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अयोध्या मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला ‘कानूनी रूप से टिकाऊ’ नहीं था : सुप्रीम कोर्ट

By भाषा | Updated: November 10, 2019 03:50 IST

सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद कर रही कानूनी लड़ाई पर पर्दा गिराते हुए शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि जमीन के बंटवारे से किसी का हित नहीं सधेगा और ना ही स्थायी शांति और स्थिरता आएगी।

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ठळक मुद्देउच्चतम न्यायालय ने शनिवार को अपने फैसले के दौरान कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का 2010 का फैसला ‘कानूनी रूप से टिकाऊ’ नहीं था।अदालत ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच तीन हिस्सों में बांट दिया था।सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद कर रही कानूनी लड़ाई पर पर्दा गिराते हुए शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि जमीन के बंटवारे से किसी का हित नहीं सधेगा और ना ही स्थायी शांति और स्थिरता आएगी।

उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को अपने फैसले के दौरान कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का 2010 का फैसला ‘कानूनी रूप से टिकाऊ’ नहीं था। अदालत ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच तीन हिस्सों में बांट दिया था। सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद कर रही कानूनी लड़ाई पर पर्दा गिराते हुए शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि जमीन के बंटवारे से किसी का हित नहीं सधेगा और ना ही स्थायी शांति और स्थिरता आएगी।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि 30 सितंबर, 2010 के अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने ऐसा रास्ता चुना जो खुला हुआ नहीं था और ऐसी राहत दी जिसकी मांग उनके समक्ष दायर मुकदमों में नहीं की गयी थी।

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

पीठ ने कहा, हम पहले ही इस नतीजे पर पहुंच चुके थे कि उच्च न्यायालय द्वारा विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाना कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं था। यहां तक कि शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिहाज से भी वह सही नहीं था।

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