T17:59:24+5:30
कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि कानून की सुरक्षा की बात आती है तो लड़कियों/महिलाओं का दबदबा होता है इसलिए वे वर्तमान जैसे मामलों में किसी लड़के या पुरुष को फंसाने में आसानी से सफल हो जाती हैं।

फोटो क्रेडिट- फाइल फोटो
प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक केस की सुनवाई के दौरान यौन अपराधों के वास्तविक मामलों को लेकर बड़ी प्रतिक्रिया दी है। उच्च न्यायालय ने कहा कि यौन अपराधों के वास्तविक मामले अब अपवाद हैं और प्रचलित प्रवृत्ति में मुख्य रूप से बलात्कार के झूठे आरोप शामिल हैं।
हाई कोर्ट ने कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां लड़कियां और महिलाएं अनुचित लाभ हासिल करने के लिए आरोपी के साथ लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाने के बाद गलत तरीके से प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज कराती हैं।
कोर्ट में एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने कहा कि कानून पुरुषों के प्रति अत्यधिक पक्षपाती है और अदालतों को ऐसे मामलों में जमानत याचिकाओं पर विचार करते समय सतर्क रहना चाहिए।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने कहा, "समय आ गया है कि अदालतों को ऐसे जमानत आवेदनों पर विचार करते समय बहुत सतर्क रहना चाहिए। कानून पुरुषों के प्रति बहुत पक्षपाती है। प्रथम सूचना रिपोर्ट में कोई भी बेबुनियाद आरोप लगाना और वर्तमान मामले की तरह किसी को भी ऐसे आरोपों में फंसाना बहुत आसान है।"
लड़कियों में खुलेपन की संस्कृति बढ़ रही- न्यायालय
इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि सोशल मीडिया, फिल्मों और टीवी शो का प्रभाव युवा लड़कों और लड़कियों द्वारा अपनाई जाने वाली "खुलेपन की संस्कृति" को बढ़ावा दे रहा है।
कोर्ट ने कहा कि जब यह व्यवहार भारतीय सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों से टकराता है, जिससे परिवार और लड़की के सम्मान की रक्षा होती है, तो कभी-कभी इसके परिणामस्वरूप झूठे मामले दर्ज किए जाते हैं।
कोर्ट ने कहा कि ऐसी प्रथम सूचना रिपोर्ट तब भी दर्ज की जाती है जब कुछ समय/लंबे समय तक लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के बाद, किसी भी मुद्दे पर लड़के और लड़की के बीच विवाद होता है।
साथी का स्वभाव समय के साथ दूसरे साथी के सामने प्रकट होता है और तब उन्हें एहसास होता है उनका रिश्ता जीवन भर जारी नहीं रह सकता तब ये परेशानी शुरू हो जाती है।
"कानूनी सुरक्षा में महिलाओं का दबदबा"
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि कानून की सुरक्षा की बात आती है तो लड़कियों/महिलाओं का दबदबा होता है, इसलिए वे वर्तमान जैसे मामलों में किसी लड़के या पुरुष को फंसाने में आसानी से सफल हो जाती हैं।
शादीशुदा जोड़े की केस की सुनवाई कर रहा कोर्ट
दरअसल, उच्च न्यायालय ने ये टिप्पणी एक शादी शुदा जोड़े के केस को लेकर दी है। इस केस में आरोपी पर भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार और अन्य अपराधों और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के तहत अपराध दर्ज किया गया था। इसके बाद जमानत के लिए उनसे उच्च न्यायालय का रुख किया।
अभियोजन पक्ष के वकील ने आरोप लगाया कि आरोपी ने कई बार नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध स्थापित किए और बाद में केवल यौन आनंद के लिए उससे शादी की। आरोपी ने लड़की को अपने चचेरे भाई के साथ भी शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया और जब उसने शोर मचाया तो आरोपी-आवेदक और उसके चचेरे भाई ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और मारपीट की।
वहीं, आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि पीड़िता बालिग थी और उसका आवेदक के साथ पिछले एक साल से संबंध था। वह स्वेच्छा से अपना घर छोड़कर आवेदक की चाची के घर चली गई जहां उसने सहमति से आवेदक के साथ शारीरिक संबंध बनाए। आगे यह भी कहा गया कि उन्होंने शादी कर ली लेकिन बाद में उसके माता-पिता उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे ले गए।
इसके बाद, जब परिवार के सदस्यों के बीच विवाद हुआ, तो उसने एफआईआर दर्ज कराई।
आरोपी को मिली जमानत
आरोपी द्वारा दायर मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उसे जमानत दे दी है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि एफआईआर झूठे आरोपों और गलत तथ्यों के आधार पर दर्ज की गई थी।
न्यायालय ने यह भी कहा कि पीड़िता और आवेदक के बीच विवाह आधिकारिक तौर पर पंजीकृत था। हालाँकि, अदालत के माध्यम से कोई तलाक, विवाह विघटन या न्यायिक अलगाव नहीं हुआ था।
न्यायालय ने कहा कि एफआईआर दर्ज करना लगातार अदालतों में विशेषज्ञों द्वारा या पुलिस स्टेशन में मुंशी/हेड क्लर्क द्वारा तैयार किए गए लिखित आवेदनों के माध्यम से किया जाता था और यह प्रथा हमेशा झूठे आरोप के खतरे से भरी होती है। जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पीड़िता का आवेदक के साथ भाग जाना और कोर्ट मैरिज करना उसकी निरंतर सहमति का संकेत देता है और अभियोजन के पूरे मामले को भी कमजोर कर देता है। नतीजतन, जमानत अर्जी मंजूर कर ली गई।