नई दिल्लीः कृषि क्षेत्र की आधारभूत संरचनाओं को बेहतर बनाने के लिये 2025 तक 1.68 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत होगी। बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विकास की योजना को लेकर गठित एक सरकारी समिति ने यह अनुमान व्यक्त किया है।
समिति का कहना है कि 2025 तक देश में बुनियादी संरचना की परियोजनाओं में कुल 111 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत है। वित्त मंत्रालय ने आर्थिक मामलों के सचिव अतनु चक्रवर्ती की अध्यक्षता में राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) का खाका तैयार करने के लिये इस कार्य बल का गठन किया।
कार्य बल ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को सौंपी अंतिम रिपोर्ट में ये सुझाव दिये हैं। कार्य बल ने तीन क्षेत्रों ई-बाजार की बुनियादी संरचना, भंडारण एवं प्रसंस्करण तथा शोध एवं विकास में सुधारों के सुझाव दिये हैं। उसने अंतिम रिपोर्ट में स्तरीकरण एवं प्रमाणन संयंत्रों समेत बाजार की अपर्याप्त बुनियादी संरचना, अप्रभावी शीत भंडारण प्रबंधन और कृषि उत्पादों के काफी कम प्रसंस्करण को खाद्य एवं प्रसंस्करण क्षेत्र की मुख्य चुनौतियां बतायी हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन चुनौतियों के कारण, भारत में उत्पादन के बाद का नुकसान अधिक है, जिससे सालाना 44,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। यहां तक कि वैश्विक स्तर पर कृषि-वस्तुओं के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक होने के बावजूद भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि-निर्यात की हिस्सेदारी दुनिया के अन्य देशों के सापेक्ष काफी कम है। कार्य बल ने इस समस्या को हल करने के लिये अगले पांच साल में कृषि बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिये 1,68,727 करोड़ रुपये के निवेश की सिफारिश की।
इसमें से पहचानी गयी 20 परियोजनाओं के लिये 1,34,820 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी, जिसमें ग्रामीण हाट (खुले स्थानीय बाजार) को ग्राम में तब्दील किया जाना, कृषि-बाजार की संरचनाएं (फलों / सब्जियों के लिये टर्मिनल बाजार, प्राथमिक कृषि साख समितियों का कम्प्यूटरीकरण, परीक्षण की सुविधायें और शीत भंडारण सुविधाओं के निर्माण शामिल हैं। राज्यों में कुछ परियोजनाओं के लिए लगभग 27,652 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित किया गया है। इसके साथ ही खाद्य और सार्वजनिक वितरण को बेहतर बनाने पर 5,000 करोड़ रुपये तथा अगले पांच साल में 15 मेगा फूड पार्क बनाने के लिए 1,255 करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत का भी सुझाव दिया गया है।
कोविड-19 का कृषि वृद्धि दर पर अधिक प्रभावित नहीं होगा: कृषि मंत्रालय
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि देश का कृषि क्षेत्र, कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के बावजूद, सुचारू रूप से काम कर रहा है तथा अन्य क्षेत्रों के विपरीत कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर पर संकट का अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। कृषि और इसके संबद्ध क्षेत्रों की वृद्धि वर्ष 2019-20 में 3.7 प्रतिशत थी।
इस बीच नीति अयोग ने चालू वित्त वर्ष में अच्छे मानसून की उम्मीद में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर तीन प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। मीडिया को वीडियो लिंक से संबोधित करते हुए, तोमर ने कहा, ‘‘वर्तमान लॉकडाउन स्थिति में, कृषि क्षेत्र सुचारू रूप से काम कर रहा है। खाद्यान्न, सब्जियों और डेयरी उत्पादों की कोई कमी नहीं है। लेकिन, कई अन्य क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। हमें अपने किसानों पर गर्व है। हमारे किसानों को धन्यवाद।’’ उन्होंने कहा कि अच्छी बारिश की उम्मीद को देखते हुए, लॉकडाऊन का कुल कृषि जीडीपी पर इस साल ज्यादा असर नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि कार्य को लॉकडाऊन के नियमों से मुक्त कर दिया है। तोमर ने कहा, ‘‘पिछले साल के दौरान कृषि जीडीपी में वृद्धि 3.7 प्रतिशत थी। मुझे विश्वास है कि भविष्य में भी यह वृद्धि दर बहुत अधिक प्रभावित नहीं होगी।’’ समान विचार व्यक्त करते हुए नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा कि प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वित्तवर्ष 2020-21 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर तीन प्रतिशत रहने का अनुमान है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण पश्चिम मानसून के बेहतर रहने का पूर्वानुमान, जलाशयों में पर्याप्त जल स्तर, खरीफ बुवाई के रकबे में वृद्धि, उर्वरक और बीजों के उठाव में वृद्धि - ये सभी पहलु, कृषि क्षेत्र के वृद्धिदर के अनुकूल हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति में कृषि क्षेत्र अपनी भूमिका निभायेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था को सामान्य वृद्धि दर की राह पुन: प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का हिस्सा 15 प्रतिशत का है और यह क्षेत्र देश की 1.3 अरब से अधिक आबादी के आधे से भी अधिक आबादी की आजीविका का स्रोत है।